Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

4.5  

Vimla Jain

Abstract Classics Inspirational

अजनबी जो अपना बन गया

अजनबी जो अपना बन गया

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यह कहानी एक ऐसी लड़की अनु की कहानी है, जिसने प्रेम विवाह करके अपने घरवालों से रिश्ते तोड़े।

और उसके बाद जब वह ससुराल गई तो उसके पति अनुराग और उसमे जिस बात पर उसका पति पसंद करता था, उसी बात को लेकर के दोनों में झगड़े चालू हुए।

वह नहीं चाहता था कि उसकी इतनी पढ़ी-लिखी लड़की नौकरी करें। दोनों साथ पढ़े सब। दोनों का कैरियर बहुत अच्छा था।

मगर अनुराग ने सोचा कि मेरी पत्नी नौकरी नहीं करनी चाहिए। दिन भर घर में रहनी चाहिए। और उसने उसकी इच्छा अपनी अनु पर थोपी। जाहिर है, आज की पढ़ी-लिखी लड़कियां किसी की थोपी हुई इच्छा को क्यों मानने लगी, और वह भी कैरियर ओरिएंटेड हो तो सवाल ही नहीं होता ,या इगो का सवाल भी आ जाता है।

इन लोगों के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। और दोनों में झगड़े चालू हुए। समय ऐसे ही बीतता गया इस बीच उनके 1 बेटी ईशा भी हो गई।

मगर अनु ने जब देखा कि मेरा पति अनुराग कोई भी तरह से नहीं मान रहा है,और प्यार तो कहीं गायब हो गया है ,और खाली झगड़ा ही रह गया है।

तो उसने यह रिश्ता आगे बढ़ाने की जगह यहीं खत्म कर देना सही समझा ।

और दोनों ने आपसी सहमति से तलाक लेने का फैसला किया। उसने अपने पति अनुराग से बिल्कुल कोई मुआवजा नहीं मांगा ,ना बेटी ईशा के खर्चे के लिए कुछ मांगा ।और अनुराग ने भी उसको बोला यह मकान में तुम अपनी बेटी ईशा के साथ अच्छी तरह से रहो। मेरी तरफ से कोई प्रॉब्लम नहीं है। इस तरह से दोनों की आपसी सहमति से तलाक लेते हुए भी उनको 5 साल लगे।

 तलाक के बाद भी उसने उसकी बेटी ईशा को महीने में 1 दिन तय करके उससे मिलने दिया।

जिस दिन उसकी बेटी ईशा अपने पिता से मिलकर आती बहुत ही खुश होती वह बहुत सारी गिफ्ट्स देते। और बहुत घुमाते फिराते उसको काफी अच्छा लगता।

 वह आकर अपनी मम्मा से बोलती, मम्मा देखो पापा कितने अच्छे हैं। वह मेरे को घुमाने ले जाते हैं। मेरे को बहुत मजे करवाते हैं। बहुत नई नई चीजें देते हैं।

ऐसे करते हुए बहुत दिन बीत गए इस बीच उसकी मम्मा अनु को भी आटे दाल का भाव पता लग गया। सबसे पहले तो उसके पियर वालों ने उस को घर में रखने से मना कर दिया। वह तो उसको अच्छा था ,कि उसका पति का घर उसको मिला हुआ था।

तो वह वहीं रहने लगी। जीवन निर्वाह के लिए किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब कर ली। 

वहां सब लोग काफी अच्छे थे।

एक दिन वहां पर नए बॉस अरुण आए तो उनसे उसका परिचय हुआ। उसने अपने बॉस को बताया कि मेरा डाइवोर्स हो गया है।

बॉस अरुण भी डायवर्सी था। उसकी शादी बहुत दुखदाई रही थी। और गलत लड़की से हो गई थी। और बहुत जल्दी ही उसने डाइवोर्स ले लिया था।

तो वह भी जमाने का हारा हुआ इंसान था। मगर फिर भी उसमें नई जिंदगी जीने के सपने थे। और वह स्वभाव का बहुत अच्छा था। अनु के साथ बड़े अच्छे से पेश आता था। ऑफिस वाले लोग भी काफी अच्छे थे सब लोग उसको समझाने लगे कि बॉस अच्छा है, अगर यह इंटरेस्ट ले तो उससे शादी करलो।

 उसके मन में भी शादी का बराबर ख्याल आने लगा।

 फिर उसका मन करता यह बेटी है ,इसको संभालूं की शादीकरूं।

 एक दिन वह बस स्टैंड पर खड़ी थी उसका बॉस सामने से निकला। उसने अपनी गाड़ी रोक दी ,बोला मौसम बहुत खराब हो रहा है ,तुम कार में आ जाओ ,मैं तुमको तुम्हारे घर ड्रॉप कर देता हूं।

उसने मना करा तोभी वह नहीं माना बोला बरसात आने वाली है जल्दी चलो। तो वह कार में बैठ गई हम दोनों घर गए।

उसकी बेटी ने उन दोनों को देखा उसकी बेटी ईशा को अच्छा नहीं लगा उसको यह स्ट्रेंज पर्सन लगा।

और यह गुस्से से जाकर अपने कमरे का दरवाजा बंद करके बैठ गई।। यह देख अनु मन में बहुत दुखी हुई और उसने शादी का ख्याल भी निकाल दिया।

उसके बाद में थोड़े दिन बाद उसकी बेटी ईशा का अपने पिता से मिलने का दिन आया।

 वह जाकर जल्दी से वापस आ गई।

वापस आई तो बहुत उदास थी ओरउसने जोर से दरवाजा बंद करा और कमरे में बैठकर और रोने लगी। अनु ने दरवाजा खटखटाया बहुत मनुहार करके दरवाजा खुलवाया ,उससे पूछा कि क्या हुआ है। ईशा ने बताया मेरे पापा ने दूसरी शादी कर ली। एक बार भी मेरे बारे में नहीं सोचा ,और जोर जोर से रोने लगी।

तो अनु ने अपनी बेटी को गले से लगाया बोला तू चिंता ना कर अपन दोनों साथ रहेंगे। अपने को किसी की क्या जरूरत है। ऐसे ही दिन बीतते गए उसने उसके बॉस को बोल दिया कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती। हम दोनों और दोस्त ही बनकर रहेंगे। मगर वह काफी उदास बहुत उदास रहने लगी थी। उसकी उदासी किसी से छिपी नहीं थी। ऐसे करते-करते ईशा 17 साल की हो गई।

एक दिन ईशा बहुत देर तक घर नहीं आई। घर नहीं आई बहुत चिंता हो गई कि क्या हुआ।

दो-तीन घंटे बाद में वह देखती है कि वह उसके बॉस अरुण के साथ चली आ रही है। और ईशा अपनी मम्मा से बोलती है, मम्मा मैं बहुत स्वार्थी हो गई थी। मैं खाली मेरा ही देख रही थी, कि मेरा क्या होगा। पर मैंने आपकी तरफ तो देखा भी नहीं ,आपने जिंदगी जी ही नहीं ,आप अंकल को बहुत पसंद करते हो।

आप इन से शादी कर लो आज। मैं इनसे मिलने और आपसे शादी करने को मनाने ही गई थी।

आपको भी जिंदगी जीने का हक है। अपनी तरह से सब खुशियां समेटने का हक है ,तो आप उनसे शादी कर लो।

उसकी मम्मा ने कहा  फिर तू अकेली पड़ जाएगी। फिर तेरा क्या होगा। तुझे तो पापा का शादी करना भी पसंद नहीं आया ,और तुझे यह तेरे अंकल भी पसंद नहीं आए। इसीलिए तो मैं शादी नहीं कर रही हूं। तब ईशा बोली मम्मा मैं स्वार्थी हो गई थी। मैं खाली अपने बारे में सोच रही थी ,पर मैंने बहुत विचारा तो मुझे ज्ञान आया कि मेरी मम्मा को भी जीने का हक है। इसीलिए मैं अंकल के पास गई, और उनसे उनको शादी के लिए राजी करा। और मैं अकेली कहां होंगी ,मुझे तो मेरे पापा मिल जाएंगे। अब मैं अंकल को पापा ही बुलाऊंगी। और अनु बहुत खुश होती है और वह और उसके बॉस अरुण दोनों शादी कर लेते हैं इस तरह बेटी की सही सोच ने मां की झूठी खुशियों को सच्ची खुशियों में बदल दिया। 

बेटी ने बहुत समझदारी पूर्वक मां के लिए कदम उठाया।

 हर बच्चे को अपने मां-बाप का भी सोचना चाहिए। बहुत स्वार्थी नहीं बन जाने का। 

यही जिंदगी है।


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