अपनी रक्षक खुद बनो
अपनी रक्षक खुद बनो
सविता एक गृहणी थी। घर पर पति व दो बच्चों के अलावा सास भी साथ ही रहती थी, सविता के पति अक्सर काम के सिलसिले में बाहर रहते थे इसलिए बच्चों व परिवार की जिम्मेदारी सविता पर ही थी। जिसे वह बखूबी निभा भी रही थी। सविता के बेटे ने अभी 12th क्लास पास की थी और उसका एडमिशन शहर के बाहर हुआ था। घर पर अब वह तीनों ही बचे थे। सविता की बेटी रिया 10th क्लास में पढ़ती थी। रिया बहुत ही हंसमुख व मिलनसार लड़की थी। लेकिन पिछले कुछ महीनों से सविता देख रही थी कि रिया कुछ गुमसुम सी रहने लगी है। पहले तो उसे लगा कि भाई के जाने के बाद शायद उसका मन ना लग रहा हो। लेकिन जब ज्यादा ही दिन हो गए तो उसे कुछ अंदेशा हुआ। उसने पूछने की कोशिश की तो हर बार वह यह कहकर टाल जाती कुछ नहीं मम्मी 10th क्लास है ना तो बोर्ड का डर है और ऐसी कोई बात नहीं।
बात करते-करते रिया नज़रे चुरा रही थी। अब तो सविता का शक यकीन में बदल गया कि हो ना हो कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर है। एक दिन शाम को रिया कि बेस्ट फ्रेंड उनके घर आई। उस समय रिया ट्यूशन पढ़ रही थी। सविता ने बातों ही बातों में उन्होंने उससे पूछा "बेटा स्कूल में सब सही चल रहा है ना!"
उसने कहा "हां आंटी जी।" फिर सविता ने बातों को ज्यादा घुमाने फिराने की बजाय सीधा ही पूछा "बेटा तुम रिया की बेस्ट फ्रेंड हो। मैं एक बात तुमसे पूछना चाहती हूं। मैं देख रही हूं। रिया कुछ परेशान व गुमसुम रहती है। क्या तुम बता सकती हो क्यों? क्या स्कूल में भी ऐसे ही रहती है। मुझे डर लग रहा है कही उसका साल बर्बाद ना हो जाए क्योंकि वह पढ़ाई में भी सही से मन नहीं लगा पा रही।"
पहले तो रिया कि दोस्त ने कहा नहीं आंटी जी ऐसी बात नहीं। लेकिन सविता जी के प्यार से समझाने के बाद की बेटा सच्चा दोस्त वही है जो अपने दोस्त के सुख दुख में मदद करें। तुम मुझे बताओ तब उसकी दोस्त ने कहा "आंटी आपको तो पता ही है कि रिया कितनी मिलनसार स्वभाव की है। सभी से हँसकर मिलती है और सभी को दोस्त बना लेती हैं। किसी की मदद करने से भी पीछे नहीं हटती।
एक दिन हम सब लड़के लड़कियाँ कोरिडोर में ग्रुप बनाकर बातें कर रहे थे। तो पीटी टीचर ने हमें इस बात पर डांटने
लगे कि हम लोग स्कूल का माहौल खराब कर रहे है। तुम लोगों के घरों में क्या ऐसे ही संस्कार दिए जाते हैं। तुम्हें देखकर छोटे बच्चे क्या सीखेंगे।"
उनकी बातें सुनी रिया बोली "सर ऐसी तो हमने कोई बात नहीं की। हम सब एक साथ पढ़ते हैं और अच्छे दोस्त है। हमारे माता-पिता ने हमें बहुत अच्छी शिक्षा दी है और उन्हें हम पर पूरा यकीन है और हम लोग भी ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे उनके विश्वास को ठेस पहुंचे।"
रिया के जवाब से सर के अहम को ऐसी ठेस लगी कि वह जब तब रिया को परेशान करने लगा। बिना बात सबके सामने रिया को डांट देते हैं या छू देते । हमने क्लास टीचर व प्रिंसिपल मैडम से इस बारे में बात की तो उन्होंने उल्टा हमें ही डांट दिया कि हम स्कूल के एक जिम्मेदार टीचर पर बिना आधार आरोप लगा रहे हैं।"
उसकी बातें सुन सविता सन्न रह गई। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी बेटी इस समय इतनी मानसिक प्रताड़ना से गुज़र रही है। रात को सोने के समय सविता रिया के पास बैठी। प्यार से उसका हाथ अपने हाथों में थाम कर बोली " बेटा क्या तुमने अपनी मम्मी को इतना पराया समझ लिया कि अपने मन की बात भी तुम उससे ना कह सकी।" "मम्मी मम्मी ऐसी तो....." कह रिया रोने लगी। बेटी को चुप कराते हुए सविता बोली " बेटा मैं तेरी माँ हूं। तेरे मन के हर भाव को भलीभांति पढ़ सकती हूं।" "मम्मी मैं डर गई थी कि कहीं आप मुझे गलत ना समझे। जैसे दूसरे लोग समझ रहे हैं।" "नहीं बेटा मुझे तुम पर पूरा यकीन है। तुम अपने मन से सब डर निकाल दो। हम औरतों को शुरू से यही तो सिखाया जाता है कि गलत को चुपचाप सह ले और इसी कमज़ोरी का लोग फायदा उठाते हैं। लेकिन मेरी बात गांठ बांध ले कभी भी गलत बात को सहन मत करना अपितु खुलकर मुखर विरोध करो। लोग क्या कहेंगे इससे मत घबराओ। अगर तुम सही हो तो किसी बात की परवाह नहीं करो। हम सदैव तुम्हारे साथ हैं।"
अगले दिन से ही सविता ने अपनी बेटी व उसके दोस्त की मदद से दूसरी लड़कियों से उस सर के व्यवहार के बारे में पता करने की कोशिश की। धीरे धीरे कई लड़कियाँ आगे आई और उन्होंने अपने बुरे अनुभव उनके साथ साझा किए। जो अब तक डर से चुप थी। सविता ने उनके माता-पिता से बात की और फिर सबको साथ ले स्कूल पहुंची।
इतने सारे पेरेंट्स को एक साथ देख प्रिंसिपल सकपका गई और सभी के विरोध को देखते हुए जल्दी ही उसने अपनी ग़लती मान ली। साथ ही साथ पीटी टीचर को स्कूल से भी निकाल दिया गया। शाम को रिया की सभी सहेलियाँ व अन्य लड़कियाँ उसके घर आई और सविता को धन्यवाद देते हुए बोली "अरे वाह आंटी! आपने तो एक प्रोफेशनल जासूस की तरह कैसे प्रिंसिपल मैडम व सर के छक्के छुड़ा दिए और हमें इस मुसीबत से निकाल लिया।"
उनकी बातें सुन सविता बोली "बेटा हर माँ एक जासूस ही होती है लेकिन प्रोफेशनल नहीं बल्कि घरेलू। जो अपनी बच्चे पर पूरा भरोसा करती है और बिन कहे उनके हर सुख-दुख को चेहरा देख पढ़ लेती हैं । हां एक और बात बच्चों! हर बार कोई तुम्हें बचाने नहीं आएगा। तुम्हें अपना रक्षक खुद बनना है।