अभिमान
अभिमान
सुहागसेज पर बैठी माधवी आँखों में आनंद को समाये हुए, आज अतीत की गलियों में खो गयी थी |उसे एक -एक कर सबकुछ याद आ रहा था | बचपन से लेकर 9वीं क्लास तक स्कूल में हमेशा फर्स्ट आने वाली माधवी बोर्ड परीक्षा में द्वितीय कैसे आ गयी? उसने वापस क्रॉसलिस्ट चेक किया |सारे बच्चे उससे ही पूछ रहे थे कि आनंद कौन है? वो फर्स्ट और तुम सेकंड कैसे आ गयी? गुस्से में माधवी का गोरा चेहरा लाल पड़ गया था |बनारस के जाने -माने उद्योगपति की इकलौती बेटी माधवी रूप -गुण में अद्वितीय थी |उसने कभी हार नहीं मानी थी | तभी हॉस्टल से आता हुआ एक साधारण सा लड़का अपना रिजल्ट देखकर वापस हॉस्टल की ओर जाने लगा |ऑफिस स्टाफ और शिक्षकगण बधाईयां देने लगे तब सबने जाना कि यही स्कूल टॉपर आनंद कुमार है जिसने 98. 3%मार्क्स लाकर स्कूल ही नहीं बल्कि पुरे डिस्ट्रिक में टॉप किया है |उसकी ओर हिकारत से देखती माधवी के गुस्से का ठिकाना ना था |2-4 मार्क्स ज्यादा आ गए तो क्या हुआ नेक्स्ट टाइम मैं इसे देख लुंगी | हार मानना माधवी का स्वभाव ना था और जीतने की आदत आनंद को ना थी |बनारस के नज़दीक के ही एक गावं" चंदौली" के एक साधारण परिवार से आया हुआ एक साधारण सा लड़का था |ना रूप में ना लिबास में, कहीं से वह किसी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने के योग्य नहीं था |उसके गाँव के एक शिक्षक ने जोकि उसके पिता के मित्र भी थे, छात्रवृत्ति के साथ पढ़ने की सुविधा मुहैया कराई थी |फिर इंटर बोर्ड परीक्षाओं का भी वही हाल रहा |आनंद प्रथम व माधवी द्वितीय |स्कूल तो इंटर तक ही था |यहाँ से सब अलग निकल गए |माधवी ने यूनिवर्सिटी से बी कॉम और MBA किया उसे पिता का व्यवसाय जो संभालना था | कुछ 9वर्ष निकल गए थे |अब पिता के साथ उनके पूरे काम सँभालने लगी थी कि एक दिन पिताजी ऑफिस में बात करते हुए, चक्कर खाकर गिर पड़े | 
 वह इम्मीडिएट ही पिता को लेकर हॉस्पिटल भागी |बाहर बोर्ड था "आनंद कुमार "MBBS,"Md", DNB". डिग्रीयां तो अच्छी हैं |यह पिताजी का सही इलाज कर सकेगा यह सोचकर केबिन में घुसी |वहाँ अपने पुराने प्रतिद्वंदी आनंद को देखते ही वापस लौटने को हुयी कि उसने, उसे रोक लिया | "रुको माधवी !मुझे मरीज को देखने दो, एक डॉक्टर होने के नाते, इलाज़ करना मेरा फ़र्ज़ है |" मन मारकर ही उसने दिखाया |पर पिताजी का स्वास्थ्य सुधरने लगा था |उन्हें काम का एक्स्ट्रा प्रेशर लेने से मना किया गया था और कम्पलीट हेल्थ चेक -अप की सलाह दी गयी थी |माधवी पर अब सारी जिम्मेवारियां आ गयी थीं | रूप और तेज़ तो पहले से ही था |अब गंभीरता ने उसकी सुंदरता में अजब सा ठहराव ला दिया था |उसके इस अद्भुत रूप की तुलना जान्हवी से की जा सकती है |जो कि गोनुख से निकली एक चंचल बालिका , हरिद्वार में इठलाती किशोरी और बनारस में आकर एक गम्भीरा नारी के रूप में सबके दुखदर्दों को दूर करने वाली पवित्रा पालनहार सी दिख रही थी | पिताजी के रिपोर्ट्स दिखाने उसे फिर से आनंद से मिलना होगा |उसे मिलते ही उसे वह सारी चुनौतियाँ याद आतीं, कैसे उसने उसकी जगह ले ली |और तो और इतना बड़ा डॉक्टर बन गया |माधवी का अभिमान आहत हुआ था |पर उसने किसी से कुछ ना कहा |गंभीरता का आवरण ओढ़ वह सारे रिपोर्ट्स के साथ आनंद के केबिन में खड़ी थी | "पिताजी का कोलेस्ट्राल बढ़ा है और हार्ट के पास कुछ ब्लॉकेज दिख रहे हैं |जल्दी ही ऑपरेशन करना होगा |"आनंद ने कहा | "तुमसे नहीं कराऊंगी |तुम मेरे पापा का इलाज ठीक से नहीं करोगे |" "पहली बात -मैं सर्जन नहीं ! जो उनका ऑपरेशन करूँ |दूसरी बात -गुस्सा और बचपना छोड़ दो !इतना गुरुर जो सर पर लेकर घूमती हो ना, अब हम टीनएजर्स नहीं !बी मैच्योर ! किस हक़ से बकवास किये जा रहा है? कुछ भी हो जाये मेरे पापा का इलाज इस हॉस्पिटल में नहीं होगा मन में यह ठान कर गुस्से से पैर पटकती हुयी बाहर निकली |फिर तो उसने सबसे पता किया |सबने डॉक्टर आनंद का ही नाम सुझाया |और ऑपरेशन के लिए बढ़िया सुविधाएं भी उसी अस्पताल में मौजूद थीं | फिर से हरा रहा है और मैं हार रही हूँ|मैं अभिमान दिखाती रही|उसने अपने स्वाभिमान की रक्षा की |जाने किस मिट्टी का बना है कि बुरा नहीं मानता |खैर !सबके सलाह मानकर उसी हॉस्पिटल जाना होगा ये विचार करती हुयी माधवी सो गयी थी | आज चाँद को अपनी खिड़की से निहारता आनंद जाग रहा था |माधवी को वह 9वीं कक्षा से से जानता था |उसे पता था कि इतनी सुन्दर और बड़े कुल की कन्या के ख्वाबों पर उसका कोई इख़्तियार नहीं !पर जाने क्यों बात -बात पर उसका तुनकना, वह भूल नहीं पाता था |कल की सुबह कितनी खूबसूरत होने वाली है |माधवी उसके अस्पताल में अगले तीन दिनों रहने वाली है ये सब सोचकर उसके आँखों की नींद और दिल का चैन उड़ गया था | नियत समय पर माधवी पिता के साथ अस्पताल आ गयी थी |प्री ऑपरेशनल चेकअप्स चल रहे थे |आनंद दो राउंड लगा चूका था |आज माधवी ने ना तो उसे नीचा दिखाया और ना तुनकी |पर आनंद तो उसके उन्ही अदाओं का दीवाना था |बस दो कप कॉफ़ी के साथ माधवी के पास आकर बैठ गया | "ये औपचारिकता क्यों? " "तुमने डांटा नहीं आज, तो मुझे लगा कि तुम्हे याद दिला दूँ, तुम्हारा गुस्ताख़ क्लासमेट तुम्हारी डाँट खाने के लिए हाज़िर है !" माधवी पिता की चिंता में गंभीर मुद्रा में बैठी थी पर आनंद के इस नवीन बदलाव को देख कर उसे हँसी आ गयी | "कबतक मेरी डाँट सुनोगे? " "सारी उम्र |" "किस हक़ से? " "दोस्त समझ लो !" माँ ने सब सुन लिया था और एक अरसे बाद बेटी को हंसती देख मन ही मन आनंदित थी |उन्हें अपनी बेटी के लिए आनंद जैसा ही दामाद चाहिए था |बस पति स्वस्थ घर लौटें तो इसी लगन में बेटी के हाथ पीले कर दूंगी|इन्ही विचारों में खोयी थीं, तभी माधवी ने बताया कि ऑपरेशन सफल रहा माँ !थोड़ी देर में पिताजी को होश भी आ जायेगा | माधवी पहली बार नतमस्तक थी |आनंद ने समय पर पिता का इलाज कर उनके प्राणों की रक्षा की थी |दो दिन बाद दिवाली थी |माँ ने मन ही मन आनंद को जमाता मान लिया था |उन्होंने दिवाली के दिन माता -पिता के साथ आने का निमंत्रण भी दे डाला |आनंद तो जैसे इसी ताक में था |दिवाली की रात दीयों और पटाखों से जब सारा जहाँ रौशन था तब माधवी और आनंद को एक बंधन में बांधने की तैयारियां चल रही थी |दोनों शरमाकर बाहर आ गए थे |माधवी आनंद को पाकर गर्व महसूस कर रही थी और आनंद ने तो जैसे माधवी को जीतकर जग जीत लिया था |चार दिन के बाद का ही मुहूर्त निकला |विवाह संपन्न हो गया अब दोनों एक दूसरे के हो चुके थे ! तभी दरवाजे पर हुयी दस्तक से माधवी की लम्बी तन्द्रा टूटी |वह वर्तमान में लौट आयी | "मे आयी कम इन मैडम? " "कौन? "ख़यालों में खोई माधवी चौंकी | "तुम्हारा पति !" आनंद दुःसाहसी प्रेमी के समान उसकी तरफ खिंचा आ रहा था |उसकी मादक अदा पर माधवी मुस्कुराने लगी |पति ने साधिकार घूँघट उठाना चाहा तो माधवी ने अपने हाथ आगे किये | "पहले मुँह दिखाई निकालिये जनाब !" "प्रिय मैं मुँह दिखाई में तुम्हे, तुम्हारा अभिमान देता हूँ !तुम जिस मान सम्मान के साथ मुझसे झगड़ती रही, बस वैसी ही बनी रहो !!एक स्वाभिमानी और ओजमयी माधवी !तुम बोलोगी और मैं सुनूंगा |मैं यानि वही' गंवार आनंद और तुम यानि वही टॉपर माधवी' !!"मुँहदिखाई में अपना आत्मसम्मान वापस पाकर स्वयं ही साथी के बाँहों में समा गयी | आनंद की इन बातों की गहराई ने माधवी को खामोश कर दिया था |इतने सुन्दर व सुलझे विचारों वाले सहचर को पाकर धन्य महसूस कर रही थी |उसकी हार उसे इतना खूबसूरत उपहार देगी ये सोचा ना था |वह हार कर जीत गयी थी !!
