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Sarika Bansode

Romance Fantasy Inspirational

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Sarika Bansode

Romance Fantasy Inspirational

आप चले आना

आप चले आना

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सुनो ना,

मतलब कुछ कहना हैं, वैसे कहना जरूरी तो नहीं हैं फिर बस यूँ ही मन में आया इसलिये। आप पराये नहीं हो और पूरे अपने भी नहीं हो फिर भी जो कुछ हो, बढ़िया हो। कभी भूलकर भी कोशिश ना करना आप की हमारे रिश्ते को क्या नाम दे क्यों की नाम उनको दिये जाते हैं जो बेनाम हो। हम बेनाम खैर नहीं हैं। कभी सांस और धड़कन को किसी ने नाम दिया हैं? क्या कोई इस बहती नदी को, उस समंदर को, उस आसमान को, इस मिट्टी को नाम दे पाया हैं? नहीं ना? कुछ चीजें बस होती हैं और उनका होना ही हमारे लिए बहुत कुछ होता हैं ठीक उसी तरह कुछ लोग भी होते हैं “जैसे मैं और आप।"

हम बहुत अलग हैं क्यों की हम बिलकुल एक दूसरे के जैसे हैं। कभी कभी यूँ ही सोचती हूँ सच में कोई इतना भी अलग हो सकता हैं क्या? शायद नहीं। फिर भी हम बहुत खुश हैं और आप भी खुश होना क्यों की आज के दौर में इतने अलग लोग मिलते कहाँ हैं जो बिलकुल एक दूसरे के जैसे हो। इसीलिए कहती हूँ जब कभी मन भारी भारी सा लगे , सारी दुनिया एक तरफ और आप एक तरफ लगो तब बिना हिचकिचाये आप हमारे पास चले आना , चले आना बिलकुल उसी तरह जिस तरह रोज सुबह सूरज की किरणें आकर धरती को खुद में समां लेती हैं, बारिश की एक एक बूंदें मिट्टी के रोम रोम में बसकर एक खुशबु बनकर फैलने लगती, हैं ठीक उसी तरह आप भी चले आना की आपको आने की ना कोई वजह होगी ना जाने की मजबूरी। हम उस संगीत की तरह मिलेंगे जिसकी धून छेड़ जाये तो ग़ज़ल निकले और उसके हर एक अल्फाज में मिले आप और हम। बस कुछ इसी तरह आप चले आना।

सच कहूं तो ये जीवन इक पहेली की तरह है, ये सुलझता नहीं है। समाज, रीति, रिवाज हमें हमेशा अपने शिकंजे में रखने की कोशिश करेंगे, एक कैदी की तरह हमारे ऊपर उनकी नजरे होंगी क्यों की हम इंसान जो ठहरे। ये दीवारें हमेशा हमको बाटती रहेगी, कभी धर्म, मजहब, जात पात, ऊँच-नीच, अमीर, गरीब और कभी मर्द और औरत के नाम पर भी। सृष्टि ने सबको अलग पहचान दी हैं पर उसने कभी भेदभाव नहीं किया। हम भी ये सब दुनियादारी झेलकर जीने की कोशिश करेंगे पर जब कभी ये कोशिश नाकाम लगने लगे, तब आप मेरे पास चले आना बिलकुल उसी तरह जैसे ख्वाब में सपने आते हैं, मंदिर में पुजारी जाते हैं और जिस तरह खामोशी से देह से प्राण जाता हैं। कभी देखा हैं इनको आते जाते आवाज करते हुए ? ठीक उसी तरह आप भी चले आना, चले आना सारी दुनिया से परे होकर, चुपचाप खामोशी से बस चले आना।

इस दुनिया ने स्त्री और पुरुष को हमेशा बाँट रखा है, शरीर की इक अनजान सी बेड़ी में और शायद हमने भी उस जंजीर को अपनाया हैं। चलो कुछ हद तक यह भी सही मान लेते हैं पर उस मोड़ का क्या करें जहाँ जिस्म का कोई वजूद नहीं रहता? देह किसी की कोई भी पहचान नहीं बनता शायद उस मोड़ पर जाकर आपको हमारी याद आये। तब आप निःसंदेह हमारे पास चले आना जिस तरह हर प्रार्थना अपने भगवन तक पहुँच जाती हैं , ठीक उसी तरह जिस तरह चट्टानों कोण लांघकर नदी की धारा अपने सागर में विलीन हो जाती हैं। आप चले आना उस तरह जिस तरह देह को त्यागकर रूह निकल जाती हैं। हम उस पार आपका इंतज़ार करेंगे जहाँ हमारे बीच में कोई भी हमें बाँटने वाली लकीर न हो, हमारा जिस्म हमारा हो पर उसमें बस आगाज जिन्दा हो। आप उस मोड़ पे चले आना जहाँ हम सबको किसी अपने की जरूरत होती हैं बस उसी अपनेपन के साथ आप चले आना। 

आप चले आना...


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