Abhijit Kulkarni

Abstract

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Abhijit Kulkarni

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अंकिता

अंकिता

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शामके ७.०० बजने वाले हैं लेकिन सोनाली अभी तक अपने ऑफिस में काम कर रही है। कल उसके बॉस कंपनी के काम से विदेश जा रहे हैं उनके प्रजेंटेशन मे फायनल टच अभी बाकी है। ६.०० बजे तो आखिरी स्लाइड का डेटा मिला है, उसे डालके स्लाईड फायनल करके उसने बॉससे डिस्कशन तो कर लिया। पर एक बार में मान ले, वो बॉस क हाँ। चेंज के बाद चेंज, बताता है.

सोनाली अब थोडी सी परेशान दिख रही है। आज उसे वक्त पर निकलना था, जाते हुए हॉस्पिटल से रिपोर्ट कलेक्ट करना था। पूरा प्लान करके आई थी, लेकिन इस प्रेजेंटेशन ने उसके पूरे प्लांट को चौपट कर दिया था।वो फायनल टच मार ही रही है इतनेमे फोन बजता है,सोनाली: (मनमे) "अब कौन है, पहले ही‌ मैं जल्दी मे हूं।" 

फोन की तरफ देखती है 'हसबंड'

सोनाली:" हाँं, मनोज।"

मनोज: "सोनाली, पहूंची क्या?"

सोनाली: "अरे, क हाँ यार, अभी भी ऑफिस मे हूॅ।"

मनोज: "अरे!!!! क्या कह रही हो, अभी तक निकली नहीं?? दोपहर को तो बोली थी की टाईम पे निकलोगी!!" 

सोनाली: " हाँ! बोला तो था, पर नहीं निकल पाई! बॉस कल अॅब्रॉड जा रहे है, उनके प्रजेंटेशन, मिटींग की तैयारी कर रही हूं!" 

मनोज:" अरे, पर तुम्हे हॉस्पिटल भी तो जाना है। याद है ना? अब निकलोगी कब, पहूंचोगी कब, तुम् हाँरे पहुंचने तक तो बंद हो जायेगा।"

सोनाली: "अब बस हो ही गया, बस ५ मिनट में निकल रही हूं!"

मनोज: "जल्दी निकलो, और कूछ प्रॉब्लेम है तो मुझे फोन करदो। मुझे घर पहुंचने हे १० बज जाएंगे, अभी एक कॉल है। मैं २ घंटे बिजी रहुंगा। अगर फोन नहीं ऊठा पाया तो, मेसेज डाल देना। मैं कॉल कर दूंगा।"

सोनाली: "ओके, मैं रखती हुं अब, जल्दी खतम करके निकलना है।"

मनोज: "ठीक हैं। मिलते हैं।"

सोनाली ने अब प्रजेंटेशन तैय्यार करली, वो बॉस को ईमेल करती है और इंटरकॉम पे कॉल करती है

सोनाली: "सर मैने वो सब चेंजेस करके पी पी टी आपको भेज दी हैं, आप चेक कर लिजिये...............

सर, वो थोडा निकलना था, हॉस्पिटल जाना था, रिपोर्ट लेने के लिये, कुछ रहेगा तो अभी बता दिजिये, करके निकलती हूं।..............ठीक है सर, थॅन्क्स, फिर मैं निकलती हूं

(वो फोन रखके जानेकी तैयारी करती है)

पाच-सात मिनिट में वो अॉफीस से निकलती हैं. थोडी दूरर जाते ही उसे एहसास होता है की उसे भूख लगी है! वो बाजूवाले दूकान से चिप्स और बिस्किट्स उठाती है! अब वो टॅक्सी का इंतजार कर रही है, १० मिनिट हो गये पर, एक भी टॅक्सी नहीं रुकती है।

'आज क्या हो गया है? एक भी टॅक्सी नहीं रुक रही है!! हमेशा ऐसा ही होता हैं, जब‌ भी जल्दी होती है, कुछ ना कुछ जरुर बीच में आ जाता है, पहले बॉस, अब ये टॅक्सी।' वो मनमे सोचती हैं, उसके पेशन्स अब खत्म हो रहे है।

चलो बस स्टॉप तक चलती हूं, टॅक्सी नहीं तो कम से कम बस तो मिल ही जायेगी। ये सोचके वो बस स्टॉप की तरफ चल देती है। ५-७ मिनट में वो पहूंच जाती है। बसें आ तो रही है पर सब खचाखच भरली हुईं! वो अपनी एरिया वाली बसकी राह देखना शुरु कर देती है। खडे खडे अपनी बॅगसे चिप्स निकालती है।

चिप्स खाते खाते उसका ध्यान बार बार घडी की तरफ जाता है, 'समय बिता जा र हाँ है और ये बस आनेका नाम नहीं ले रही है। पता नहीं मै समयमें पहूंच पाऊंगी के नहीं' वो मन मे सोच रही थी.जैसे जैसे समय बितता जाता है, वो और बेचैन होती है, ना टॅक्सी ना ही बस, पता नहीं आज क्या प्रॉब्लेम है।

वो इधर ऊधर देख रही थी की अचानक उसका ध्यान बस स्टॉप के अंदरवाले बेंच पे बैठी एक नन्ही लडकीपर जाता है, वो लडकीभी उसीकी तरफ लेख रही थी 'क्या प्यारीसी बच्ची हैं, पर ये ऐसे अकेली क्यो बैठी हैं?' सोनाली मनमें सोचती हैं।सोनाली चारोतरफ देखती है, बस स्टॉप पे एक और आदमी खडा होता हैं, 'शायद ये बच्ची इनके साथ रहेगी, और कोई दिख भी तो नहीं र हाँ' 

२-३ मिनट बाद एक बस आके रूकती हैं, सोनाली आगे झूककर देबती है, पर ये बस भी सोनाली के काम की नहीं होती है. सोनाली फिर से पीछे होती है! वो देखती है की वो थोडी देर पहले बस स्टॉप पर खडा हुआ आदमी अब नहीं है, शायद उसने वो बस पकडली. 'अरे लेकीन ये क्या?? वो बच्ची अभिभी वही बैठी हैं' अब सोनाली को कुछ गडबड मेहसुस हुई। इतनी छोटीसी बच्ची इतनी रात, अकेली उस बस स्टॉप पर!! वो उस बच्चीकी तरफ जाती है। उसकी बगल में जाकर बैठती हैं। मैं कुछ बोलुंगी तो बच्ची डर जाएगी, वो पहलेसेही डरी हुई हैं।बच्ची उसकी तरफ देखती है और अपना अंग चुरा लेती हैं

वो बच्चीकी और देखके मुस्कुराती हैं। बच्ची सिर्फ देखती ही रहती हैं, कुछ जवाब नहीं देती है। सोनाली अपने पासवाला चिप्स का पॅकेट आगे बढाती हैं। ये नुस्का काम कर जाता है, वो बच्ची झटसे उसके हाँथसे वो पॅकेट छीन लेती हैं। चिप्स निकालती है और ४-५ खाने के बाद सोनाली की तरफ देखके मुस्कुराती हैं। चिप्स का पॅकेट छोटा होनेके कारण झटसे खत्म हो जाता है! खाली पॅकेट देखके ऊस बच्चीका चेहरा उतर जाता है। वो रोनीसी सुरतसे सोनाली की तरफ देखती है, सोनाली के समझमे आ जाता है की बच्ची को भूख लगी हैं, वो बैग मे से अभी खरीदा हुआ बिस्कूट का पुडा निकालती है और बच्ची की तरफ देखती है। बच्चीके चेहरे पे अब मुस्कुराहट वापस आई हैं। वो झटसे अपना हाँथ आगे बढाती हैं, सोनाली पुडा पीछे चुपाकर बच्चीसे पूंछती है "ये आपको तभी मिलेगा जब आप अपना नाम बताएगी" बच्ची उसे सुनकर अनसुना कर देती है। वो बिस्किट्स केलिये अपना हाँथ आगे बढाती हैं। सोनाली फिरसे उसे वही सवाल करती है, फिरसे कोई जवाब नहीं।' शायद बिस्किट्स मिलनेके बाद में जवाब दे दे' यह सोचकर सोनाली उसे बिस्किट्स का पुडा खोलकर दे देती है। बच्ची झपककर पुडा हाँथमे लेती हैं और बिस्किट्स निकालकर खाना शुरू कर देती है। ' अब बताओ आपका नाम!!' सोनाली उम्मीदमे उसे पूंछती है। बच्ची फिरसे अनसुना करके खाना शुरू रखती हैं। 'अब क्या करे? पूछने केलिये य हाँँ कोई है भी तो नहीं, चलो अब और थोडी देर इंतजार करती हुं, शायद भुख मिटने के बाद जवाब दे '

इतने मे एक बस आके रूकती हैं, सोनाली देखती है की ये बस तो उसकी घर की तरफ जानेवाली है। इतनी देरके बाद आखिर आ ही गयी, सोनाली बस की तरफ बढती है. वो बसमे चढने ही वाली होती है तभी उसका ध्यान बच्ची की तरफ जाता है। ' पर ये बच्ची?, इसका क्या? मैं इसे ऐसे अकेले कैसे छोड दु' वो वापस पीछे हटती है। बस अभी भी वही खडी है। सोनाली के मनमे हॉस्पिटल और बच्ची के बीच में द्वंद्व शुरू है। कुछही पलोमे वो बस निकलने वाली हैं। आखिर सोनाली पिछे हटती है, वो बच्चीको ऊस हाँलतमे नहीं छोड सकती। वो पीछे मुड के बच्ची की तरफ देखती है वो बच्ची बिस्किट खाना रोककर सोनाली की तरफ ही देख रही होती है उसके चेहरे को देखकर सोनाली को साफ पता चलता है कि वह बच्ची डरी हुई है। उसे डर है कि कहीं सोनाली निकल ना जाए इसलिए वह डरी सहमी सी सोनाली की तरफ देख रही है। जैसे ही सोनाली पीछे मुड़के उस बच्ची की तरफ चलने लगती है वह बच्ची मुस्कुराती है, उसको तसल्ली हो जाती है कि सोनाली उसे अकेला नहीं छोड़ेगी। वह वापस बिस्कुट खाने में दंग हो जाती है. अब कुछ भी हो जाए सोनाली उस बच्ची को अकेला नहीं छोड़ सकती. सोनाली बच्ची की तरफ जाती है. बोलती है "देखो अब मैं तुम् हाँरे लिए रुक भी गई हूं, अब तो तुम् हाँरा नाम बताओ" बच्ची सोनाली की तरफ देखती है शायद उसे सवाल समझ में आता है लेकिन कुछ बोलती नहीं। वह वापस बिस्कुट खाने में मशगूल हो जाती है। सोनाली उसे पूछती है "तुम् हाँरे मां बाप क हाँं है?मम्मी डैडी!! जैसे ही मम्मी डैडी का नाम सुनती है वह बच्ची बिस्कुट खाना रोके रोने लगती है उसके आंखों से आंसू छलकते हैं सोनाली बच्ची को अपने करीब ले लेती है "देखो बेटा, मैं तुम्हें तुम् हाँरे मम्मी डैडी के पास पहुंचा देती हूं, लेकिन क हाँं पर है वह तुम्हें य हाँं अकेला छोड़कर वह क हाँं चले गए।" बच्ची सिर्फ सोनाली की तरफ देखती है लेकिन कुछ नहीं बोलती। अपने हाँथ से उस तरफ इशारा करती है। "अच्छा, तुम् हाँरे मम्मी डैडी उधर गए हैं।" बच्ची फिर कोई जवाब नहीं देती। 'कहीं यह बच्ची गूंगी नहीं।' सोनाली मन में सोचती हैं। बेटा आप कुछ बोलती क्यों नहीं हो बच्ची सिर्फ सोनाली का मुंह ताकते रहती है। "बेटा आप बोल सकती हो?" फिर कोई जवाब नहीं। अब सोनाली को सूझ नहीं र हाँ कि करना क्या है। वह बच्ची को अपने साथ चलने के लिए कहती है। बच्ची झट से सोनालिका हाँथ पकड़ लेती है। सोनाली देखती है कि सामने एक दुकान है सोनाली बच्ची को लेकर दुकान की तरफ जाती है वह दुकानदार से पूछती हैसोनाली: भाई साहब, क्या आप इस बच्ची को जानते हैं? दुकानदार: नहीं मैडम, क्यों? क्या हुआ?सोनाली: यह बच्ची अकेले ही सामने बस स्टॉप पर बैठी थी! पता नहीं अकेले कैसे पहुंच गई, क्या आपने देखा उसे कौन व हाँं पर छोड़ गया।दुकानदार: नहीं मैम साहब मेरा ध्यान नहीं था। आप बच्ची से क्यों नहीं पूछ लेती?सोनाली: भाई साहब मैं कब से वही प्रयास कर रही हूं लेकिन लगता है यह बच्ची गूंगी है। कुछ बोलती ही नहीं है।वह दुकानदार बच्ची की तरफ देखता है दुकानदार: आपका नाम क्या है बेटा? आपके मम्मी डैडी क हाँं है? आपको य हाँं कौन छोड़ गया? आप क हाँं रहती हो?

बच्ची कुछ जवाब नहीं देती. वह सोनाली को लिपटकर उसके पीछे जाकर छुप जाती है।

दुकानदार: मैडम, आप पुलिस के पास क्यों नहीं जाती? वह इसके माता-पिता को ढूंढ लेंगे।

सोनाली: भाई साहब इतने छोटे से बच्चे को पुलिस के हाँथ में दे दूं! थोड़ा आगे जाकर पूछती हूं शायद कोई इस को पहचानने वाला मिल जाए। आप प्लीज एक काम कर सकते हैं? अगर कोई इस बच्ची को ढूंढता हुआ आ जाए तो उसे तो उन्हें उस तरफ भेज दीजिएगा। क्योंकि इस बच्ची ने अपना हाँथ उस तरफ दिखाया था। शायद इसका घर उधर ही है।दुकानदार: जरूर मैडम मैं जरूर बता दूंगा अगर कोई मदद लगी तो मुझे बता दीजिएगा।

सोनाली अब उस बच्ची को लेकर आगे बढ़ती है। थोड़ा आगे जाने के बाद उसे और चार पांच दुकानें दिखती है। उसमें से एक दुकान खाने-पीने की है। सोनाली बच्ची को लेकर उस दुकान में जाती है।सोनाली: भाई साहब आप इस बच्ची को जानते हैं। पहले कहीं से देखा है।दुकानदार: नहीं तो। क्यों? क्या हुआ? सोनाली: अरे यह बच्ची अकेली ही व हाँं बैठी थी। शायद बोल भी नहीं पाती है इसलिए बता नहीं पा रही है कि उसके माता-पिता क हाँं पर है। मैंने सोचा यही आसपास की रहेगी इसलिए पूछ रही हूं।

 दुकानदार: नहीं बहन जी। हमें तो नहीं पता। आप एक काम कीजिए। आगे 1 बच्चों के कपड़े की दुकान है। उन लोगों को शायद पता हो सकता है, वह बच्चों को आते-जाते देखते रहते हैं।सोनाली: ठीक है, धन्यवाद।

 सोनाली व हाँं से निकलती है, थोड़ा आगे जाने के बाद उसे कपड़े की दुकान दिखाई देती है। जैसे ही वह कपड़े की दुकान की तरफ बढ़ती है उसका फोन बजता है। फोन की तरफ देखती है 'हसबैंड'

सोनाली:  हाँं मनोज।मनोज: पहुंची क्या हॉस्पिटल? कुछ पता चला?सोनाली: अरे क हाँं यार!! मैं अभी तक यहीं पर हूं।मनोज: मतलब अभी ऑफिसमें हो?सोनाली: नहीं यार, ऑफिस से निकले बहुत समय हो गया। लेकिन थोड़ा रास्ते में अटक गई हूं।मनोज: मतलब? मैं कुछ समझा नहीं!! सोनाली: अब कैसे समझाऊं? जैसे ही मैं घर जाने के लिए बस स्टॉप पर पहुंची, तो एक छोटी सी अस हाँय बच्ची व हाँं पर अकेली बैठी थी, शायद गूंगी है। और उसके मां-बाप क हाँं पर है बता नहीं पा रही है। तो अभी मैं उसके मां बाप को ढूंढ रही हूं।

मनोज: अरे सोनाली यह क्या यार? तुम्हें पता है हॉस्पिटल जाना कितना इंपोर्टेंट है!!सोनाली: हाँं!! पता है, पर इस बच्ची को अकेला भी तो नहीं छोड़ सकती। कुछ हो गया तो?? तुम्हें पता है आजकल न्यूज़ में क्या क्या आ र हाँ है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरी उस पर नजर पड़ गई। अब दो तीन जगह पर पूछती हूं नहीं तो इसको पुलिस के पास ले जाती हूं।मनोज: हाँं सही है। बराबर क हाँ तुमने। ठीक है, तो देख लो ये सब हो जाने के बाद रिपोर्ट मिलता है तो, वरना कल लेना पड़ेगा। मुझे आने की जरूरत है?? सोनाली: अरे नहीं!! मैं मैनेज कर लूंगी। कुछ लगेगा तो मैं फोन कर दूंगी।मनोज: ठीक है। लेकिन, फोन करना। और कुछ गड़बड़ दिखाई दिए तो जरुर फोन करना, मैं तुरंत आ जाऊंगा। ओके, अब रखता हूं, वापस कॉल में जाना है।सोनाली: ठीक है, मैं बता दूंगी।

सोनाली फोन बंद कर अपनी बैग में रख देती है।अब सोनाली बच्चे को लेकर उस कपड़े के दुकान के अंदर जाती है।सोनाली: अरे भाई साहब, क्या आप इस बच्ची को जानते हैं? पहले कभी इसे देखा है?? दुकानदार: नहीं तो!! अरे गणेश, जरा देखो!! इस बच्ची को जानते हो?? गणेश बच्ची को ठिकसे देखता है और ना कर देता है

 दुकानदार: नहीं, नहीं बहनजी। हम में से कोई नहीं जानता इसे। पहले कभी नहीं देखा। क्यों क्या हुआ? कुछ प्रॉब्लम है? सोनाली: अरे हाँं!! मतलब, यह बच्ची अकेली ही उस बस स्टॉप पर बैठी थी। इसके मां-बाप क हाँं पर है कुछ पता नहीं इसलिए ढूंढ रही हूं।

दुकानदार: तो बच्ची से पूछ लीजिए ना!! सोनाली: अरे नहीं भाई साहब!! यह बच्ची गूंगी है। कुछ बोल नहीं पाती है। कब से वही प्रयास कर रही हूं।

 सोनाली बच्ची को लेकर दुकान से निकलती है। अब उसे समझ में नहीं आ र हाँ है कि करना क्या है!! वह बच्ची की तरफ देखती है। वह बच्ची मासूम चेहरे से सोनाली की तरफ देख रही है। अब सोनाली को उस बच्ची में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्ट आने लगता है। वह उस बच्ची में इन्वॉल्व हो जाती है। अगर कोई नहीं मिलता है तो वो उसे घर ले जाने के लिए भी तैयार हैं। 

सोनाली: बेटा और कुछ चाहिए? कुछ खाना पीना है?

 बच्ची अपना सर हिलाती है।

सोनाली: चलो पहले एक काम करते हैं। आपके कपड़े कितने मेले हो गए हैं। आपके लिए कुछ कपड़े ले लेते हैं।

 सोनाली पीछे मुड़कर उस दुकान में वापस जाती है। 

सोनाली: भाई साहब, इस बच्ची के साइजका कुछ फ्राक वगैरह मिलेगा? इसके कपड़े बहुत गंदे हो गए हैं।

दुकानदार: क्यों नहीं बहनजी! अभी दिखाता हूं। अरे गणेश, जरा बहन जी को कपड़े दिखाना बच्ची के लिए।।

दस मिनट १०-१२ फ्रॉक्स देखने के बाद सोनाली उसमें से दो फ्रॉक उठाती है। बच्ची को पूछती है, कि उसे अच्छा लगा?? बच्ची खुशी से हाँं कर देती है। सोनाली दुकानदार से वह दोनों फ्रॉक खरीद लेती है। 

बच्ची को वहीं दुकान के ट्रायल रूम में फ्रॉक पहनाने के लिए ले जाती है। पहले उस दुकानदार से थोड़ा पानी पानी लेकर बच्ची का मुंह साफ करती हैं, और फिर उन दोनों में से एक अच्छा सा फ्रॉक देखकर उस बच्ची को पहनाती है। साफ होने के बाद वह बच्ची बहुत ही प्यारी लगने लगती हैं। सोनाली उसकी तरफ देखती ही रहती है। इधर खुद को नए फ्रॉक में देखकर बच्ची बहुत खुश हो जाती है, और सोनाली से लिपट जाती है। सोनाली भी बच्ची को अपने करीब ले लेती है। 1 मिनट के बाद सोनालीको याद आता है के इस बच्ची को अपने मां-बाप के पास छोड़ना है और मुझे हॉस्पिटल जाना है।

 घड़ी में करीब 8:15 होने वाले हैं, 'अरे आज तो हॉस्पिटल होने से र हाँ, 8:30 बजे तो लॅब बंद हो जाएगा। इसका मतलब है आज रिपोर्ट मिलने वाला नहीं है।' वह तुरंत दुकान के बाहर आती है और लैब में फोन लगाती है।

"मैं सोनाली बोल रही हूं, मुझे हॉस्पिटल पहुंचते बहुत देर हो जायेगी, क्या प्लीज आप मेरा रिपोर्ट हॉस्पिटल के रिसेप्शन पर रख सकते हैं??" हाँं मैंने ऑलरेडी कर दिया है"" आप व हाँं पर रख दीजिए मैं घर जाते हुए उठा दूंगी"" प्लीज कीजिए ना भाई साहब"

 सोनाली फोन रख देती है अब पुलिस के पास जाने के पास सिवा उसके पास और कोई चारा नहीं बचा। 'तीन चार दुकानों में तो पूछ लिया, अब थोड़ी देर में तो दुकानें भी बंद हो जाएगी। और कितनी दुकानों में जाऊं??' यह सोचकर सोनाली आगे जाती हैं, थोड़ा आगे जाने के बाद उसे एक स्कूल नजर आता है। स्कूल के बाहर सिक्योरिटी वाला गार्ड भी बैठा है। सोनाली को एक आखिरी उम्मीद दिखाई देती है, वह स्कूल के पास जाती है और गार्ड से पूछती है। 

सोनाली: भाई साहब आप इस बच्ची को जानते हैं क्या? यह बच्चे य हाँं पर पढती तो नहीं?सिक्योरिटी गार्ड: मेम साहब मैं तो रात का गार्ड हूं। ये दिन में आती होगी तो मुझे नहीं पता। आप बच्ची सेही पूछ लीजिए ना!!सोनाली: यह बच्ची बोल नहीं सकती, यही तो प्रॉब्लम है।सिक्योरिटी गार्ड: तो मेम साहब इस स्कूल में नहीं पढ़ सकती। ईस स्कूल में वैसी कोई क्लास नहीं है।

सोनाली: ठीक है धन्यवाद।। क्या आपको पता है कि य हाँं पर पुलिस स्टेशन क हाँं पर है?

सिक्योरिटी गार्ड:  हाँं मेम साहब। थोड़ा आगे जाने के बाद एक स्लम एरिया मिलेगा, वहीं पर लेफ्ट में पुलिस चौकी है।

सोनाली: थॅंक्यु भाईसाहब।।

 सोनाली बच्ची को लेकर आगे की तरफ जाती है। बीच में उसे गुब्बारे वाला और खिलौने वाला दिखता है। सोनाली बच्ची के लिए दो तीन खिलौने लेती है, और फिर उसके हाँथ में एक गुब्बारा भी दे देती है। बच्ची और ज्यादा खुश हो जाती है ।उसकी तो आज दिवाली ही है, अच्छा खाने को मिला, अच्छे कपड़े, अच्छे खिलौने मिले। बच्ची बहुत खुश हो जाती है, और उसकी खुशी देखकर सोनाली और खुश हो जाती है। 

'बस यही खुशी तो देखनी है, और क्या' वह मन में सोचती है।

 5 मिनट आगे जाने के बाद सोनाली को पुलिस चौकी दिखाई देती है। वह पुलिस चौकी के अंदर जाती है व हाँं पर एक हवलदार साहब बैठे रहते हैं।सोनाली: हवलदार साहब, मेरा नाम सोनाली है, यह बच्ची मुझे एक बस स्टॉप पर मिली य हाँं से आगे हनुमान चौक में जो बस स्टॉप है ना उस स्टॉप में यह बच्ची अकेली बैठी थी। पता नहीं इसके मां-बाप वगैरह कौन है!! और यह बच्ची बोल भी नहीं सकती। तो मैंने सोचा शायद आप मेरी कुछ मदद कर सकते हैं।।

 हवालदार बच्ची की तरफ देखता है 

हवलदार: अरे, एक मिनट में शायद मैं जानता हूं। अभी थोड़ी देर पहले किसी ने य हाँं पर एक बच्ची को जाने की खबर दी थी। 1 सेकंड, आपको बच्ची का नाम पता है ??

सोनाली: जी नहीं साहब, मैंने क हाँ ना, यह बच्ची बोल नहीं सकती

 हवलदार एक पेपर निकालता है उस पर साथ एक फोटो भी लगा रहता है। फोटो बच्ची से मैच करता है। सोनाली भी फोटो देखती है।

हवालदार: रुकीये, बच्ची को लेकर यहीं पर रुकीये। मैं उसके माता-पिता को बुला लेता हूं। वे सामने ही रहते हैं ।

सोनाली व हाँं पर एक कुर्सी पर बच्ची को लेकर बैठ जाती है।

अब उसे खुशी भी है और दुःख भी है कि बच्ची के माता-पिता मिल गये। 'अब वे आकर इसे ले जायेंगे। ' वो मनमे सोचती है।

 करीब 10 मिनट के बाद एक गरीब औरत दौड़ते दौड़ते पुलिस चौकी में घुसती है। जैसे ही वह सोनाली के पास बैठी बच्ची को देखती है तुरंत भाग के उसे उठा लेती है।

 औरत: अरे अंकिता, क हाँं थी मेरी बच्ची?? कब से ढूंढ रहे हैं तुम्हें!! जाने बिना बताए क हाँं चली गई?

 पीछे से बच्ची के पापा भी चले आते हैं। वह भी नजदीक आके सोनाली को गले लगा लेते हैं।

बच्ची के पिता: अरे मेरी बच्ची क हाँं चली गई थी तुम?? क हाँं क हाँं नहीं ढूंढा तुम्हें।।


 वह दोनों हवालदार के पास चले जाते हैं।

बच्ची के पिता: धन्यवाद हवलदार साहब। बच्ची को ढूंढने के लिए।

हवालदार: अरे धन्यवाद मेरा मत कीजिए। धन्यवाद उनका कीजिए, वो मैडम आपकी बच्ची को सही सलामत य हाँं तक लेकर आई हैं।

तभी उसके माता-पिता को यह भी ध्यान में आता है कि अंकिता के कपड़े भी नए हैं। उसके हाँथ में खिलौने भी है। वह सोनाली के पास जाते हैं।

बच्ची की मां: मैडम पता नहीं कैसे आपका शुक्रिया अदा करें । हम तो शाम से रो रो के पागल हो गए हैं। बच्ची कहीं मिल नहीं रही थी। कई जगह ढूंढ के आ गए, कहीं कुछ पता नहीं चल र हाँ था।

बच्ची के पिता: अभी भी मेरे कुछ दोस्त बच्ची को ढूंढने के लिए गए हैं। आपको क हाँं मिली है??

सोनाली: जी यह हनुमान चौक में बस स्टॉप पर बैठी थी। मैं अपने ऑफिस से निकली थी और बस के लिए वेट कर रही थी। देखा तो यह बच्ची अकेली पीछे बैठी थी। मैंने पूछने की बहुत कोशिश की लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी। 

बच्ची की मां: मैडम अंकिता बोल नहीं पाती।

सोनाली: बीच में बहुत सी जगह पर पूछा, पर कोई इसे पहचान नहीं सका। इसलिए सीधा पुलिस थाने चली आई।

बच्ची की मां सोनाली के पैर छुने लगती है, सोनाली उन्हें रोककर उठा लेती है,

सोनाली: अरे, ये क्या कर रही है आप??

बच्ची की मां: आपके बहुत एहसान हुए हैं हमपे।

सोनाली: इसमें एहसान की क्या बात है! !! 

लेकिन हनुमान चौक तो य हाँं से बहुत दूर है यह बच्ची य हाँं से व हाँं पर कैसे पहुंच गई??

 बच्ची के पिता: वह क्या हुआ शाम को मैंने उसे थोड़ा डांटा था, और उसने रोना चालू कर दिया। रोते-रोते बाहर चली गई। हमें लगा यही बाहर जा कर बैठी है, या पड़ोस में दोस्तों के पास गई है, आएगी अभी। लेकिन आधा घंटा होने के बाद जब वह वापस नहीं आई, तो हमने उसे ढूंढना चालू कर दिया। हम दोनों ने आजू-बाजू में बहुत सी जगह पर ढूंढा। बहुत लोगों को पूछा लेकिन किसी से कुछ पता नहीं चला। रो रो के इसकी तो जान ही निकल रही थी, तभी हमने पुलिस स्टेशन आकर कंप्लेन लिखवाई और फिर ढूंढने के लिए चले गए थे।

 जैसे ही हवलदार साहब का फोन आया, तुरंत दौड़कर आ गए।

 सोनाली: "अरे भाई साहब इतनी छोटी सी बच्ची को कोई डांटता थोड़ी है??"

बच्ची के पिता: "अब क्या करें मैम साहब? यह तो होता ही रहता है। कुछ ना कुछ करना पड़ता है। लेकिन हमें क्या पता वह घर छोड़ कर चली जाएगी।"

 सोनाली:" भाई साहब आइंदा से इसको मत डांटीये। कितनी प्यारी बच्ची है, ऐसी बच्ची को कोई डांट भी कैसे सकता है।"

बच्ची के पिता: "जी मेम साहब बिल्कुल हम ध्यान रखेंगे। और यह कपड़े खिलौने वगैरह??सोनाली: अरे वह तो प्यारी सी अंकिता के लिए मेरी तरफ से छोटा सा तोहफा है। उसकी वजह से मेरी शाम बहुत अच्छी कटी। बहुत प्यारी बच्ची है आपकी, मैं उसे मिलने के लिए वापस आऊंगी।"

बच्ची की मां: "अरे जरूर मेम साहब आप कभी भी आइएगा, और पता नहीं मैं आपका शुक्रिया कैसे अदा करूं।"

सोनाली: "उसकी कोई जरूरत नहीं है खुशी तो मेरी थी मुझे अंकिता के साथ थोड़ा समय बिताने को मौका मिला। जाओ बेटा, अपने घर जाओ। हम बाद में वापस मिलेंगे।

अंकिता झट से अपने पापा की गोदी से अंकिता की तरफ झपकती है। वह बहुत खुश है, आज उसको बहुत नई चीजें मिली। खिलौने मिले, कपड़े मिले। वो सोनाली को एक झप्पी दे देती है और फिर उतर कर अपने मां बाप के साथ चली जाती है।सोनाली उनके पीछे पुलिस स्टेशन से नीचे उतरती है और आगे जाने वाली अंकिता को देखने लगती है।

आज उसे जल्दी थी, लेकिन उसका समय बहुत अच्छा बीता था। तभी उसे ध्यान आता है 'अरे ८:४५ तो बज गए पता नहीं वह लैबोलेने रिपोर्ट रखी है कि नहीं'व हाँं से टैक्सी गुजर रही है सोनाली हाँथ दिखाती है, टैक्सी रुक जाती है "भैया मेट्रो हॉस्पिटल जाना है, राजेंद्र नगर। चलेंगे??" "चलिए" टैक्सी वाला तैयार हो जाता है। सोनाली टॅक्सी में बैठकर हॉस्पिटल की तरफ निकलती है। 20 मिनट में हॉस्पिटल पहुंच जाती है। जैसे ही हॉस्पिटल में घुसती है अपनी दाहिनी तरफ देखती है, लॅब बंद हो गई है। हॉस्पिटल के रिसेप्शन पर जाती है

" मेरा नाम सोनाली है, मेरे लिए, लॅबवालों ने कुछ रिपोर्ट रखे हैं क्या??

 रिसेप्शन वाली लड़की टेबल पर रखा हुआ एक लिफाफा सोनाली के हाँथ में दे देती है।जैसे ही लिफाफा मिलता है, सोनाली की धड़कन तेज हो जाती है। 'पता नहीं अंदर क्या लिखा है?' वह मन में सोचती है।

"थैंक यू वेरी मच"

 सोनाली उसे बोलती है और वह रिपोर्ट लेकर हॉस्पिटल की लॉबी में आ जाती है। व हाँं पर भगवान की मूर्ति है, सोनाली हाँथ जोड़कर भगवान को प्रणाम करती है और वह लिफाफा खोलती है।

 जैसे ही वह रिपोर्ट पढती है, उसकी आंखों से आंसू छलक ने लगते हैं। वह भगवान को और एक बार प्रणाम करती है, और आंसू पोंछती है।

 क्यों ना हो? आखिर शादी के 15 साल बाद और 4 बार आईवीएफ फेल होने के बाद आखिरकार वह मां बनने जा रही है। अपने पांचवें और आखरी अटेम्प्ट में। डॉक्टर ने उसे चेतावनी दी थी के ये अटेम्प्ट नहीं करना चाहिए क्योंकि उसकी उम्र अब ज्यादा है, और ये रिस्क हो सकता है। फिर भी वो ये रीस्क लेती है।।

उसका दिल में भर आता है। तुरंत उसके सामने अंकिता का चेहरा आ जाता है। और वह अपने पर्स में हाँथ डालती है, अपना फोन निकालने के लिए।

 यह खुशखबरी मनोज को भी तो देनी है।

 उसने तो बच्ची का नाम भी सोच लिया है 'अंकिता'।।


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