अनचाहा मिलाप
अनचाहा मिलाप
सोफे पर पड़ी किसी उड़िया फिल्म के सीन को देखकर मीनू के हाथ का रिमोट थम गया।संवाद तो नहीं समझ पा रही थी पर सीन वह स्पष्ट समझ रही थी। अनचाहा मिलाप कब घुलकर परिवार और घर का रूप ले लेता है पता ही नहीं चलता। सचमुच! यह तो मेरी ही कथा है- मन ही मन मीनू बुदबुदायी और धम्म से सोफे पर पसर कर देखने लगी।अभी वह घर पर अकेली थी वरना सब रहते तो रिमोट छूने की भी फुरसत न मिलती ।
उसकी नजर टीवी पर तथा मन अतीत भ्रमण करने लगा।उसे अब भी याद है, नरेन से उसका विवाह उसके मौसा जी ने करवाया था। पहली बार नरेन व मीनू ने एकदूसरे को विवाह मंडप में ही देखा था।नरेन मीनू को देखकर स्तब्ध व मुग्ध हो टकटकी लगाकर निहारे जा रहा था।सचमुच! "तुम बहुत खूबसूरत हो" धीरे से उसने सबसे नजरें बचाकर कहा।मीनू शर्म से और भी सिमट गई । पर न जाने क्यों उसे नरेन अच्छा न लगा।विवाह के बाद कई दिनों तक वह नरेन से उखड़ी उखड़ी ही रहती थी।पर वह समझदार था।उसने मीनू को थोड़ा समय दिया ताकि वह स्वतः उससे घुले मिले।
शरीर का मिलन तो हो गया पर मन का मिलन न हो सका।धीरे धीरे समय बीतता रहा।दो बच्चों के वे माता पिता बन गये। बच्चों के आने से मीनू का ह्रदय परिवर्तन हुआ।अब नरेन के बिना उसका एक काम न हो पाता। समस्याओं को दोनों ने मिलकर झेला। इस प्रकार कब दोनों को एक दूसरे के साथ मिलकर जीने की आदत पड़ गई पता ही न चला। एक दिन मीनू ने कहा-"सुनो"
"हाँ " बोलो सुन रहा हूँ ।
अगर मुझे कुछ हो गया तो!
"मुझे भी कुछ हो जाएगा" तपाक से नरेन ने कहा और मीनू के समीप आकर बोला- ये दो शैतान मैं अकेले न संभाल पाऊँगा। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता।"
"पर तुम बताओ अगर.......अगर मुझे कुछ हो गया तो?"
नरेन के ये शब्द सुनते ही मीनू फूट फूट कर रोने लगी।नरेन तो घबड़ा गया।बड़ी मुश्किल से उसने मीनू को चूप कराया।
मीनू आज सोफे पर बैठी उन बातों को सोच कर हैरान थी।कब वह नरेन के इतना करीब आ गई उसे पता ही न चला । एक अनचाहा मिलाप कब प्यार का शक्ल अख्तियार कर लिया पता ही न चला। सचमुच! सात फेरों में अनचाहे को चाह में बदलने की ताकत होती है।
रिंगबेल बजी तो उसकी तन्द्रा भंग हुई ।दरवाजा खोला तो डाकिया था जो एक और अनचाहा मिलाप का कार्ड थामे दरवाजे पर खड़ा था।मीनू हाथ में कार्ड लेकर मुस्करा उठी। सुखद स्मृतियों ने उसमें उर्जा भर दी थी ।वह उठी और काम में लग गयी क्योंकि बच्चों के स्कूल से आने का समय हो गया था ।

