आपट्याची पाने
आपट्याची पाने
आज फिर सुबह ही उससे मिल गई मैं ! आपट्याची झाडा खाली। और वो...मेरे एक दम पीछे। मेरी आँखो पर से हाथो को हटाता हुआ बड़े प्यार से मुस्कराता हुआ बोला ,"बघ!तुझा साठी लावला। " तुझा साठी!
वो ...दशहरा का दिन शाम को मिला मुझे ।थोड़ा शर्माता और घबराता हुआ। मेरी ओर आने मे डरता हुआ। वैसे मेरी हालत उससे अलग न थी। धड़कने थोड़ी ज्यादा ही बढ़ गई थी और हाथ बुरी तरह कांप रहे थे। वो सामने आकर थोड़ा दूर से ही अपने उंगली के अंतिम छोर में आपट्याची पाने पकड़ते हुए।
जैसे अपनी धड़कनो को संभालता हुआ धीरे से बोला ," Happy Dussera " मैं भी घबराते हुए और उसके हाथो से मेरा हाथ touch न हो जाए इस डर से पत्ती नही पुरी डडी ही उसे दे डाली ।"Happy Dussera "ये शब्द भी बड़ी मुश्किल से निकले थे ,मेरी जुबान से। "इसका मैं क्या करुँ ? " बोलते हुए वो मुड गया।मैने बात सभालने के लिए मुस्कराते हुए कह दिया।शादी में अपनी wife को गहने बना देना।वो थोड़ा irritated होकर बोला "झाडच लावून टाकतो। " और आज फिर दशहरा है । "बघ! तुझा साडी लावला।" मै भी न यादो मे खो जाती हू।
कुछ मुस्कराकर मै पीछे मुड़ी पर तुम कही नही थे। what a co- incident....उस पेड की तरफ देखकर मै मुस्कुराती हुई नम आँखो से बोली तुम भले ही आज यहा नही पर ये झाड है तुम्हारी याद दिलाने के लिए।Happy Dussera वैसे तुम कही भी रहो बस तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान रहे और दिल मे मेरा नाम रहे।