अपनी ताप में जलता सूरज !
अपनी ताप में जलता सूरज !
दिल्ली ने ढेर सारे शासकों को देखा, सुना और जाना है।उसने झोंपड़ी से आलीशान मकान में पधारे मान्यवर देखे हैं तो आलीशान सरकारी मकान और सुख सुविधाएं छिनते ही वापस अपनी कुटिया में जाने को विवश राजनीतिज्ञ भी देखे हैं। कभी जाति के नाम पर तो कभी आरक्षण की लहर पर सवार होकर आते महत्वाकांक्षी लोगों को सत्तारूढ़ होते देखा है तो कभी अपनी निकृष्ट चाल चलन के चलते परिदृश्य से तिनके की तरह उड़ने वाले राजनेताओं की दुर्दशा भी देखा है।लेकिन उसका मौन कभी भी नहीं टूटा, छूटा।आजादी के इन 73सालों में भी दिल्ली तहेदिल से प्रजातंत्र की वर्तमान प्रणाली को प्यार करती आई है और उसे विश्वास है कि इसका सूरज अपना तेज इसी तरह उगलता रहेगा।
लेकिन काश, ऐसी ही भावना हर भारतीय के मन में हुआ करती !यहां तो कभी आरक्षण के नाम पर कभी मंदिर मस्जिद के नाम पर कभी सी.ए.ए.को लेकर तो कभी बेबात पर जाम लग जाते हैं, बन्द आयोजित हो जाते हैं, तोड़ फोड़ होती है।अब तो प्रजातंत्र के तीसरे खम्भों ने भी अपनी स्वार्थ लिप्सा में अपनी ही डाल काटना शुरु कर दिया है।हर स्वाभिमानी भारतीय हताश और निराश होकर हर दस पांच साल में एक नये राजनीतिक मसीहा की खोज करने लगता है।
पुद्दुचेरी में मिसेज कुमकुम डिप्रेशन से उबरने में हर तरह से लगी थीं तो दिल्ली में प्रोफेसर के.के.दवे अपने भूतकाल से पिंड छुड़ाकर अपना वर्तमान और भविष्य गढ़ रहे थे।वर्तमान में उनके संगी साथी बने थे उनके छात्र जीवन के लोग।वे अपनी शाम इन दिनों अपनी एक्स गर्लफ्रैंड के साथ बिताने लगे थे।दिन में वे कभी सान्याल तो कभी मधुकर के पास गपशप करने जाया करते थे।एक शाम वे साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में बिता रहे थे। मंच पर उस समय एक वरिष्ठ कवि सुधांशु उपाध्याय अपनी कवितायेँ पढ़ रहे थे -" चोटों की सोहबतों ने है पत्थर बना दिया, जिद ने तुम्हारी हमको भी कट्टर बना दिया।
कितने गलीज़ जुमले तुमने उछाले मुझ पर,
नाज़ुक सी मेरी जीभ को नश्तर बना दिया।
देखा सभी ने उसको यहाँ खुरपी की नज़र से,
रेशम से उसके जिस्म को खद्दर बना दिया।
मेहमान बन के आये सब,सो कर चले गए,
उसने भी अपनी देह को बिस्तर बना दिया।
कंधे पे कभी रक्खा,फुटपाथ पर बिछाया,
अपना वजूद उसने यूं चद्दर बना दिया।
उसके फलों पे गाँव पे चोरों की नज़र थी,
उसने भी अपने आपको बंजर बना दिया।
अच्छाइयों पे उसको भरोसा नहीं रहा,
बदले में उसने खुद को ही बदतर बना दिया।
बाहर की टूट फूट को अनदेखा कर गई,
शीशे की एक मूरत, अपने अन्दर बना दिया।
टूटी छतें भसकती दीवारें थीं बस यहाँ,
खँडहर में आके उसने इसे घर बना दिया।
कुछ परकटे परिंदे छत पे थे आ गिरे,
पलकों को उसने अपनी तब पर बना दिया।
हर बूंद पे हो बजाते, हर बूंद चोट करती,
तुमने ही खुद को टूटा कनस्तर बना दिया।"
पूरा हाल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा था। देर रात वे घर लौटे और डाइनिंग टेबुल पर डिनर का इंतज़ार करते हुए टी.वी.आन कर दिए। उस समय उनका पसंदीदा प्रोग्राम मोटू पतलू आ रहा था।
डाक्टर ने एक ऐसा इंजेक्शन पतलू को लगा दिया था कि उसके सींग उग आये थे और वह अपने लंगोटिया यार मोटू को सींग मारने के लिए दौड़ा रहा था। मोटू भागते भागते डाक्टर की शरण में जब पहुंचा तो डाक्टर ने बड़े इत्मीनान से बताया कि अब तो गलती हो ही गई है उसने जानवरों वाला इंजेक्शन पतलू को लगा दिया था। पतलू को सामान्य होने में चौबीस घंटे,चौबीस दिन या चौबीस महीने भी लग सकते है
प्रोफेसर दवे छोटे बच्चे के समान उस सीरियल का आनन्द उठा ही रहे थे कि उन्हें अपना पसंदीदा टी.वी .शो और डिनर दोनों को ब्रेक देना पडा। मोबाइल पर पुद्दुचेरी से डा० अग्रवाल थे जिनके अनुसार मिसेज कुमकुम की हालत बेहद खराब हो जाने के कारण उन्हें हास्पिटल में एडमिट कराया जा चुका था। उन्होंने डा.दवे को शीघ्र पुद्दुचेरी पहुँचाने के लिए कहा था।
समय कभी कभी विचित्र परिस्थितियाँ ला देता है। भावनात्मक रूप से अलग थलग पड चुके के.के. और कुमकुम को एक बार फिर से जुड़ने का अवसर मिल रहा था लेकिन क्या के.के.वर्तमान विलासिता और कनेक्शन को छोड़कर एक बार फिर कुमकुम की निकटता चाहेगा ? रात के बारह बज चुके हैं और के.के.की आँखों से नींद गायब है। ऐसा लग रहा है मानो अपनी ही ताप से सूरज जलने लगा हो, पिघलने लगा हो !
