अवसाद का निराकरण
अवसाद का निराकरण
सुरेश अपनी माँ के साथ अस्पताल में प्रवेश कर ही रहा था कि सामने से आकर किसी ने उसकी माँ के पैर छुए और उसकी ओर हाथ बढ़ा कर बोला - कैसा है सुरेश? इतने दिनों के बाद मिला है और वो भी यहाँ।
सुरेश के चेहरे पर हल्की मुस्कान तो आई किन्तु अगले ही पल अपने बचपन के मित्र करन को पहचान वह भावुक हो गया और खुद को संभालते हुए उसने मनोचिकित्सक के परामर्श का पर्चा उसे दिखाया और बोला - यहाँ से माँ का इलाज चल रहा है ।पर्चे पर संबंधित चिकित्सक का नाम पहचान कर करना ने कहा- अरे! इनके निर्देशन में ही तो मैंने इन्टर्नशिप की थी और आज मिलने आया था अब स्वयं का क्लीनिक खोलने जा रहा हूँ। चलो पहले माँ को दिखा दें और उन दोनों का मित्रता का संबंध जान वरिष्ठ डॉ ने करन को ही केस को समझने को दे दिया और तब करन ने सुरेश से माँ की स्थिति का कारण पूँछा तो सुरेश ने कहा- पिता जी की आकस्मिक मृत्यु के बाद माँ बिल्कुल चुप हो गई हैं और रात को सोती भी नहीं हैं , बस अकेले में रोती रहती हैं,खाना भी ठीक से नहीं खाती हैं और सब से मिलना - जुलना भी छोड़ दिया है।
करन जो कि बचपन से ही सुरेश की माँ के हंसमुख व मिलनसार स्वभाव से परिचित था उसे समझने में देर न लगी कि सुरेश की माँ अवसाद से ग्रसित थीं और उसने इसकी जानकारी सुरेश से साझा की और बताया कि अवसाद से ग्रसित लोग गहरी उदासी, निराशा,दु:ख और शून्यता की भावनाओं का अनुभव करते हैं तथा उनमें आनंद का अनुभव करने में अक्षमता, सुस्त चाल, नींद न आना व भूख न लगना,ध्यान केंद्रित न करने और आत्मघाती विचारों को शामिल करने के लक्षण पाए जाते हैं।
सुरेश ने परेशान हो प्रश्न किया- इसे कैसे दूर किया जा सकता है। और करन ने जवाब में कहा- तनाव एक द्वंद की तरह है जो व्यक्ति के मन एवं भावनाओं में अस्थिरता पैदा करता है और एकाग्रता में कमी आती है व नकारात्मकता हावी रहती है ऐसे में व्यक्ति को अकेला नहीं छोड़ना चाहिए और उसकी दिनचर्या में योग, व्यायाम व ध्यान को शामिल करना चाहिए। परिवार व दोस्तों के साथ अधिक समय व्यतीत करना चाहिए तथा उसके खान-पान में पौष्टिक आहार शामिल करना चाहिए ताकि हार्मोन का संतुलन बना रहे जो कि अवसाद का एक कारक है और व्यक्ति को उन कारकों से दूर रखना चाहिए जोकि इसका कारण बने हों और आवश्यकता पड़ने पर प्राकृतिक व शांति प्रदान करने वाली जगह पर भी ले जाना चाहिए और ईश्वर प्रार्थना के लिए अवश्य समय देना चाहिए। इन सभी बातों की जानकारी कर सुरेश ने उसका पालन किया और माँ की काउंसलिंग के दौरान करन ने जाना कि उसकी माँ आखिरी समय में उसके पिता के साथ नहीं थीं और यही सदमा उनके अवसाद का कारण था । दरअसल सुरेश के पिता की मृत्यु आफिस में कार्य करने के दौरान हृदयाघात से हुई थी। करन के निर्देशानुसार सुरेश माँ को तीर्थ के लिए ले गया और सेवा की ।इसका परिणाम यह हुआ कि वह अपनी माँ को उस अवसाद की स्थिति से बाहर लाने में सफल हुआ।
-हमें भी अपने परिवार व परिवेश में किसी भी व्यक्ति में मौजूद ऐसे लक्षणों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए और उसे इस मानसिक द्वंद की स्थिति से बाहर लाने में सहयोग करना चाहिए। आजकल व्यस्तता के रहते जब मात-पिता बच्चों को समय नहीं देते या वृद्धावस्था में जब बच्चे अपने माता-पिता का ख्याल नहीं रखते तब यह स्थिति भयावह हो जाती है अतः आवश्यक है कि अपने परिजनों को समय दें और मिल- जुल कर समस्याओं का निराकरण करें।
