Universe Of Fear

Horror

4.8  

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आईने के पार

आईने के पार

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'टक-टक-टक' की आवाज से मेरी नींद खुली। उठते ही समय देखा तो पता चला कि रात के 3 बजे हुए थे। वो आवाज सुनकर मैं हैरान था क्योंकि उस समय मैं कमरे में अकेला ही था। मैं अपने पलंग से उठा और कमरे से बाहर की तरफ़ देखा। बाहर सब कुछ शांत था। बस तेज हवाएँ चल रही थी जिनकी आवाज मैं साफ-साफ सुन सकता था। उस आवाज का कारण हवा को समझकर मैं वापिस सोने जाने लगा। तभी फिर से एक तेज़ 'टक' की आवाज आई। वो खटखटाने जैसी आवाज थी। मुझे लगा शायद खिड़की के काँच पर हवा से कुछ टकरा रहा होगा। मैं खिड़की के पास गया और आस-पास देखने लगा। देखते-देखते एक बार फिर वही आवाज़ आई। अबकी बार मुझे पता चला कि वो आवाज मेरे पास की ही अलमारी से आ रही थी। वो एक बहुत पुरानी अलमारी थी। जब हम इस घर में आए थे, तभी से ही यह अलमारी इस कमरे में मौजूद थी। बहुत भारी और पुरानी होने के कारण मेरे पिता ने इसे यहीं रहने दिया। परंतु शुरुआत से ही मुझे वो अलमारी पसंद नहीं थी।

मैं, उस आवाज के स्रोत को जानने के लिए, उस अलमारी की जाँच करने लगा। उस अलमारी पर एक बहुत बड़ा व भद्दा आईना लगा हुआ था। मैंने उस अलमारी को खोलकर भी देखा परंतु कुछ भी अजीब नहीं मिला। सब कुछ सही समझकर मैंने वो अलमारी बंद कर दी और वापिस अपने पलंग की ओर जाने लगा। जाने से पहले मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों न उस आईने में ख़ुदको को निहार लिया जाए। तो मैं बस उस आईने के सामने खड़ा हो गया और खुद को एकटक देखता रहा। वैसे तो मुझे वो आईना बिल्कुल भी पसंद नहीं था पर पता नहीं उस दिन मुझे क्या हो गया था जो मैं इतनी देर से बिना पलकें झपकाए बस उसे ही देखा जा रहा था। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं एक भँवरा हूँ और वो आईना एक फूल। जिस प्रकार एक फूल एक भँवरे को अपनी तरफ आकर्षित करता है उसी प्रकार वो आईना भी मुझे आकर्षित कर रहा था। हर तरफ पूर्णतः शांति और मैं उस असीम शांति के बीच उस आईने को देखे जा रहा था। तभी उस शांति को काटती हुई एक तीर की भांति वही 'टक' की आवाज वापिस आयी। अब मैं जान चुका था उस आवाज का स्रोत वो आईना ही था। मैं उस आवाज को और ध्यान से सुनने के लिए उस आईने को क़रीब से देखने लगा। मैं बस उस आईने में अपने आप को ही घूर रहा था। बहुत देर तक लगातार देखने के बाद मैं उस आईने से दूर जाने लगा पर मैं उस आईने से अपनी नज़र ही नहीं हटा पाया। बहुत कोशिश के बाद भी मैं उस आईने के आगे से नहीं हटा पाया। करीब दस मिनट तक सब कुछ शांत रहा परंतु फिर कुछ ऐसा हुआ जिससे मैं सर से पैर तक डर के मारे सहम गया। उस आईने के अंदर के मेरे प्रतिबिंब ने एक अजीब सी हल्की मुस्कान दी। फिर मेरे देखते ही देखते उसने अपना हाथ उठाया और उस आईने पर खटखटाकर वही आवाज निकाली। मैं डर के मारे कांप रहा था पर फिर भी उस आईने से अपनी नज़र नहीं हटा पा रहा था। न चाहते हुए भी मुझे उस प्रतिबिंब की डरावनी आँखों में देखना पड़ रहा था। उसकी आँखों में एक अलग ही रोशनी थी जिसके अंदर मैं खोया जा रहा था। कुछ देर बाद मेरा प्रतिबिंब कुछ अजीब से शब्द बोलने लगा जिन्हें सुनकर मैं पूरी तरह से उस सफ़ेद रोशनी में खो गया और शायद बेहोश हो गया। होश आने पर मैंने खुद को एक ऐसी जगह पर पाया जहाँ हर तरफ अंधेरा-ही-अंधेरा था। मेरे सामने बस वो आईना था जिसके अंदर मैं अपने प्रतिबिंब को देख पा रहा था। पर अबकी बार वो मेरी जगह खड़ा था। मैंने मदद के लिए उससे बहुत प्रार्थना की परंतु वो सिर्फ मुझे एक डरावनी मुस्कराहट के साथ देखता रहा। कुछ बार उसने आईने पर एक काला कपड़ा डाल दिया और रोशनी का एकमात्र ज़रिया भी बंद कर दिया। 

मैं अब एक कैदी बन चुका हूँ तथा इस असीम अंधेरे में आजादी की एक किरण की आस में जी रहा हूँ। वहीं मेरा प्रतिबिंब मेरी जगह मेरा जीवन जी रहा है। वह हर रात उस आईने से वो कपड़ा हटाता है और घण्टों तक मुझे ही देखता रहता है। 

अंत में मैं बस यही कहना चाहूँगा की पता नहीं, इस असल दुनिया में कितने ही प्रतिबिंब सामान्य लोगों के बीच जी रहे हैं व धीरे-धीरे अपनी संख्या बढ़ा रहे हैं। अतः ध्यान रखें कि कहीं आपके भी आईने में आपका प्रतिबिंब आपका इंतजार कर रहा हो।



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