अनचाहा मेहमान
अनचाहा मेहमान
कल शाम को किसी कारणवश मेरे माता और पिता को मेरी दादी के पास जाना पड़ा। मेरा जाने का मन नहीं था इसलिए मैंने घर पर ही रुकने का फैसला किया। मुझे घर पर रुकने की इजाजत भी मिल गयी। 10 बजे तक मैंने खाना खा लिया और सोने के लिए तैयार हो गया। मुझे भूतिया कहानियाँ पढ़ने का बहुत शौक था इसलिए मैं अपने बिस्तर पर बैठकर ‘डर का सामना’ नामक पुस्तक पढ़ने लगा। उस पुस्तक में बहुत सी छोटी-छोटी कहानियाँ थी। ऐसी ही एक कहानी पढ़ते वक्त मुझे नींद आ गयी। सोते-सोते अचानक मेरी नींद खुली। तब मुझे पता चला कि मैं पुस्तक पढ़ते-पढ़ते ही सो गया था। मैंने समय देखा तो पता चला कि रात के 2:45 बज चुके थे। मैं अपने बिस्तर से उठा और वो पुस्तक रखने के लिए अलमारी की ओर जाने लगा। तभी मुझे एक दस्तक सुनाई दी। वो दस्तक मेरे घर के मुख्य दरवाजे से आई थी।
मैं सोचने लगा कि आखिर इतनी रात को कौन आया होगा। पता लगाने के लिए मैं दरवाजे की ओर चल दिया। दरवाजे की पास पहुँचते ही मेरे हाथ से वो पुस्तक गिर गयी और उसमें से एक पन्ना खुल गया। उस पन्ने पर एक चित्र बना हुआ था जिसमें एक डरावने चेहरे वाला कोई व्यक्ति एक दरवाज़े के पीछे से झाँक रहा था। अगर मैं वो संकेत समझ जाता तो बच जाता परंतु मैंने उस चित्र को नजरअंदाज करते हुए वो पुस्तक उठाकर एक जगह पर रख दी। मैंने अंदर से आवाज़ देकर पूछा कि बाहर कौन है तथा उसे क्या चाहिए परंतु इसके उत्तर में कोई भी जवाब नहीं आया। मैं मुड़कर अपने बिस्तर की और जाने वाला ही था कि किसी ने एक बार फिर दस्तक दी। उस दस्तक के आते ही मुझे कुछ शब्द सुनाई देने लगे जिनसे मैं उस दरवाजे को खोलने की ओर आकर्षित होने लगा। मैं उस दरवाजे को खोलने वाला ही था कि अचानक मेरे सर में बहुत तेज दर्द होने लगा। दर्द से पीड़ित होने के बावजूद मैं उस दरवाजे को खोलने के लिए आगे बढ़ा।
दरवाजा खुलते ही वो दर्द और आवाजें दोनों बंद हो गयी और मैंने खुद के सामने एक काले रंग का चोगा पहने किसी व्यक्ति को खड़ा पाया। उसका चेहरा छिपा हुआ था। दरवाजा खुलते ही मेरी आस-पास की जगह भी बदल गयी। हर तरफ़ सिर्फ सफ़ेद रोशनी थी और उस रोशनी में मेरे साथ सिर्फ वो व्यक्ति ही था। मैं कुछ समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी वो व्यक्ति जोर से बोला – “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” इससे पहले की मैं कुछ बोलूँ, मेरे चारों तरफ से एक तेज आवाज़ आयी जो कि थी – नहीं। तब उस व्यक्ति ने अपना चेहरा दिखाया जिसे देखकर मैं चौंक गया क्योंकि उसका चेहरा हु-ब-हु मेरे चेहरे से मिलता था। मैं उसे देख ही रहा था कि तभी उसने अपने दोनों हाथों से मेरा माथा पकड़ लिया और जोर से चिल्लाया। उसके ऐसा करने पर मुझे एक दृश्य दिखा। उस दृश्य में मेरे पास वो सभी चीजें थी जिन्हें मैं हमेशा से चाहता था। उसके बाद उस व्यक्ति ने अपना हाथ हटा लिया और बोला, “मैं तुम्हारी ये इच्छाएँ पूरी कर सकता हूँ अगर तुम मुझे अंदर आने दो तो।
इसलिए मैं दुबारा पूछता हूँ – क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” मैंने लोभ में आकर बिना सोचे-समझे हाँ कर दी। मेरे हाँ बोलते ही मेरे आस-पास की रोशनी अंधकार की एक चादर के पीछे छिप गयी। उसने वापिस पूछा, “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” मैंने और बातों पर ध्यान नहीं देते हुए फिर हाँ कर दिया। ये सुनकर वो जोर-जोर से हँसने लगा। मेरे आसपास बिल्कुल अंधेरा था परंतु उस व्यक्ति का चेहरा मुझे साफ-साफ दिख रहा था। मेरे सामने ही उसका चेहरा धीरे-धीरे सड़ने लगा। यह दृश्य देखने में बहुत डरावना और अजीब था। कुछ देर बाद मेरे जैसा दिखने वाला चेहरा एक भद्दा, डरावना चेहरा बन गया जिसे देखकर किसी की भी रूह कांप जाए परंतु मुझे उस वक्त बिल्कुल भी डर नहीं लग रहा था। उसने एक बार फिर वही सवाल पूछा, “क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?”
इस बार जैसे ही मैं हाँ बोलने वाला था, अचानक हम दोनों के बीच एक इंसान जैसी आकृति आ गयी। वो आकृति चमकदार सफ़ेद रोशनी से बनी थी। मेरे हाँ बोलने से पहले ही उसने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे बेहोश कर दिया। होश आने पर मैंने खुद के सामने बस उसी आकृति को खड़ा पाया। अब वापिस मेरे आस पास अंधेरे की बजाए सफ़ेद रोशनी थी। मेरे जागने पर उस आकृति ने मुझे वहाँ हो रही सभी घटनाओं से अवगत करवाया जैसे- वो आकृति मेरी रूह थी; वो काले चोगे वाला व्यक्ति कोई इंसान नहीं बल्कि एक शैतान है; मैं उस वक्त मेरे दिमाग के अंदर था; तथा किस प्रकार वो शैतान धोखे से मेरे दिमाग के अंदर घुस गया था; आदि। मेरी रूह ने मुझे बताया कि मेरे दो बार उसके आमंत्रण को हाँ बोलने के कारण वो अब मेरे दिमाग के साथ जुड़ चुका था तथा अगर मैंने तीसरी बार भी उसके पूछने पर हाँ बोल दिया तो, वो शैतान मुझे पूरी तरह से अपने वश में कर लेगा।
अतः मुझे आगे से बहुत ज्यादा सावधान रहना पड़ेगा। मेरी रूह ने मुझे ये भी बताया कि इससे पूर्णतः छुटकारा पाने का एक उपाय है। परंतु इससे पहले की वो उस उपाय के बारे में कुछ बता पाए, उस शैतान ने अचानक आकर मेरी रूह की पीठ में कोई तलवार जैसी वस्तु घुसा दी जिससे धीरे-धीरे मेरी रूह राख में बदलने लगी और अंत में हवा में विलीन हो गयी।
मैं ये सब देखकर बहुत डर गया और जोर-जोर से रोने लगा। मेरी रूह के खत्म होते ही वो शैतान मेरी ओर बढ़ने लगा। मैंने उससे रुकने के लिए बहुत प्राथना की परंतु उसने एक डरावनी सी मुस्कान दी और उस वस्तु को मेरे पेट में घुसा दिया। वार होते ही मैं चिल्लाता हुआ नींद से जाग गया। मैंने जल्दी से समय देखा तो पता चला कि सुबह के 11:00 बज चुके थे। मैं अभी तक जो कुछ हुआ उसे समझने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी मेरे घर के दरवाजे की घंटी बजी। मैंने डरते-डरते दरवाजा खोला तो अपने माता-पिता को सामने खड़ा पाया। वे अंदर आए और उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं इतनी देर तक क्यों सो रहा था। मैंने इसका कोई उत्तर नहीं दिया क्योंकि मैं खुद ही पहले हुई बातों पर यक़ीन नहीं कर पा रहा था।
अब सूरज भी धीरे-धीरे ढल रहा है और मैं एक बार फिर रात के अंधेरे के बीच जा रहा हूँ। मैं अभी तक नहीं समझ पाया हूँ कि वो सब वाकई में हुआ था या सिर्फ मेरा एक बुरा सपना था। इस बात की सच्चाई का पता तो आज रात को ही चलने वाला था। अब जिस तरह समय का एक-एक पल बीत रहा है, उसी प्रकार मेरी उस ‘अनचाहे मेहमान’ से मिलने की बेसब्री भी पल-पल बढ़ रही है।

