अधूरी चाहत
अधूरी चाहत
अदालत की एक-एक सीढ़ी 100-100 सीढ़ियों के बराबर लग रही थी पिया को पर राघव को लग रहा था अब अलग होने के अलावा कुछ बचा ही नहीं है, उनके दरमियां।
अभी तक जज साहब नहीं आये थे। दोनों बाहर बैठ कर इंतज़ार कर रहे थे।
तभी उनका दोस्त आयुष्मान, जो वहाँ किसी काम से आया हुआ था। उन दोनों को देख कर अचम्भे में पड़ गया।?उन्हें देख कर बोला, "अरे तुम दोनों यहाँ कैसे, दोबारा शादी करने का विचार है?”
राघव एकदम से बोला, "क्यों मज़ाक बना रहा है, हमारे रिश्ते का। तो क्या हुआ अगर पिया मुझे अपने लायक नहीं समझती पर मैंने तो हमेशा...”
इससे पहले राघव अपनी बात पूरी करता पिया बोली, "मैं तुम्हे अपने लायक नहीं समझती या तुम्हे मेरी तरक्की रास नहीं आयी। घर में ऑफिस में सब के मुँह से मेरी तारीफ सुन कर तुम्हारे अहं को ठेस पहुँचती है।”
राघव बोला, "मैंने ही तुम्हें जॉब करने को बोला और आज तुम कह रही हो कि मैं तुम्हारी तरक्की से चिढ़ता हूँ।”
पिया बोली, "हाँ बिलकुल, जब भी कभी हमें एक ही प्रोजेक्ट पर काम करना होता था और मुझसे ज़्यादा तुम्हारा काम सबको पसंद आता था तो तुम्हारी जीत को ही मैं अपनी जीत समझती थी, पर जब कभी मेरा काम सबको पसंद आता था तो तुम्हारा मुँह उतर जाता था क्यूंकि मेरी जीत को तुम अपनी हार समझते थे। यहाँ तक की तुम हमारी प्रोफेशनल लाइफ की वजह से हमारी पर्सनल लाइफ में भी मेरी हर बात को गलत ठहराने लगे। सब के सामने मेरा मज़ाक बनाने लगे क्यूंकि, तुम्हारे लिए तुम्हारे ‘मैं’ से बड़कर कुछ नहीं है। घर में ऑफिस में किसे काम पर रखना है, किसे नहीं किसी भी बात में मेरी राय लेना तुम्हें उचित नहीं लगता।”
इतने में अायुष्मान बोल पड़ा, "अरे तुम दोनों ये क्या बच्चों की तरह लड़ रहे हो। मिया-बीवी के रिश्ते में हार-जीत कहाँ से आ गयी। राघव तुझे तो खुश होना चाहिए की पिया इतना अच्छा कर रही है।”
राघव बोला, "अायुष्मान जब औरतें कमाने लगती है, तो वो अपने आगे किसी को कुछ भी समझना बंद कर देती है।”
तभी पिया ने कहा, "अब कुछ ठीक नहीं हो सकता अायुष्मान क्यूंकि राघव कभी हमारे रिश्ते में से ‘मैं’ नहीं हटा पायेंगे।” तभी राघव के मोबाइल पर ऑफिस से कॉल आया की पिया का फ़ोन नहीं लग रहा है, उसे मैसेज दे देना की उसका रेसिग्नेशन मंज़ूर हो गया है।
राघव के हाथ से फोन छूट गया वह पिया से बोला, "तुमने रिजाइन कर दिया?”
पिया ने कहा, "मैं अपने रिश्ते के बीच अपना जॉब नहीं लाना चाहती थी। मैं तुम्हें बताना भी चाहती थी पर आजकल तुम मेरी सुनते कहाँ हो? तुम्हें तो तलाक लेने की जल्दी पड़ी थी।”
राघव बोला पिया, “तुम्हें रिजाइन करने की कोई ज़रूरत नहीं है, चलो घर चलें।”
पिया ने कहा, "कब तक मैं तुम्हारे हाथ कि कठपुतली बनी रहूँ? शादी से पहले तुमने मेरा जॉब छुड़वा दिया कि, मैं इतना कमाता हूँ, तो तुम्हें क्या ज़रूरत है जॉब करने की? शादी के बाद जब तुमने देखा तुम्हारे सारे दोस्तों कि वाइफ वर्किंग है तो तुम मुझसे भी जॉब करवा के माने। जब मैंने घर और ऑफिस अच्छी तरह संभाल लिया और सब मेरे काम की सराहना करने लगे तो तुमसे बर्दाश्त नहीं हुआ। तुम मुझसे अलग होने कि सोचने लगे। आज अचानक से तुम मुझे फिर कह रहे हो घर चलो। कल फिर तुम्हारा मन बदल जायेगा, तो मैं क्या करुँगी?”
“काश तुम मेरे प्यार को कभी तो समझ पाते
मेरे हमकदम कभी तो बन जाते
मैं तो तुम्हारी हार में हारती रही
तुम्हारी जीत में जीतती रही
तुम भी मेरी जीत को कभी तो अपनाते
काश तुम मेरे साथ दो कदम तो चल पाते”
कहती हुई पिया कोर्ट रूम के अंदर चली गयी और राघव बस उसे देखता ही रह गया। शायद पिया ने आज राघव कि बात न मान कर उसके अहं को चोट पहुँचाई थी। राघव पिया के पीछे-पीछे गया और बोला, "प्लीज पिया हमारे रिश्ते को एक और मौका दो।” पिया तो कभी भी राघव से अलग होना ही नहीं चाहती थी बस वह राघव को उसकी गलती का एहसास कराना चाहती थी, इसलिए वह बिना कुछ बोले राघव के साथ कोर्ट रूम से बाहर आ गयी।