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Dr Archana Verma

Tragedy Inspirational

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Dr Archana Verma

Tragedy Inspirational

परिवार

परिवार

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निहारिका बोर्डिंग स्कूल से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई कर अपने घर लौटी थी। उसके परिवार में सभी बहुत खुश थे, निहारिका ने जैसे ही घर के अंदर प्रवेश किया उसकी माँ ने उसे गले लगा लिया और दोनों भाइयों ने पैर छूकर गले लगाया। खाना खाने के दौरान निहारिका की आगे की पढ़ाई के लिए बातें होने लगी, उसे मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर डाक्टर जो बनना था। निहारिका की माँ ने एक कोचिंग सेंटर में उसका दाखिला करा दिया और निहारिका परीक्षा की तैयारी करने में लग गई। एक दिन जब निहारिका कोचिंग में थी उसके भाई ने फोन कर घर जल्दी आने के लिए कहा, निहारिका के बहुत पूछने पर भी उसने कुछ नहीं बताया । निहारिका जब घर पहुँची तो अपनी माँ को बेहोशी की हालत में बेसुध पाया। आनन-फानन में उसने अपने पिता जी को फोन किया और पड़ोसियों की मदद से माँ को अस्पताल में भर्ती कराया। कुछ परीक्षणों के बाद पता चला कि उसकी माँ को ब्रेन स्ट्रोक हुआ है और उनका आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया है। उसकी माँ अब परिवार के किसी भी सदस्य को पहचान नहीं पा रही थीं और न ही कुछ बोल पा रही थीं। माँ की ऐसी हालत देखकर निहारिका और उसके परिवार के सभी लोग बहुत परेशान थे। लगभग एक महीने तक उसकी माँ को आई. . यू में रखा गया और इस बीच उसके पिता की जमा पूँजी माता जी के इलाज में ख़र्च हो चुकी थी। निहारिका ने ऐसी स्थिति में अपनी कोचिंग छोड़ दी और माँ की देखभाल करने का निर्णय लिया। हालांकि ऐसे हालात में उसे अपना डॉक्टर बनने का सपना बिखरता हुआ नजर आ रहा था लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उसने यह निर्णय लिया। उसके भाइयों की पढ़ाई भी बहुत प्रभावित हो रही थी। ऐसे हालातों में निहारिका के ऊपर जिम्मेदारियों के साथ बहुत दबाव भी पड़ रहा था। निहारिका जिसे अभी तक खाना बनाना भी नहीं आता था, ऐसे हालातों में वह खाना बनाना भी सीख गई थी और पूरे घर की जिम्मेदारी भी संभाल रही थी। उसने आर्थिक तंगी के चलते अपने पिता जी का सहयोग करने के लिए होम ट्यूशन शुरू कर दिया था और अपने भाइयों को भी पढ़ाती थी। उसके भाइयों ने भी ऐसे हालातों में पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम काम करना शुरू कर दिया था।

उसकी माँ अब घर पर ही आ गई थीं और घर पर ही उनका इलाज चलता था। माँ की स्थिति ऐसी थी कि वो चलने-फिरने और बोलने में असमर्थ थीं और उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता थी, निहारिका अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती कि माँ की जरूरत को समझ सके और उन्हें खुश रखे किंतु ऐसी स्थिति में उसकी माँ उसे ही नहीं पहचान पा रही थीं और खुद की हालत के चलते अवसाद ग्रस्त हो गई थीं। लगभग चार माह तक इलाज के बाद भी जब उसकी माँ की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके पिता धैर्य खोने लगे और माँ के अंतिम समय का इंतजार करने लगे। ऐसी स्थितियों में निहारिका बहुत दुःखी थी स्वयं भी बहुत निराश हो रही थी। कई बार अकेले में रोती रहती लेकिन फिर खुद को संभाल कर अपने पिता जी और भाइयों को भी हिम्मत रखने को कहती। ऐसे में सभी रिश्तेदारों ने भी आना- जाना छोड़ दिया था। कहीं से कोई मदद नहीं मिल पा रही थी। लेकिन निहारिका को ईश्वर पर पूरा भरोसा था वह नियमित रूप से माँ के स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्रार्थना करती। कुछ समय के बाद उसके पिता जी की तबीयत भी खराब रहने लगी और इस बीच बहुत क़र्ज़ का भार भी आ गया। निहारिका अपने भाइयों को ऐसी स्थिति में भी आशान्वित रहने को कहती और अपनी पढ़ाई के लिए भी समय निकालती। परिवार के सभी सदस्य इस दौरान शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुके थे लेकिन किसी ने हिम्मत नहीं हारी। उसकी माँ जब भी अपनी हालत पर रोतीं , निहारिका उन्हें समझाती और सब ठीक करने का विश्वास दिलाती। छ: माह के इलाज के पश्चात निहारिका की माँ की हालत में सुधार हुआ और धीरे- धीरे वो बात करने व बैठने में सक्षम होने लगीं। माँ की हालत में सुधार देखकर अब उसके पिता जी भी ठीक होने लगे। लगभग एक वर्ष के पश्चात निहारिका की मेडिकल प्रवेश परीक्षा का समय भी आ गया। निहारिका ऐसी स्थिति में परीक्षा नहीं देना चाहती थी, लेकिन पिताजी व भाइयों के कहने पर उसने परीक्षा दी। उसके दोनों भाइयों ने भी ऐसे हालातों में काम करते हुए हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। कुछ समय बाद जब परीक्षा परिणाम घोषित हुआ तो निहारिका की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वो मेडिकल प्रवेश परीक्षा में पास होकर एम. बी . बी. एस सीट के लिए चयनित हो गई थी। उसके दोनों भाई भी प्रथम श्रेणी में पास हो चुके थे। निहारिका की माता जी अब काफी हद तक सबकी बातें समझने लगी थीं और बातचीत करने में सक्षम हो गई थीं। निहारिका ने शिक्षा ऋण लेकर मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया और अपने भाइयों की आगे की पढ़ाई की प्रक्रिया भी पूरी कर दी। धीरे-धीरे स्थितियाँ सामान्य होने लगीं। दो वर्षों के संघर्ष के पश्चात निहारिका के बड़े भाई का दाखिला भी इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया और उसकी माता जी वाॅकर के सहारे प्रतिदिन के कार्य करने लगीं। निहारिका ने कुछ जमा पूंजी के सहारे खुद का कोचिंग सेंटर शुरू कर दिया और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाने लगी। धीरे-धीरे कोचिंग सेंटर से अच्छी आय होने लगी और निहारिका ने  सारे कर्ज़ चुकाने शुरू कर दिए। लगभग पाँच वर्षों की मेहनत व परिवार के सहयोग के पश्चात अब निहारिका के बड़े भाई की भी मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी लग गई , उसके छोटे भाई का दाखिला भी एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया और निहारिका अपना मेडिकल का कोर्स पूरा कर इंटर्नशिप करने लगी। 

निहारिका के माता-पिता अपने बच्चों की सफलता से बेहद गौरवान्वित महसूस करने लगे।

 निहारिका के परिवार ने विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्य नहीं खोया और पारिवारिक एकता की मिसाल बने।



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