कही-अनकही
कही-अनकही


"लेकिन तुम गलत हो।"
"अच्छा, कैसे ?"
"तुमने उसका दिल दुखाया,उसने तुम्हे अपने मन की बात कही थी।"
"और मेरे मन का क्या ?"
"मतलब नही समझा।"
"वो जिस तरफ जा रहा था वो राह मैने कभी सोची तक नही।"
"फिर भी तुम गलत हो।"
"नही गलत मैं नहीं अब तुम हो !"
"कैसे ?"
"तुम एक बार भी मेरी नजर से नही देख रहे ,दोस्त ही हो न मेरे ?"
"हाँ ।"
"खैर, मैं तुम्हारी वजह समझ गई की तुम ऐसा क्यूँ कह रहे हो !"
"क्यूँ कह रहा हूँ ?"
"तुम अभी तक अपने पहले प्यार को भुला नहीं पाये, उसकी मजबूरी को उसकी बेवफाई समझते हो।"
"तो तुम कौन सा भुला पायी।"
"यही ,
यही फर्क है जो तुम समझ लो तो।"
"क्या ?!!!"
"कुछ नही ,वो मेरा पहला प्यार नही था ,वो फ़ीलिंग ही नहीं थी उसको लेकर,सिर्फ भरोसेमंद दोस्त था वो।"
"रहने दो,बहुत सुने ऐसे किस्से ।"
"मत मानो, मगर मेरा सच यही है 'वो' पहला प्यार नही था, बस्स।"
"कहती रहो,मुझे क्या!!"
"ओके ! पर एक बात और ।"
"बोलो।"
"तुम अगर ऐसे अतीत की कड़वाहट में डूबे रहोगे तो किसी का पहला प्यार हो कर भी किसी के ... पूरे नहीं हो पाओगे।"
"अच्छा जी ? माफ किजीये मुझे किसी का होना भी नही है।"
" हो भी नही पाओगे खुद ही, कह दे रही हूँ। पर, किसी के किये की सज़ा किसी ओर को देना ठीक नहीं, गुडबाय।"