अधूरी बात
अधूरी बात
हमारे समाज में सास-बहू के बीच का रिश्ता हमेशा ही चर्चा का विषय रहा है और ज्यादातर अनसुलझा भी। जरूरत है तो इस रिश्ते को मधुर बनाने के लिए समय देने की या नकारात्मक प्रतिक्रिया न करके समय पर छोड़ने की। राधा ने विवाह के पश्चात हर रिश्ते को समझने में समय दिया बिना किसी नकारात्मक प्रतिक्रिया के , चाहे छोटे हों या बड़े , और इसका सकारात्मक परिणाम भी मिला कि राधा ससुराल में सबकी चहेती हो गयी । अब क्योंकि पति लखनऊ में अस्पताल चलाते थे अतः ससुर जी ने राधा को कुछ समय बाद लखनऊ ही भेज दिया और वहाँ उसकी दो देवरानियाँ सास-ससुर के साथ ही रहीं। सास-ससुर जब भी आते तो राधा उनकी दिनचर्या के अनुसार उनकी सेवा करती व वे खुश होकर जाते। किंतु राधा के पुत्र के जन्म के बाद वह अकेली पड़ गयी। उसकी सासू माँ उसकी आशा के विपरीत एक माह के बाद चली गयीं इस बात से वह बहुत आहत हुई क्योंकि उसका पुत्र आपरेशन से हुआ था अतः वह सहारा चाह रही थी और इसीलिए धीरे-धीरे उसका व्यवहार भी परिवर्तित होने लगा। छः माह के पश्चात जब बच्चे का अन्नप्रासन्न हुआ तो सभी परिवार के लोग पुनः एकत्र हुए और बच्चे को खीर खिलाकर अन्न का भोग लगाया गया। अगले दिन जब सासू माँ उसे दाल के साथ रोटी का फुल्का भिंगो कर खिलाने लगीं तो वह अचानक से बोली- अरे! मम्मी जी यह क्या खिला रही हैं ? अभी छः माह तक उसने सिर्फ दूध पिया है और अब पहले दाल का पानी फिर दलिया और तब दाल-रोटी देना है और अपने बेटे को खुद ही दाल का पानी पिलाने लगी। उसकी सासू माँ ने उसे कुछ नहीं बोला पर वो भी चार बच्चों की माँ थीं और अनुभवी थीं जाहिर था उन्हें यह बात अच्छी न लगी थी । पुत्र मोह में राधा ने यह सब बोल तो दिया किन्तु उसे कुछ ही दिनों के बाद अपनी गलती का अहसास हुआ लेकिन तब तक सभी लोग वापस चले गये थे और राधा ने फोन पर जब इस बात का ज़िक्र करना चाहा तो सासू माँ ने टाल दिया और बड़प्पन दिखाते हुए कहा - पुरानी बातें भूल जाओ मुझे तो कुछ याद ही नहीं, सब लोग खुश रहो और क्या चाहिए। राधा उस बात के लिए हमेशा ही उन्हें कारण बताना चाहती थी उनसे माफी माँगने की कोशिश करती रही किन्तु भूमिका बनाने से पहले ही सासू माँ उसकी बात को टालती रहीं और उसकी आत्मग्लानि कम नहीं हुई। अब इस बात को चार वर्ष बीत गए अब सब कुछ ठीक-ठाक था पहले से भी ज्यादा प्यार था दोनों के बीच क्योंकि राधा को उसकी गलती का अहसास हो गया था और पुनः राधा ने किसी के साथ वैसा व्यवहार नहीं किया किन्तु लम्बे समय के बाद भी उस बात को पूरा करने की चाह थी उस बात को स्पष्ट करने की चाह थी किंतु रिश्तों की मधुरता में वो बात अधूरी ही रह गई... इसीलिए आवेश में कभी कुछ भी नहीं कहना चाहिए , नाज़ुक रिश्तों को प्यार व समर्पण के साथ समझने की जरूरत होती है।