अघोरी
अघोरी
ये कहानी है काराडोंगा के उस जंगल की, जिसे अघोरियों की बस्ती के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो ये जंगल बहुत बड़ा है, लेकिन इसमें अघोरियों की बस्ती लगभग 2000 एकड़ की है और इसके बीच से गुजरती है नेशनल हाईवे, जो दो राज्यों की राजधानियों को आपस मे जोड़ती है।
वैसे तो इन दो राज्यों को जोड़ने के लिए और भी मार्ग है, लेकिन ये रास्ता लगभग 340 किलोमीटर छोटा है, इसके बाद भी ट्रक ड्राइवर, वाहन चालक इस रास्ते से जाने से बहुत डरते है।
इस जंगल के बीच से गुजरने वाले नेशनल हाईवे के दोनों छोर पर शासन की तरफ से प्रतिबंधित मार्ग का बोर्ड लगा हुआ है, पर फिर भी यह मार्ग बंद नहीं है, शायद इसलिए की, इसके बारे में कोई भी स्पष्ट कारण न ही देना चाहता है, और न ही इस बारे में कोई बात करना चाहता है
काराडोंगा के इस अघोरियों की बस्ती में बड़े-बड़े अघोरी निवास करते है, यहाँ सैकड़ों की तादाद में अघोरी रहते है। कहा जाता है की जंगल का यह भाग सिद्ध व तान्त्रिकी पूजन के लिए सबसे अच्छा स्थान है इसलिए यहाँ अघोरी बसते है और इसे अघोरियों का ही स्थान कहा जाता है।
यहाँ निवास करने वाले सैकड़ों अघोरियों में से अधिकांश के पास इतनी ताकत है की वह कई सौ वर्षों से वैसे-के-वैसे ही है, न ही उम्र बढ़ रही है और न ही उन्हें मृत्यु आ रही है। कई को तो न ही आग जला सकती है और न ही पानी डूबा सकती है। अधिकांश तो अपनी सोच से ही किसी भी वस्तु को प्रगट कर सकते है, उनके देखने से ही फूल खिल जाते है और साँप, बिच्छू के जहर तक उतर जाते है। कई आसमान में उड़ सकते है तो कई रूप बदलकर जीव-जन्तु तक बन सकते है। इनमें से कई तो त्रिकालदर्शी है जो भूत, भविष्य और वर्तमान सब जानते है। कई अघोरियों के पास तो ताकते इतनी है की जो हमारे कल्पना से परे है, वो अपनी कुंडली जागृत कर कई चमत्कार कर सकते है।
इतनी ताकत होने के बाद भी सभी इसी गाँव के अंदर रहकर अपने-अपने कार्यों व ध्यान में लगे रहते है। वजह है, इन सभी के गुरू, अघोरियों के अघोरी, बाबा भोलेनाथ जी।
बाबा भोलेनाथ जी, ताकत व शक्ति इतनी की सैकड़ों अघोरी भी उनके सामने कुछ नही। बैठते तो ऐसा लगता मानो, जमीन से थोड़ा ऊपर अधर में बैठे हो।
बड़ी-बड़ी जटा, हाथ में त्रिशूल, तन पर विभूति, बड़ी-बड़ी दाढ़ी। फिर भी चेहरे पर एक अलग ही तेज व चमक।
आसपास के आदिवासी गाव वाले उन्हें साक्षात भगवान शिव का अवतार मानते। एकलौते वही है जो, अघोरियों की बस्ती से बाहर आकर अन्य स्थान जाकर वहाँ के लोगों की मदद करते, उनके सभी कष्ट और दर्द वह खिच लेते। बड़े-से-बड़े घाव उनके छूने भर से ठीक हो जाते। गाव वाले लोग भी खुशी से उनके और उनके सभी अघोरी शिष्यों के लिए भोजन, राशन की व्यवस्था कर उन्हें देते और वो भी अकेले ही राशन से भरे कई बोरों को अपने साथ ले जाते। वो आगे-आगे और अनाज से भरे बोरे स्वयं चलते हुए उनके पीछे -पीछे। वैसे भी किसी को इतनी हिम्मत न थी की वह राशन व अनाज पहुंचाने अघोरियों की बस्ती में जाए।
किसी भी अघोरियों को यह इजाजत नहीं थी की इस बस्ती से बाहर जाए और अपनी शक्तियों का उपयोग बाहर करे। यह बाबा भोलेनाथ का बनाया हुआ नियम था, जिसे कोई भी नहीं तोड़ सकता था और बाकी अघोरी उन्हें अपना गुरू मानकर उनके नियमो का खुशी-खुशी पालन करते थे।
पर कहते है न की, सभी दिन एक समान नहीं रहते है। एक दिन अचानक बाबा भोलेनाथ ने समाधि लेने का निर्णय लिया। उनके सभी शिष्यों ने उन्हें बहुत समझाया, पर बाबा ने मानो निर्णय ही ले लिया था। कुछ दिनों में ये बात सारे अघोरियों में फैल गई।