Nikita Vishnoi

Tragedy

5.0  

Nikita Vishnoi

Tragedy

अंकुश

अंकुश

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आज विधिता की जो हालात है उसके ज़िम्मेदार केवल मात्र तुम हो दादी माँ ,हां मुझे माफ़ करना कि मैं आपसे वादविवाद कर रहा हूं पर हक़ीक़त तो यही है जिसे आपको स्वीकार करनी ही पड़ेगी,आप के हर दिन के ताने उलाहने व्यंग कटाक्ष ने विधिता की हँसती ज़िन्दगी में ज़हर घोल दिया।

वो बांझ है इस बात का अहसास उसे तुम बार बार कराती हो, जिससे वो पहली वाली विधिता नहीं रही उसके चेहरे पर अनावश्यक दुख की काली परछाई को उससे लिपटे हुए देखा है मैंने, तुम्हारी सेवा के लिए तुम्हारे आदेश पर तुरन्त प्रतिक्रिया देने वाली विधिता को मैंने बदला हुआ देखा है।

आज से पहले इतने निराशा के बादलों में छुपी हुई विधिता को मैंने कभी नहीं देखा, एक ओर तो तुम उसे दूधो नहाओ पूतो फलों का आशीर्वाद देती हो तो वही दूसरी ओर कठोर वचनों से उस निश्छल विधिता के हृदय पर आघात करते तुम्हें लज्जा महसूस नहीं होती,

तुम भी एक औरत हो, तुम्हें उसके दर्द का मरहम बनना चाहिए माँ, न की दर्द से बदहाल हालात के जिम्म्मेदार, तुम हत्यारी हो माँ मेरी विधिता को तुम हर दिन मार रही हो।

उस पर तरह तरह की टिप्पणी करके तुम हाँ माँ जीते जी उसे मार रही हो। ये मानसिक रूप से अत्याचार करना तुम्हें एक हत्यारे की श्रेणी में खड़ा कर रहा है। आपसे निवेदन है माँ, मुझे मेरी वही हँसती खेलती पत्नी विधिता को लाकर दे दो जो इन दिनों गहरे अवसाद से आलिंगन कर बैठी है।

माँ मौन थी स्तब्ध रह गयी। शायद गलती का एहसास कुछ धीमे से ही पर होने लगा था।


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