Sangeeta Aggarwal

Tragedy Inspirational Children

4.5  

Sangeeta Aggarwal

Tragedy Inspirational Children

अपने बच्चों को बचाइये

अपने बच्चों को बचाइये

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" रोहन किसके साथ चैटिंग कर रहे हो इतनी रात को!" पानी ले जाती आशा अपने बेटे के कमरे से आती आवाज़ को सुन उसके कमरे में आई और बोली,

"मम्मा हम कुछ दोस्त है जिनकी पहचान ओंनलाइन गेम खेलते हुई थी... इसमें कुछ इंडिया के है कुछ बाहर के भी!" सोलह साल का रोहन बोला।

" पर बेटा रात के एक बज रहे है इस वक़्त चेटिंग ठीक नही चलो सो जाओ!" आशा ने कहा।

" मम्मा दिन में हम सब पढ़ाई में लगे रहते तो रात को ही थोड़ा वक़्त मिलता है... बस दस मिनट में बंद करता हूँ... आप जा के सो जाइये!" रोहन बोला।

आशा अपने कमरे में आ गई... उसे रोहन का इस वक़्त अंजान लोगों से बात करना अच्छा तो नहीं लग रहा था पर युवा होते बेटे पर ज्यादा बंदिश भी ठीक नहीं होती ये सोच वो लेट गई पर उसकी आँखों से नींद गायब हो गई। 


"सुनो रोहन को कल मैंने अंजान लोगों से चैटिंग करते देखा वो भी रात के एक बजे!" सुबह आशा ने अपने पति राजेश से कहा।

" क्यों बेवजह चिंता करती हो ऑनलाइन चैटिंग ही तो कर रहा है... वैसे भी बेटा बड़ा हो रहा है ज्यादा टोकाटाकी मत किया करो तुम!" राजेश ने कहा।

आशा ने महसूस किया धीरे धीरे रोहन सबसे कटने लगा है स्कूल से आता और कमरे में घुस जाता...। अपनी बहन मिष्टी से भी कम बात करता अब। 

"रोहन ये सब क्या है हर वक़्त कंप्यूटर के आगे बैठे रहते... ना अब क्रिकेट खेलते हो ना टी वी देखते हो!" एक दिन आशा ने रोहन से कहा।

" मम्मा नेक्स्ट ईयर मेरा टवेल्थ का बोर्ड है तो अभी से उसकी तैयारी कर रहा!" रोहन नज़र चुराते हुए बोला।

" पर तुम तो ऑनलाइन चैटिंग में वक़्त बिताते हो अब... !" आशा बोली।

" मम्मा सारा दिन पढ़ने बाद थोड़ा गेम खेल लेता और चैटिंग कर भी लेता तो क्या गलत है...। आपको तो मुझमें कमियां ही नज़र आती बस!" रोहन गुस्से में बोला।

"सही तो कह रहा है रोहन... तुम भी ना ...!" राजेश बोला।

आशा ने बात बढ़ाना उचित ना समझा और कमरे से बाहर आ गई... ! 


धीरे धीरे समय गुजरने लगा रोहन ने अब तो सबसे बात करना बंद कर दिया। मिष्टी को बात- बात पर झिड़क देता... आशा की बातों का भी उलटा सीधा जवाब देता।

"आशा...। आशा... तुमने मेरी जेब से पैसे लिए!" एक दिन ऑफिस से आ राजेश आशा से बोला।

" नहीं तो मैं ऐसे बिना पूछे कभी लेती क्या पैसे जो आज लूंगी!" आशा बोली।

" तो पैसे गए कहा मुझे अच्छे से याद है रात तक जेब में थे...!" राजेश कुछ सोचते हुए बोला।

" कहीं रोहन ने तो नहीं लिए आप उससे पूछिये!" आशा बोली।

" रोहन... बेटा रोहन...!" राजेश ने रोहन को आवाज़ लगाई।

" जी पापा!" रोहन कमरे से आ बोला।

" तुमने मेरी जेब से पैसे लिए क्या!" 

" हाँ पापा मुझे बुक लेनी थी आप सो रहे थे तो मैंने जेब से ले लिए दो हजार ले लिए...!" रोहन लापरवाही से बोला।

"पर तुम्हें पापा को या मुझे बताना था ना!" आशा गुस्से में बोली।

" अरे कोई बात नहीं जल्दबाजी में भूल गया होगा वो तुम शांत रहो!" राजेश आशा से बोला।

" पर राजेश ये गलत है...। आज उसने तुम्हारी जेब से कुछ पैसे लिए कल को कुछ और भी करेगा तुम्हें पूछना चाहिए था कौन सी बुक लेनी... !" रोहन के कमरे में जाने बाद आशा ने राजेश से कहा।

"आशा उसे जरूरत थी उसने ले लिए इसमें इतना क्या सोचना हमारा बेटा हमसे नहीं लेगा पैसे तो किससे लेगा।" राजेश बोला।

आशा को ये सब सही नहीं लग रहा था पर वो क्या कर सकती थी उसे समझ नहीं आ रहा था...... राजेश उसकी बात समझने को तैयार नहीं थे और बेटा रोहन हाथ से निकला जा रहा था। ऐसे ही रोहन ने कई बार पैसे निकाले पर हर बार राजेश ने उसका बचाव किया।

" सुनो राजेश... रोहन अभी तक स्कूल से घर नहीं आया... मैंने उसके सभी दोस्तों को फोन किया पर किसी को कुछ पता नहीं! एक दिन आशा ने राजेश को फोन किया।

" आशा घबराओ मत... मैं बस घर पहुँचने ही वाला हूँ... यही कहीं होगा वो आ जायेगा!" राजेश ने कहा।


राजेश ने घर आके उसके स्कूल टीचर को फोन किया उसकी बस के ड्राइवर को भी फोन किया पर किसी को नहीं पता वो स्कूल के बाद कहाँ गया।

" राजेश कहाँ होगा हमारा बेटा... किस हाल में होगा...!" आशा रोती हुई बोली।

" पापा भाई कब आयेंगे...!" मिष्टी बोली।

" बेटा जल्दी आयेगा तुम रूम में जाओ अपने!" राजेश ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। और खुद अपने कमरे में जा अलमारी टटोलने लगा।

" आशा इधर आओ जल्दी... !" घबरा कर उसने आशा को आवाज़ दी।

" क्या हुआ राजेश रोहन का कुछ पता लगा!" आशा भागती हुई आई। 

" नहीं पर मेरी अलमारी में से क्लाइंट को देने के चार लाख रुपए गायब हैं!" राजेश बोला।

" क्या.........!" आशा धम से वहीं बैठ गई। 

" तुम खुद को संभालो आशा मैं पुलिस स्टेशन जाता हूँ!" राजेश बोला।

राजेश रोहन की फोटो ले पुलिस स्टेशन गया... इंस्पेक्टर को सब बात बताई।

" क्या पिछले कुछ दिनों से आप कोई बदलाव देख रहे थे अपने बेटे में!" इंस्पेक्टर ने पूछा।

" जी वैसे तो कुछ नहीं बस कुछ दिनों से वो ऑन लाइन गेम ज्यादा खेलने लगा था और तभी कुछ लोगों से चेटिंग भी होती थी उसकी!" राजेश ने कहा।

" ओह्ह्ह...। मुझे लगता है ये किसी गिरोह का काम है जो ऐसे गेम खेलने वाले बच्चों को बेवकूफ बनाते उनसे घर में चोरी करवाते... कई बार तो बड़े बड़े क्राइम भी करवाते!" इंस्पेक्टर ने कहा।

" सर मुझे मेरा बेटा ढूंढ कर दे दो आप प्लीज़...!" राजेश रोने लगा।

" देखिये हम पूरी कोशिश करेंगे ऐसे केस में कई बार बच्चे खुद भी वापिस आ जाते... आप चिंता मत कीजिये मैं अभी इस काम पर अपने आदमी लगाता हूँ आप घर जाइये जैसे ही कुछ पता लगता है मैं आपको फोन करता हूँ!" इंस्पेक्टर बोला।

" मेरा बेटा कहाँ है आप उसे लाये नहीं!" घर पहुँचते ही आशा ने राजेश से पूछा।

" मुझे माफ कर दो आशा मैंने तब तुम्हारी बात नहीं मानी काश मैं तभी तुम्हारी बात सुन लेता तो ये सब ना होता!" राजेश फूट फूट कर रो दिया।


आज रोहन को गए दो महीने बीत गए अभी तक उसका कोई पता नहीं चला... पुलिस पूरी कोशिश कर रही पर नतीजा अभी ज़ीरो ही है...उसका फोन भी लगातार बंद ही आ रहा है... आशा रोहन के गम में जिंदा लाश बन गई है... मिष्टी जैसे हंसना भूल गई है... और राजेश उसकी तो मानो दुनिया उजड़ गई... 


दोस्तों मोबाइल और कंप्यूटर आज भले बहुत बड़ी जरूरत बन गए है... पर हमें ये देखना होगा हमारे बच्चे उनका इस्तेमाल किस लिए कर रहे... ये ऑनलाइन गेम बच्चों का ब्रेनवाश कर देते और इन्हें चलाने वाले उन्हें अपने इशारों पर नचाते... वक़्त बीत जाए और आपके पास पछताने के सिवा कुछ ना बच्चे उससे पहले अपने बच्चों को बचा लीजिये।



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