आस्था
आस्था
गोपाल खिड़की से बाहर झांकना मत, किसी से बेवजह बात मत करना।खाना समय से खालेना इत्यादि सुझाव गोपाल के माता-पिता बार बार दे रहे थे। गोपाल पहली बार अकेले अपने मामा के गांव जा रहा था।हर साल गोपाल अपने मां बाप के साथ ही गांव जाया करता था , कभी दादी की यहा तो कभी नानी की। लेकिन गोपाल को आज कल ये लगने लगा के वो बड़ा हो गया है और खुद अकेले घूम फिर सकता है।ओ अपने मां और पिताजी को इस बात के लिए राजी कर लेता है और रेल स्टेशन पर पहुंच जाते हैं।रेल गाड़ी की सीटी बजी और रेल गाड़ी धीरे धीरे निकल पड़ी। गोपाल बहुत खुश होके अपने मम्मी और पापा को हाथ हिलाकर बाय करने लगा।तब उसके पापा गाड़ी के पास तेजी से आकर उसके बैग में कुछ डालते हुए कहा बेटा अगर सफर के दौरान डर लग तो झोले में जो चीज मैंने डाला है उसको देख लेना हिम्मत आ जाएगी। रेल गाड़ी अपनी स्पीड पकडी और दौड़ने लगी।गोपाल रेल की खिड़की से बाहर देखकर सोचने लगा कि वाह क्या बात है मज़ आएगा। थोड़ी देर बाद उसको भूख लगी और उसने अपना डब्बा खोल कर मांने जो नाश्ता रखा था उसको खाया और फिर खिड़की से बाहर देखने लगा। रेल कई स्टेशनों पर रुकीं और बहुत लोग और चढ़े।अब गोपाल को थोड़ी सी घबराहट होने लगी।उसका चेहरा फीकी पड़ी थी। सामने जो अंकल बैठे थे उन्होंने पूछा कि क्या बात है बेटा सब ठीक है ना? गोपाल चुपचाप बैठा खिड़की से बाहर देख रहा था।तब उसको अचानक उसकी पापा कि बात याद आई और उसने अपना झोला खोल के देखा तो उसको एक पर्ची दिखा जिसमें उसके पापा ने लिखा था"बेटा डर मत मैं तुम्हारे साथ आगे की डिब्बे में ही सफर कर रहा हूं।ऐ बात पड़ते ही गोपाल को पूरी तरह जोश आई और आराम से अपने सफ़र की लुत्फ उठाया।
इसी तरह भगवान भी हमारे साथ साथ चलते है बस हमें अटूट विश्वास और भरोसा बनाए रखना है। आस्था हमें हर मुसीबत से छुटकारा दिलाता है। चलो इस मुश्किल दौर से हम हिम्मत से काम लेंगे और श्रद्धा और सबूरी के साथ जीत हासिल कर लेंगे।