Shishir Mishra

Drama

5.0  

Shishir Mishra

Drama

आँखों का तारा

आँखों का तारा

4 mins
1.5K


आज भी शाम के सवा पाँच हो रहे थे, कालीप्रसाद अपनी खून से सनी बंदूक से पक्षियों का शिकार कर रहा था। और ऐसे आनंद की अनुभूति कर रहा था जैसे वह अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि दे रहा हो। लोग उसकी गर्जना सुनते तो थे मगर किसी के पास उसको कुछ समझाने की हिम्मत नही होती थी। कौन जाए उस सनकी से बहस करने? 

आज तो वो इतना खुश था की आते ही अपने बेटे को वो बंदूक थमा दी जिससे उसने पंद्रह चिड़ियों को मारा था। और गर्व से अपनी पत्नि को पीटने के लिए अंदर गया। उसकी पत्नि का ऐसा आचरण नही था जैसा वो चाहता था और इसी बात पर मार पीट उसका रोज़ का काम बन गया था। 

आज भी उसने आँटे की लोई खराब की तरकारी की काराही उलट दी और उसके बाद उसके बालों की संख्या कम की और अपनी मूछों को ताव देता बाहर की ओर निकल गया। 

बच्चे को अंदर बुला रही बहू बाहर द्वार पर कैसे जाती, बाहर बच्चा बंदूक के साथ अकेला बैठा था। 

तभी एक गाँव का गवार भाभी-भाभी करता अंदर घुस आया और बच्चे को अकेला बैठा देख उसकी तरफ बढ़ा, समाज के बंधनों में बंधी बहू दौड़ी कि उसको अंदर कर ले लेकिन कुरीतियों और पति के डर और चौखट ना लांघने की प्रथा ने उसके पैर रोक लिए। देखती रही वो वहीं पर खड़ी की कैसे वो पागल सनकी उसके बेटे को बंदूक चलाना सिखाता रहा। 

अंत में जब वो वहाँ से चला गया तो घूँघट में छिपी और घर की बेड़ियों में बंधी स्त्री ने चौखट लांघने और बेरहम पति की बंदूक फेकने में डर का अनुभव बिल्कुल नही किया। अंदर ले जाकर उसको डाटती और रोती, मगर अपने किये इस कार्य पर अफसोस भी कहीं ना कहीं उसे हो ही रहा था। उसको लगने लगा था कि उसका बेटा अपने बाप की सारे गुण सीख ही लेगा। 

उसकी सोच और डर को हकीकत में बदलने में ज्यादा समय भी नही लगा। एक दिन अपने रोज़मर्रा के बाद जब कालीप्रसाद ने अपने बेटे से कहा, "चल बेटा, आज से तेरा ट्रेनिंग शुरू" तो उसको यकीन हो गया कि अब ये लड़का भी उसी पथ पर चलने को आग्रसर होने वाला है जिसपर उसके पूर्वज चल चुके हैं। वो आया तो रोज़ की तरह पैर छूने पर माँ को पहले ही भनक लग गयी की उसके अपने बेटे का ये आखिरी चरण स्पर्श है, इसके बाद तो जो आएगा या तो किसी की जेब पर हाथ साफ करके आएगा या किसी के खून से हाथ धोकर। इसलिए उसने रोज़ की तरह जीते रहो भी नही कहा। एक बार घर से निकला बेटा बाप से भी काल साबित हुआ, लोगो के मन में उसका खौफ उसके पूर्वजों से भी ज्यादा हो गया। 

एक दिन किसी का खून करते उसको रंगे हाथों पुलिस ने देख लिया और पीछा करते उसके घर तक आ पहुँची जहाँ दो साल से उसकी माँ अकेले रह रही थी। वो इतने गुस्से में था कि गोली खत्म होने का गुस्सा उसने जिस तरह एक बार अपने बाप पर उतारा था उसी तरह आज उसने अपनी माँ के स्तन में अपनी आखिरी गोली मार कर उसके दूध का कर्ज़ अदा किया और कुछ देर बाद जब उसके पैरों के नीचे उसकी जन्मदात्री का लहू आया तो क्रोध, अहंकार, जोश, और कुकर्मो से भरा मन फूट फूटकर रोने लगा। 

मीनों किसी ने उस दस साल के बच्चे की आँखों से पट्टी खोल दी हो और वो कुछ समझ ना पा रहा हो कि मेरी माँ का कातिल कौन है। उसके शरीर से लिपट कर वो बच्चों की तरह रोने लगा। 

तभी कुछ लोगों के अंदर घुसने की आवाज सुनाई दी, कुछ पैसों और थोड़े कानून के ठेकेदार जो उस सनक की परवरिश में भी सहभागी रहे और आज अपने बच्चों को भी उसी दस साल के लड़के जैसा प्यार देेे रहे हैं, अंदर आए और उस बच्चे को गोलियों से भून कर रख दिया। वो बच्चा वहीं पर मर गया, शायद अगर वो पुराना आतंकी होता तो उनसे लोहा लेता मगर वो तो सवा पाँच बजे से दस मिनट पहले ही चल बसा था इस बच्चे की मौत सवा पाँच बजे हुई। 

मैं इसी गाँव की एक डरी हुई और असहाय सी कलम हूँ जो लोगों को आ बैल मुझे मार आ बैल मुझे मार कहते नही करते देख रही हूँ और ऐसे ही पन्ने भर रही हूँ, क्या करूँ कुछ कर भी नही पा रही हूँ !  


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama