Aaradhya Ark

Inspirational

4.4  

Aaradhya Ark

Inspirational

आप तो बिल्कुल अलग हैं

आप तो बिल्कुल अलग हैं

5 mins
1.7K


"अरे... मैडम... आप...? और यहाँ...? "


द्विती ने आवाज़ की दिशा में मुड़कर देखा तो उसके पीछे उसके ऑफिस में काम करनेवाली सुषमा खड़ी थी। उसके चेहरे पर बड़े आश्चर्यमिश्रित भाव थे।

आज शनिवार था और द्विती के घर से थोड़ी दूर ही साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था सो वह कुछ ताज़े फल सब्जियाँ लेने निकल पड़ी। अभी शाम के पाँच बजे थे सो बाजार में कोई ज़्यादा भीड़ नहीं थी। सो सुषमा को द्विती दिख गई तो उसने चौंककर उससे सवाल किया था।


अभी द्विती को मुंबई कानपूर ट्रांसफर आए हुए यह तीसरा सप्ताह था। बाजार घर से ज़्यादा दूर नहीं था इसलिए वह कभी कभी पैदल ही बाजार कीओर चल देती थी। इसी बहाने उसके पैर थोड़ा चल लेते थे और पूरे बदन की थोड़ी एक्सरसाइज भी हो जाती थी। वैसे भी आते ही दूसरे दिन ऑफिस ज्वाइन करना पड़ा था सो यहाँ आसपास जिम कहाँ है ठीक से पता नहीं कर पाई थी।

और पार्क में वॉक करना उससे मैनेज नहीं हो पाता था। वो टहलते टहलते फ़ोन पर बात करने लगती थी और फिर जिस उद्देश्य से वॉक पर निकलती वह अधूरा ही रह जाता था।


आज यहीँ अचानक उसके ऑफिस में काम करनेवाली सुषमा मिल गई तो उसे द्विती को साप्ताहिक बाजार से सामान खरीदते हुए देखकर चौंक गई थी।और द्विती को अभिवादन करके बोली,


"मुझे लगा था कि आप तो ये सब सामान ऑनलाइन मंगाती होंगी। आप इस बाजार में कैसे...?"


द्विती ने सुषमा के सवाल का मुस्कुराकर जवाब दिया,

"अरे... ज़ब इतनी फ्रेश सब्जियाँ और फल यहाँ मिल जाते हैं तो मैं फ्रेश ग्रोसरी स्टॉल से ऑनलाइन सब्जियाँ क्यों मंगाऊँ? मुंबई में भी बड़ी मज़बूरी में ही हम बाहर से कुछ खाने का सामान मंगवाते थे। वरना वहाँ भी कहीं कहीं बाजार लगता ही है जहाँ सही दामों में फ्रेश चीज़ेँ मिल जाती हैं!"


"आप तो ऑफिस में हमेशा टीप टॉप होकर आती हो और फिल्ड वर्क में कई बार आपको हमने शर्ट ट्रॉउज़र पहने भी देखा है। फिर आपके सोशल मिडिया पर कुछ पोस्ट्स भी देखे तो मुंबई में तो हमेशा आप जींस में और चुस्त कपड़ों में ही नज़र आईं। यहाँ आपको एकदम सिम्पल लुक और सलवार कमीज़ में देखकर मेरी तो नज़र ही धोखा खा गई।मेरा तो नज़रिया ही बदल गया!"


सुषमा ने अपनी आँखें बड़ी करते हुए कहा तो द्विती ने उसकी बात बड़े आश्चर्य से सुनी फिर कहा,


"सुषमा, वो तो हर जगह के रहन सहन और कुछ समय की माँग होती है। ऑफिस में मैं एक एरिया मैंनेज़र के पोस्ट पर काम करती हूँ इसलिए स्थान और पद के हिसाब से वह पहनावा और व्यवहार वहाँ की ज़रूरत है। और अभी यहाँ मैं एक गृहणी की हैसियत से आई हूँ तो उसी हिसाब से आरामदेह कपड़े पहनकर आई हूँ। और इसके अलावा यहाँ बाजार पास में ही है तो ऑनलाइन सामान क्यों मंगवाना...?"


"अच्छा...! हमें तो लगा था कि आप मुंबई जैसे महानगर से आई हो तो आप शायद स्थानीय बाजार से कुछ नहीं लेती होंगी। आपके कपड़े भी तो ब्रांडेड होते हैं और आप इतने मॉडर्न और स्टाइलिश हो!"


"वो तो एक रहन सहन का अपना तरीका है सुषमा। मुंबई में भागदौड़ बहुत होती है और फिर कभी मेट्रो तो कभी लोकल ट्रेन में सफर करने की वजह से जींस और चुस्त कपड़े पहनना ज़रूरी हो जाता है। यहाँ इतनी भीड़ भाड़ भी नहीं है और मेरा घर भी यहीँ पास में ही है सो ऐसे ही चली आई!"बोलकर द्विती ताज़ा टमाटर के भाव पूछने लगी।


इधर सुषमा की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। वह अपनी नई बॉस को इतने साधारण कपड़ों में ऐसी जगह पर देखने की कल्पना भी नहीं कर पा रही थी।


खैर... सब्जियाँ और फल वगैरह लेने के बाद आखिर सुषमा ने पूछ ही लिया,


"मैडम!आप यहीँ कहीं रहती हैं क्या?"


द्विती उसके मनोभाव को समझते हुए किंचित हँसकर बोली,

"हाँ सुषमा! हमने पास में ही किराए का घर लिया है। चलो तुम थोड़ी देर के लिए चाय पीकर फिर चले जाना!"


सुषमा अपने बॉस की इस सरलता भरे व्यवहार से थोड़ी अचकचा गई। उसे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि द्विती उसे अपने घर चलने को भी कह सकती है।


सुषमा ज़ब द्विती के घर पहुँची तो देखा पुराने मोहल्ले में उसने एक किराए का घर लिया हुआ था। घर के सामने छोटा सा फूलों का बगीचा था। अंदर बड़े दीवान पर द्विती की सास बैठकर टी. वी. देख रही थीं। सामने दोनों बच्चे बैठकर कुछ लिख रहे थे। बाद में पता चला कि बच्चों के दादाजी उन्हें हैंडराइटिंग प्रैक्टिस करवा रहे थे।


सुषमा ने अपनी खोज़ी निगाहें पूरे घर में दौड़ाई तो उसे दिखावे की कोई वस्तु या अनावश्यक तामझाम नज़र नहीं आया।


उसके आश्चर्य का और भी ठिकाना नहीं रहा ज़ब द्विती के दोनों बच्चों ने उसका अभिवादन किया और बेटा जो कि लगभग बारह साल का था और बेटी शायद नौ साल की होगी। दोनों बच्चों ने अपनी माँ के हाथ से दौड़कर सब्जी का बैग ले लिया और उसे अंदर रख आए और उसके लिए और द्विती के लिए पानी ले आए।


"माँजी, पिताजी यह सुषमा जी हैँ। ऑफिस में मेरे साथ काम करती हैं!"


कहकर द्विती ने जिस तरह सुषमा का परिचय अपने सास ससुर से करवाया उसे देखकर सुषमा एकदम अभिभूत हो गई।बाद में वह मैडम के पति अविनाश जी से भी मिली। सौम्य व्यक्तित्व के अविनाश जी को देखकर लगता ही नहीं था कि वह सरकारी महकमे में इतने बड़े पोस्ट पर हैं।

एक घंटे बाद...जब सुषमा अपनी मैडम के हाथ की चाय पीकर निकल रही थी तब उसका नज़रिया बिल्कुल बदल चुका था।उसके मूँह से हठात निकला,


"अरे....! मैम, मैंने जैसा सोचा था... आप तो वैसी बिलकुल नहीं हो!"द्वेती सुनकर मुस्कुराकर रह गई।


 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational