अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
रंजना सोच रही थी--
"अब मैं इस रिश्ते को क्या नाम दूं ? भाई, पिता, चाचा, ताऊ से सभी प्रकार की बातें की नहीं जा सकती, आदमी और औरत की दोस्ती समाज स्वीकार नहीं कर सकता। फिर आखिर क्या नाम हो, इस रिश्ते का?
दुनिया तो नाम पूछती है शक की निगाहों से देखती है जब तक रिश्ते का नाम न बताओ किसी को चैन नहीं मिलता। क्या अपने क्या पराए सभी को रिश्ता चाहिए और वो भी नाम वाला। बिना नाम के यहां काम नहीं चलता।
लड़का- लड़की आदमी- औरत आपस में जरा- से हंस बतिया क्या लिये सभी में कानाफूसी शुरूसभी की सोच गलत दिशा में उड़ान भरने लगती है।
अरे ! पवित्रता अपनत्व अहसास संवेदनाएं भी तो हैं क्या बात करने से गलत रिश्ता हो जाता है ?
हाँ, करती हूं बात मैं शर्मा जी सेसुनते हैं सुनाते हैं एक दूजे को अपने दुःख- दर्द ये गुनाह नहीं है गलत नहीं है। किसी के दर्द को बांटनाकिसी के चेहरे पर मुस्कराहट लानारोते को हंसाना । किसी की सेवा करना ये सभी पुण्य के कार्य हैं।
हाँ, है हमारा एक अनकहा अनाम रिश्ता जिसकी हम कद्र करते हैं। "
रंजना की सोच ने उसे राहत प्रदान की। अब वह अनकहे रिश्तों के साथ थी।
