अचार
अचार
शहर की पुरानी बस्ती में रह रहे मिश्रा जी और तिवारी जी के परिवार के बीच दो महीने से अबोला चल रहा है पूरी कॉलोनी वालों को पता है... कहने को दोनों के घर की बीच की दीवार एक ही है दोनों ही घरों में छह छह लोग हैं.... दो बच्चे माता-पिता दादा-दादी..... किस बात पर झगड़ा हुआ यह तो अब किसी को भी याद नहीं पर मिश्राइन ने कह दिया था कि जीते जी तो अब पड़ोस में पैर नहीं रखूंगी... तिवारी जी के अहाते में आम का पेड़ था.... तिवारी दादी मौसम का पहला अचार बनाती तो सदा दो बरनी में बनाती ...पर इस बार अबोले ने तो ये बरसों का अचार वाला रिश्ता भी खत्म कर दिया।मई की शुरुआत में ही दादी डाल देती अचार और एक बरनी पहुंच जाती मिश्राजी के घर। ताजातरीन घर के आम का अचार और अचार का टेस्ट तो जाने कहाँ आसमान से लाई थी दादी एक महीने में सब चट कर जाते थे......।
आज मिश्रा जी के यहां सब डाइनिंग टेबल पर खाना शुरू कर ही रहे थे कि चीनू बोल उठा-" पड़ोस वाली दादी के अचार की याद आ रही है ...मम्मी .... सच बोलता हूँ वैसा अचार मैंने कहीं नहीं खाया।"
"कोई छाप नहीं पड़ी उनके अचार की...ढेर अचार बना दूंगी मैं।" मिश्राइन बोली तो पर बात में कोई ज्यादा वजन था नहीं।
मिश्रा जी को भी मुँह में गले तक पड़ोस के अचार का स्वाद भर आया... पर अब बोले कौन?
"अरे भई खाना खाते समय कौन आ गया?"... गेट की आवाज सुनकर मिश्राइन बड़बड़ाई।
"आ जाओ भई आ जाओ कौन है अंदर आ जाओ....।" मिश्रा जी खाना खाना शुरू करने की मुद्रा में आ गए थे।
"अरे ! दादी आप.....।" चीनू ख़ुशी से चिल्लाया।
पड़ोस वाली दादी अचार की बरनी लेकर खड़ी थी...।
" देखो बेटा तुम्हारी लड़ाई तुम जानो...मैं तो हर बार दो बरनी में डालती हूँ अचार। चीनू को बहुत पसंद है मेरे हाथ का अचार... बिना उसको दिए गले के नीचे ही नहीं उतर रहा था।"
चीनू तब तक पड़ोस वाली दादी का अचार अपने कब्जे में कर चुका था।
