अबॉर्शन
अबॉर्शन
"क्यों कराऊँ मैं, बोलों न?" बस इसलिए कि तुम अभी दूसरा बच्चा नहीं चाहते औ डर ये कि कही अब लड़की न हो जाए? पूरी खींझ के साथ रति अपने पति नवीन से कहती है।
नवीन पूरे गुस्से में था, बोला ज़बान मत चला, जितना कह रहा हूँ सुन कि मुझे अब बच्चा चाहिए ही नहीं, क्योंकि मुझे बेटी नहीं चाहिए औ तू इक बेटी पैदा कर चुकी है।
रति अपने आपको रोक नहीं पाई, चिल्ला के बोली फिर क्यों आते हो पास, क्यों? दूर रहो मुझसे जब भी ऐसा कुछ होता तो बस अबॉर्शन - क्यों ? औ रोने लगी।
नवीन कमरे से इतना कहकर निकल गया कि सुबह 9:30बजे तक तैयार होना डॉ . के यहां जाना है। जाने कब रोते- रोते सो गयीं।
सुबह वो बेमन से तीसरी बार अबॉर्शन कराने के लिए तैयार हुई। वो लोग क्लीनिक पहुंचते है , डॉ . इस बार देखतें ही फिर आने का कारण समझ गयीं औ इस बार वो और भड़की नवीन के ऊपर, रति से कहा -मर जाओगी तुम, कुछ रह नही बचा तुम्हारे शरीर में , क्यों नहीं मना करती हो? प्रिकॉशन क्यों नहीं लेते आपलोग?
नवीन से डॉ . ने अबॉर्शन के लिए मना कर देती हैं।
लेकिन फिर नवीन ने अपने घड़ियाली आंसू बहाते हुए डॉ . को मनाना चाहा लेकिन अब वो नवीन की नहीं सुनी औ रति से कहा, साँरी अबॉर्शन नहीं हो सकता औ तुम बचोगी नहीं नो रिस्क फाँर यूर लाइफ...।
नवीन को इतनी फटकार दी की शायद इक पुरुष में छुपा बाप भी जागा, शैतान को इंसानियत ने झकझोरा । नवीन को हर तरह से डॉ ने समझाया औ ये कहा मर जायेगी आप जिम्मेदारी लेंगे बोले ? नवीन चुप था औ फिर रति की ओर देखा, बोला घर चलों..।
नवीन रति को अपने मर्जी से बिना अबॉर्शन के वापस लौट गया , रति को इस बार अपने अंश को मारने का शोक नहीं, बल्कि अबॉर्शन शब्द की पीड़ा से निकल जिंदगी पनपने की खुशी जी रही इक सुकून मिला, उसके चेहरे पर... अबॉर्शन के निशां नहीं।
