अलग

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रोज़ की तरह आज फिर शीतल जी और उनकी बहु छाया की ज़रा सी बात को लेकर बहस हो रही थी। छाया उनसे कह रही थी "मम्मी जी शानवी( छाया की एक साल की बेटी) के लिए बिना मिर्च की सब्ज़ी निकाल देना।" छाया की बात सुनकर उसकी सासूँ माँ शीतल जी तुनक कर बोली "मुझे पता है, रोज़-रोज़ क्यों कहती हो।"

"मम्मी सुबह आप भूल गयी थी ना, इसलिए मैंने सोचा एक बार याद दिला दूँ" छाया ने भी ऊँची आवाज़ में कहा। शीतल जी ने कहा तुम्हें याद है या याद दिलाना पड़ेगा। सुबह तुम्हारे पापा के दोस्त खाने पर आये थे। सब्ज़ी में बाद में मिर्च डालने से सब्ज़ी में वो स्वाद नहीं आता।

छाया शानवी को गोदी में उठा कर बड़बड़ाते हुए चली गयी कि "इस घर में तो बस स्वाद ही देखते रहो, अगर बारी बाँधी है, तो घर के हर सदस्य के हिसाब से खाना बनाने में क्या दिक्कत है।" एक तरफ जहाँ छाया की सासु माँ उसके ससुर जी से कह रही थी "मैंने इसलिए एक दिन छोड़ कर एक दिन की अपनी खाने की बारी भी बाँध ली की हमेशा छाया के मन में यही रहता था कि मम्मी घर में करती ही क्या हैं, पर अब भी छाया को चैन नहीं है। ये नहीं शानवी के लिए ज़रा सी सब्ज़ी खुद ही बना ले।" सब्ज़ी में बाद में मिर्च डालने से और सब की भी सब्ज़ी का मज़ा ख़राब होता है।"

छाया के ससुर जी बिना कुछ बोले अपने काम में व्यस्त रहे। दूसरी तरफ छाया अपने पति सार्थक से कह रही थी "अगर मैं मम्मी से कहती हूँ, शानवी को पकड़ लो, मैं खाना बना लेती हूँ तो भी वो कहती हैं "मुझसे शानवी के पीछे-पीछे नहीं भागा जाता" फिर बार-बार अपनी बारी बाँधने का एहसान क्यूँ जताती हैं।" सार्थक उसकी बात सुन बिना कुछ बोले वहां से उठ कर चला गया। कुछ दिनों से शानवी के पापा समर्थ का बी.पी. हाई चल रहा था इसलिए एक दिन समर्थ ने छाया से कहा "कल से मेरे लिए कम नमक का खाना बना देना।" छाया ने कहा "मम्मी-पापा का भी ब्लड प्रेशर हाई रहता है, अगर मैं उनसे कहूँगी आप भी कम नमक का खाना खा लेना, तो वो कहेंगी "ऐसा बेस्वाद खाना हम नहीं खा सकते।" मम्मी को तो सब्ज़ी में मिर्च बाद में डालने से ही सब्ज़ी का टैस्ट नहीं आता, अगर उनसे कहूँगी नमक भी पहले थोड़ा कम डाल कर सब्ज़ी निकाल देना तो उन्हें बहुत गुस्सा आएगा इसलिए मैं आपके लिए अलग सब्ज़ी ही बना दूंगी।

अगले दिन से छाया समर्थ और शानवी के लिए अलग सब्ज़ी बनाने लगी। थोड़े दिन तो सब ठीक रहा पर फिर उसकी सास शीतल जी को गुस्सा आने लगा कि इस तरह तो दोगुने बर्तन धोने पड़ते हैं क्यूंकि उनकी मैड दो महीने के लिए गाँव चली गई थी। दोनों सास-बहु के बीच में तनाव रहने लगा। दोनों अपना काम ख़त्म कर के अपने कमरे में चली जाती थी और एक दूसरे से बात भी बस जब करती थी, जब कोई काम हो। यह सब बातें समर्थ और उसके पापा संजीव जी से छुपी नहीं थी। एक दिन संजीव जी ने समर्थ को अपने पास बुला कर उससे कहा "समर्थ आजकल ज़रा-ज़रा सी बात में तेरी मम्मी और छाया की बहस हो जाती है। मैं नहीं चाहता कि जल्दी ही ये छोटी-छोटी बहस लड़ाई का रूप ले ले। ये जो दरार उन दोनों के बीच पड़ रही है, उसे खाई बनने से पहले ही रोकना पड़ेगा।"

समर्थ ने कहा "पापा मैं छाया को समझाऊँगा कि अब तो मेरा बी.पी. ठीक चल रहा है इसलिए अब कम नमक की सब्ज़ी ना बनाये और धीरे-धीरे शानवी को भी मिर्च खाने की आदत डाले।" संजीव जी थोड़ा सोच कर बोले "बेटा तुम तो जानते हो तुम्हारी मम्मी को बहुत मसालेदार खाना ही पसंद आता है और शानवी अभी सिर्फ एक साल की है। बच्चे के लिए हल्के मसाले का खाना ही अच्छा रहता है। एक ही रसोई में एक समय में अलग-अलग सब्ज़ी बने उससे अच्छा है, नीचे वाला फ्लैट जो मैंने किराये पर दे रखा है, उसका एग्रीमेंट अब पूरा ही होने वाला है इसलिए मैं उसे तुम्हारे लिए ठीक करवा देता हूँ।"

तुम छाया और शानवी के साथ वहां शिफ्ट हो जाओ।" सार्थक ने संजीव जी को समझाने की बहुत कोशिश की पर वो अपने फैसले पर अडिग रहे। सार्थक ने जब छाया को संजीव जी का फैसला सुनाया तो छाया ने कहा "मैंने कभी भी मम्मी-पापा से अलग होने सोचा ही नहीं।" ज़रा सी बात को पापा बड़ा रहे हैं।" शीतल जी तो संजीव जी की बात सुनकर सकते में आ गई। उन्होंने संजीव जी से कहा "आपने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले एक बार मुझसे सलाह मशवरा करना भी ज़रूरी नहीं समझा।

आप तो सुबह से रात तक ऑफिस चले जाते हो पर मेरा पहाड़ सा दिन शानवी के बिना कैसे कटेगा, एक बार भी सोचा है आपने।" संजीव जी ने उनसे कहा "बच्चों को लेकर ड्राइंग रूम में आओ।" जब शीतल जी समर्थ और छाया सब आ गए तो संजीव जी ने सबको समझाते हुए कहा "मैं जानता हूँ, जहाँ दो बर्तन होंगे वहां शोर भी होगा, पर मैं नहीं चाहता, मेरा घर लड़ाई का मैदान बने और दुनिया को बातें बनाने का मौका मिले।

शीतल मैं बच्चों को सिर्फ नीचे के फ्लैट में शिफ्ट होने को कह रहा हूँ ताकि हम सब को ज़िन्दगी अपने-अपने तरीके से जीने का मौका मिले पर जब हमें एक-दूसरे की ज़रूरत हो हम एक-दूसरे के काम आ सकें।" रिश्तों की डोर बहुत नाज़ुक होती है और जैसा की कबीर जी ने कहा है "प्रेम का धागा टूटने के बाद उसे कितना भी जोड़ो उसमें गाँठ पड़ जाती है", उसी तरह मैं भी चाहता हूँ हमारे रिश्तों में इतना मन मुटाव ना आये की वो टूट ही जाए इसलिए थोड़ा सा फासला हमारा रिश्ता और मजबूत कर देगा। संजीव जी के फैसले के आगे कोई कुछ नहीं बोल पाया पर उनका फैसला सब के हित में था।

सार्थक और छाया शानवी के साथ नीचे वाले फ्लैट में शिफ्ट हो गए। धीरे- धीरे छाया और शीतल जी को एक दूसरे की अहमियत समझ आने लगी। कभी छाया शीतल जी को उनकी पसंद का खाना बना कर दे आती तो कभी शीतल जी सबके लिए खाना बना लेती थी। त्यौहार वह सब साथ में ही मनाते थे और जब भी कोई मेहमान आता था तो शीतल जी और छाया मिलकर काम कर लेते थे। छाया बिमार होती तो शीतल जी उसकी देखभाल करती थी और शीतल जी की तबियत खराब होने पर छाया उनका ध्यान रखती। संजीव जी ने ठीक कहा था "अब उनके परिवार में पहले से ज़्यादा अपनापन हो गया था" क्यूंकि वह सब अब ज़िन्दगी अपने लिए भी जी रहे थे और अपनों के लिए भी।


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