अनदेखी

अनदेखी

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छवि जब बहू बनकर आई थी, तब से उसकी एक ही कोशिश रहती थी कि किसी को कोई शिकायत का मौका ना मिले।

अपनी शक्ति से अधिक कार्य करती थी। पर उसकी सासू माँ की एक आदत थी उसके किए हुए कार्यों की कभी तारीफ नहीं करती थी । बस इसे यह नहीं आता इसे वह नहीं आता की रट लगाए रहती थी।

नई -नवेली होने और संस्कारों के कारण छवि कभी पलट कर जवाब नहीं देती थी। काफी समय इसी तरह से बीत गया। एक तो जी तोड़ काम उस पर सासू माँ की झिक -झिक से छवि का चेहरा मुरझाने लगा था।

छवि का पति चिराग उससे प्यार तो बहुत करता था परंतु जैसे ही बात माँ की होती तो वह कुछ भी सुनना पसंद नहीं करता था। छवि अंदर ही अंदर घुटती जा रही थी।

एक दिन सभी ने चूल्हे पर बनी हुई रोटियाँ खाने की इच्छा जताई। तो सासू जी छवि पर व्यंग्य कसने लगी इससे तो चूल्हे पर रोटियाँ नहीं बनेगी।

छवि सभी के चेहरे पढ़ सकती थी सभी उसकी तरफ इस भाव से देख रहे थे जैसे कि उसे कुछ नहीं आता। सुबह से शाम तक वह इतने काम करती थी क्या किसी को दिखाई नहीं देता था? क्या किसी के कार्यो की अनदेखी करना उचित है? किसी भी व्यक्ति से बढ़ चढ़ के उम्मीदें करना क्या उचित है? छवि को यही सिखाया गया था की बड़ों को पलट कर जवाब नहीं देना चाहिए। पर क्या बड़ों की कोई मर्यादा नहीं कि वह भी छोटो का मान करें छवि के मन में यही वाद- विवाद चल रहा था अब छवि से रहा नहीं गया उसने तपाक से उत्तर दिया-" माँ जी यह सच है कि मुझे चूल्हा जलाना नहीं आता परंतु कई कार्य ऐसे हैं जिन्हें मैं आप से अधिक कुशलता से कर सकती हूं। हर किसी को हर कार्य नहीं आता और यह कोई हास्य का विषय नहीं है और यदि कोई व्यक्ति किसी एक कार्य को दक्षता से नहीं कर सकता इसका तात्पर्य यह बिल्कुल नहीं है कि वह अयोग्य है। कार्यों को करना अनुभव की बात होती है। किसी भी कार्य को कई बार कर लेने पर उसमें दक्षता हासिल होती है। और यदि कोई कार्य किसी के लिए नया है तो उसे सीखने में थोड़ा समय लगता है।"

छवि की सासु माँ ने उसकी सादगी को नहीं समझा अक्सर ऐसा ही होता है कि हम बड़ों को मान देने के लिए उनकी अनुचित बातों को अनसुना कर देते हैं।

परंतु सम्मान पाने के लिए सम्मान देना भी जरूरी है।



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