Anita Sharma

Drama Romance Inspirational

3.4  

Anita Sharma

Drama Romance Inspirational

अनोखा प्यार

अनोखा प्यार

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 घर में चारों तरफ खुशी का माहौल है, क्योंकि वेदिका के भाई मानव की शादी है। आज वेदिका के पाँव जमींन पर नहीं पढ़ रहे थे क्योंकि वो आज वर्षों बाद अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने वतन अपने देश वापिस आई है। और खुश होने की एक और वजह है उसके पास आज उसकी बचपन की सबसे अच्छी सहेली कीर्ति भाभी बनकर उसके घर आ रही थी।

 उसे जो पता था कि उसके भाई और कीर्ति दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। और उनके प्यार को घर के बड़े पारम्परिक तरीके से शादी के बंधन में बांध रहे थे। 

घर आते ही वेदिका जल्दी से तैयार होने लगी। क्योंकि वो शादी वाले दिन ही घर पहुंची थी और सभी लोग बारात की तैयारियों में लगे थे। 

मुहूर्त के हिसाब से बारात तय समय पर कीर्ति के दरवाजे पर थी। नाच ,गाना, ढोल, नगाढ़े के बीच द्वार चार की रस्में निभाई जा रहीं थी कि तभी वेदिका को यूँ लगा कि कोई चेहरा उसे लगातार घूरे जा रहा है। पर वो उसे अपने मन का वहम समझ वापिस नाचने में मगन हो गई। 

दरवाजे की सारी विधियाँ होने के बाद दूल्हा बने मानव को जयमाल के लिये बने स्टेज पर पड़ी महाराजा कुर्सी पर बिठा वेदिका अपनी सहेली कीर्ति को देखने चल दी। फिर उसको यूँ एहसास हुआ कि कोई उसके पीछे है। उसने तुरंत पलट कर देखा पर कोई नहीं थी। वेदिका थोड़ा परेशान हो लम्बे - लम्बे कदम रख जल्दी ही कीर्ति के कमरे तक पहुँच जाना चाहती थी। 

घर के ज्यादातर लोग बाहर गार्डन में खाना खाने और बारात देखने में मस्त थे। तो अंदर इक्का दुक्का मेहमान ही थे, इसलिये जैसे ही वेदिका सीढ़ियों से होते हुये कीर्ति के कमरे तक गये बरामदे में पहुंचीं तो किसी ने उसका हाथ पकड़कर उसे खम्बे के पीछे खींच लिया। वेदिका की तो डर के मारे चीख ही निकल गई पर वो चीख उसके अंदर ही घुट कर रह गई क्योंकि उसे खींचने वाले शख्स ने उसका मुँह अपनी हथेली से दबाकर बंद कर दिया था। 

वेदिका उस शख्स को फटी आँखों से घूरे जा रही थी और अपने दिमाग पर उसे पहचानने के लिये भरसक जोर लगा रही थी। पर लाख कोशिशों के बाद न तो वो उस शख्स की पकड़ से खुद को आजाद कर पाई और न ही उसके दिमाग ने उसे पहचानने का कोई सिग्नल दिया। 

तबतक वो शख्स उसे सीढ़ियों पर घसीटता हुआ घर की सबसे ऊपरी छत पर ले आया था। वहाँ आते ही उसे शायद चिल्लाने से किसी के भी सुनने का खतरा कम लगा होगा इसलिये उसने वेदिका को अपनी पकड़ को थोड़ा ढीला कर दिया। 

पकड़ ढीली होते ही वेदिका ने नीचे की तरफ दौड़ लगाने की कोशिश की पर उस शख्स से उसका हाथ पकड़कर पीछे खींच लिया और बोला .........

"वेदिका बस एक बार मेरी बात सुन लो तुम मेरी आखरी उम्मीद हो अगर तुमने भी आज मेरा साथ न दिया तो मैं अपने प्यार को हमेशा के लिये खो दूंगा।"

"कौन हो तुम? 

मुझे ऐसे पकड़कर यहाँ क्यों ले आये? 

और तुम मेरा नाम कैसे जानते हो? 

मुझे जाने दो नहीं तो तुम्हारे लिये मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

उस शख्स के मुँह से अपना नाम सुनकर वेदिका ने कई सवालों के साथ धमकी भी दे डाली। जिसे सुनकर वो शख्स मुस्कराते हुये बोला..... 

"हाँ मेरी बहन। वैसे मेरी कोई बहन तो है नहीं पर मैंने सुना है की बहनों से बुरा कोई नहीं होता।"

 उस शख्स के मुँह से अपने लिये बहन सुनकर वेदिका आश्चर्य से बोली.... 

"बहन...!!? आखिर तुम हो कौन ? जो मुझे यहाँ उठाकर तो गुंडो की तरह लाये हो और रिश्ता बहन का बना रहे हो? "

"मैं बताता हूं सब बताता हूं बस तुम बिना चिल्लाये मेरी बात शान्ति में सुनने को तैयार हो जाओ। "


वो शख्स वेदिका के सामने हाथ जोड़कर बोला। अब तक वेदिका की भी उस शख्स को जानने की उत्सुकता बढ़ चुकी थी तो वो शान्ति से सारी बातें सुनने को तैयार हो गई ।और उस शख्स ने बोलना शुरू किया.......... 

" मेरा नाम वीर है। मैं कीर्ति से बहुत प्यार करता हूँ। और कीर्ति भी मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करती है।"


ये सुनकर वेदिका बीच में वीर को टोकते हुये बोली....

 

"एक मिनिट महाशय मुझे ये फालतू कहानी मत सुनाओ। क्योंकि मैं जानती हूँ कि कीर्ति और मेरा भाई दोनों एक दूसरे को बचपन से पसन्द करते है। 

दोनों स्कूल साथ गये है । अरे हम लोग तो जब बचपन में खेलते भी थे तब भी कीर्ति मेरे भाई की बीबी बनती थी।"

वीर वेदिका को बीच में टोकते हुये बोला... 

"वही तो मैं बताना चाह रहा हूँ कि वो बचपन का खेल था बचपन में खत्म हो गया। जब से कीर्ति कॉलेज गई तब से हम दोनों साथ है। कीर्ति तुम्हारे भाई मानव को अपना बहुत अच्छा दोस्त मानती है बस। और मानव ने उस दोस्ती को प्यार मान लिया। 

ये बात कीर्ति ने अपने मम्मी, पापा को भी बताई जब उस पता चला था कि तुम्हारे पापा ने कीर्ति के पापा से दोस्ती रिश्तेदारी में बदलने की बात की है। पर कीर्ति के पापा को भी यही लगा था कि वो दोनों एक दूसरे को पसंद करते है इसलिये कीर्ति से बिना पूछे ही उन्होंने रिश्ते के लिये हाँ कर दी।

और जब कीर्ति ने इस रिश्ते के लिये मना किया तो उसके मम्मी, पापा ने तुम्हारे घर से संबंध खराब होने की दुहाई दे उसे अपनी कसम देकर मजबूर कर दिया इस शादी के लिये। और एक वजह मैं भी हूँ क्योंकि मैं आप लोगों जितना पैसे वाला भी नहीं हूँ। तो अंकलजी मुझसे अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहते। मैं तो मानव से बात करने जा भी रहा पर कीर्ति अपने माँ, बाप के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी। इसलिये उसने मुझे भी ये कह कर और अपनी कसम देकर रोक दिया कि.......... 

" मैं नहीं चाहती की जब मानव को मेरे और तुम्हारे बारे में पता चले और वो एवं उनका परिवार मेरे पापा से कुछ भी गलत बोले तो मैं ये बरदाश्त नहीं कर पाऊँगी। मैं सारी जिंदगी जिन्दा लाश बनकर रह लूँगी पर अपने पापा का सर नहीं झुकने दूँगी। "

ये बताते -बताते वीर की आँखों के कोर गीले हो गये तबतक वेदिका थोड़ी परेशान सी होकर बोली. ...

"जब कीर्ति ने मेरे भाई से शादी करने का फैसला कर लिया है तो मैं क्यों ये बात अपने भाई को बताकर उनके शुरू हो रहे नये जीवन मैं जहर घोलूं "

"जहर तो वैसे ही घुल जायेगा जब कीर्ति सिर्फ शरीर से उसकी होगी उसकी आत्मा तो मुझमें बसी होगी। मेरा तुमसे बात करने का मतलब सिर्फ इतना है कि कीर्ति की कसम की वजह से मैं उससे बात नहीं कर सकता पर तुम तो कर सकती हो। मेरी कीर्ति को जिन्दा लाश बनने से बचा लो। "

दुखी होकर वीर ने फूट-फूटकर रोते हुये वेदिका के सामने घुटनों पर बैठ हाथ जोड़ दिये। 

"ठीक है मैं पहले कीर्ति से बात करूँगी तुम्हारी सच्चाई जानूँगी फिर देखती हूँ क्या करना है।"

कहते हुये वेदिका जल्दी जल्दी सीढ़िया उतर गई। और वीर भगवान से प्रार्थना करता हुआ आसमान की तरफ देखने लगा। 

वेदिका ने कीर्ति से बात की। कीर्ति सच में वीर से बहुत प्यार करती थी पर अपने माँ बाप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, इसलिये वो अपने प्यार की कुर्बानी देने को तैयार थी। 

वेदिका ने अपने भाई मानव से बात की। मानव कीर्ति से इतना प्यार करता था कि उसकी खुशी के लिये उसने अपना सहरा वीर को पहना दिया और कीर्ति के माँ, पापा को भी दोनों की शादी के लिये मना लिया। 


जयमाल लिये दुःखी मन से कीर्ति ने वर के गले में बिना देखे ही जयमाला डाल दी। तो वीर मुस्कराते हुये बोला.... 

"अरे मैडम एक प्यार भरी नजर हम पर भी डाल लो ऐसी भी क्या बेरुखी की अपने होने वाले पति का चेहरा भी देखना गवारा नहीं आपको। "

वीर की आवाज सुन कीर्ति ने आश्चर्य से ऊपर देखा और दूल्हे के रूप में वीर को देख खुशी से चहकते हुये बोली..... 

"तुम!!!! पर कैसे??? मम्मी, पापा...

आगे के सवालों को विराम लगाते हुये वेदिका स्टेज पर आकर बोली.... 

" बस-बस त्याग की देवी जी आपके मम्मी, पापा को मेरे भाई ने मना लिया है। "

तभी मानव कीर्ति के पास आकर बोला...... 

"कीर्ति मैं तो तुम्हें जीवन साथी बनाने जा रहा था। पर तुम तो मुझे अपना अच्छा दोस्त भी नहीं समझती। अगर समझती तो सीधे आकर मुझसे बात करतीं यूँ अपनी खुशियों को दाव पर न लगाती। "

मानव की बात सुन कीर्ति ने माफी मांगते हुये कान पकड़ लिये। इस अनोखे प्यार को देख वहाँ खड़े सभी मेहमानों की आँखें भर आई तभी वेदिका हँसते हुये बोली...... 

"अब रोना धोना खत्म हुआ हो तो जल्दी से वरमाला पहनाओ मुझे बहुत जोर से भूख लगी है।"

उसकी बात सुनकर सभी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई। और पूरे गार्डन में मधुर संगीत गूँज उठा ... 

"बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है।"



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