अंतिम साँस
अंतिम साँस
ना जाने मुझे तब क्या था सूझा, बैल को खुद ( नशा रुपी )
आमन्त्रित किया, उसके सामने जा खडा़, ठोकर से उसकी मै आज गिरा ।
बात है ये उन दिनों की, कक्षा छटी में मै पढ़ता था, ना कच्ची , ना पक्की उम्र, ऐसा मैं नादान लड़का था ।
स्कूल से घर को जाते-जाते, कुलफी वाला मिलता था, इक दिन देखा उसको मैंने बीडी़ वो पीता था ।
देखा कश पे कश लगाते हुए, धुँए के छल्ले हवा में
उसको उडा़ते हुए ।
मेरे मन में लालसा जागी, दौडा़ गया मैं उसके पास ।
लेकर उससे जब मैंने बीडी़ का इक कश था लगाया,
खुद को इक आन्नद में पाया, खतरे की घण्टी है ये आन्नद
ईतना भी मैं जान ना पाया ।
छिप-छिप कर अक्सर फिर मैं बीडी़ के कश लगाता था,
Pocket money सारी मैं उसी पर ही उडा़ता था ।
बढ़ते-बढ़ते फिर मैं और नशों का भी आदी हुआ, रह सकता था ना मैं नशे बिन ऐसा मैं बेकस (मजबूर) हुआ।
धीरे-धीरे नशा मेरा बढ़ता रह, सेहत मेरी गिरती रही ।
जब college मैं जाता था, चरस, गाँजा, हफीम इत्यादि सारे शौक मैं फरमाता था ।
21 की अभी उम्र थी, ईक दिन मैं निढाल हुआ, किडनी, लीवर, फेफडेध भी सब जल कर भस्म हुए ।
पता चला जब पिता को मेरे, दिल के उस मरीज़ को
गहरा बडा़ आघात हुआ, पूछो ना फिर
या बीती थी , माँ मेरी अभागिन पर, ना वो जीती, ना
वो मरती, रो-रो कर बेहाल वो हुई ।
अन्तिम साँसें गिन रहा हूँ, उस वक्त को रो रहा हूँ, जब मैंने पहला कश था लगाया, क्यूँ मैंने अपने-आप को मारने को था बैल बुलाया।