अनूठी श्रद्धांजली
अनूठी श्रद्धांजली
कल विद्यालय को आरंभ हुए पाँच साल पूरे होने वाले थे। इस उपलक्ष्य में होने वाले आयोजन की तैयारियां चल रही थीं। सभी अपने अपने काम में व्यस्त थे।
इस विद्यालय के संस्थापक अशोक और उनकी पत्नी इंद्राणी विद्यालय के प्रांगण में भ्रमण कर रहे थे। जो भी उन्हें देखता अपना काम छोड़ कर उन्हें प्रणाम करता।
विद्यालय का नाम मानसी विद्यामंदिर था। मानसी उनकी स्वर्गीय बेटी का नाम था। मानसी एक बहुत ही होनहार छात्रा थी। उसकी योग्यता को देख कर साधारण आय वाले अशोक ने जैसे तैसे व्यवस्था कर उसे शहर पढ़ने भेजा था।
लेकिन मानसी की आँखों में पल रहे सुनहरे भविष्य के सपनों को कुछ शैतानों की हवस ने चूर चूर कर दिया। दंपति की दुनिया उजड़ गई।
कई महीनों तक पति पत्नी इस दुःख में इस कदर डूबे रहे कि जीने की इच्छा तक खत्म हो गई। बेटी की पहली बरसी पर उन लोगों ने तय किया कि पास की गरीब बस्ती में जाकर बच्चों को खाना खिलाएंगे।
वहाँ पहुँच कर उनके जीवन की दिशा ही बदल गई। बस्ती में कई ऐसे बच्चे दिखे जो पढ़ना चाहते थे। लेकिन परिवार के आर्थिक आभाव के कारण काम करने को मजबूर थे। पति पत्नी को जीने की नई राह मिल गई।
अशोक और इंद्राणी समय निकाल कर बस्ती में जाते। बच्चों को पढ़ना लिखना और अन्य अच्छी बातें सिखाते थे। पर उन्हें सदैव महसूस होता था कि यह पर्याप्त नहीं है। बच्चों के विकास के लिए उन्हें सही शिक्षा मिलना बहुत आवश्यक है। यह तभी संभव था जब उन बच्चों के लिए एक विद्यालय खोला जाए।
दोनों ने तय किया कि जो भी साधन जुटा सकते हैं उन्हें एकत्र कर वह बच्चों के लिए एक विद्यालय खोलेंगे। दोनों पति पत्नी ने अपने आप को इस लक्ष्य के लिए समर्पित कर दिया। अपना सब कुछ लगा दिया। लोगों से सहायता मांगी। इस तरह पाँच साल पहले मानसी विद्यामंदिर की शुरुआत हुई।
विद्यालय का भ्रमण कर दोनों पति पत्नी एक जगह जाकर बैठ गए। दोनों की ही आँखों में एक चमक थी।
अशोक ने अपनी पत्नी से कहा।
"याद है जब स्कूल खोलने की बात हुई थी तो मैं ये सोंच रहा था कि यह कठिन काम कैसे होगा। तब तुमने कहा था कि हम दोनों की इच्छाशक्ति मिल कर बड़ी ताकत बनेगी। तुम सही कह रही थीं। हम दोनों ने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया।"
गरीब बच्चों को शिक्षा का केंद्र देकर उन्होंने अपनी बेटी को अनूठी श्रद्धांजली दी थी।