असेंबली
असेंबली
एकांत कोने में बैठी सुंदरी सुबक रही थी। सुबकने की आवाज़ सुनकर शिक्षिका ने पूछा,"क्या हुआ ? " रुंधे हुये कंठ से सुंदरी बोली," हम इन्सान है न !"
हाँ, शिक्षिका ने कहा।
फिर हमें क्यों शरारत न करने पर भी शरारती बच्चों की भांति रोजाना असेंबली में गालियाँ सुननी पड़ती हैं।
"कुत्ते की दुम हो सब !"
"भैंस बकरियों की तरह मंडराती रहती हो इधर-उधर !"
और भी न जाने क्या क्या !
मैडम बताए प्लीज ! क्या आपके अध्यापक भी आपको इसी तरह डंगर जैसी ,चुड़ैल, बांदर ,कुत्ते इत्यादि शब्दों से नवाजते थे।
सुंदरी के सुबकने की ध्वनि मद्धिम से मद्धिम होती जा रही थी और शिक्षिका का अंतर्मन उसे झकझोरता जा रहा था।
