आखिरी ख़त
आखिरी ख़त


प्रिय राहुल,
आज बहुत हिम्मत करके मैं ये पत्र तुम्हें लिख रहा हूँ। जानता हूँ कि तुम इन सबसे अब बहुत दूर जा चुके हो। इतनी दूर कि अब तुम तक कोई भी खत नहीं पहुँच सकता। मैं ये खत शायद तुम्हारे लिए नहीं बल्कि अपने मन के बोझ को कम करने के लिए लिख रहा हूँ।
बात आज से लगभग तीस साल पहले की है। मुझे आज भी वो दिन एकदम अच्छी तरह याद है। मेरा हॉस्टल में पहला दिन। हॉस्टल नम्बर तीन,रूम नम्बर सैंतालिस। मैंने कमरे के दरवाजे पे नॉक किया, और अंदर से तुम्हारी आवाज़ आई 'कम इन'। मैने दरवाजे को धक्का दिया और तुम दिखे अपने जूतों को पॉलिश करते हुए। मुझे देखते ही तुम चौंक गए थे 'अबे ये जीन्स पहन के कैसे आ गया?'उन दिनों रैगिंग पीरियड में जीन्स और स्पोर्ट्स शूज हम जूनियर्स के लिए प्रतिबंधित होते थे। 'चल जल्दी से चेंज कर। ' ये वाकया इतने सालों के बाद भी मुझे जस का तस याद है।
तो इस तरह शुरू हुई हमारी पार्टनरशिप लगातार पाँच साल चली। कभी पार्टनर चेंज करने का खयाल ही नहीं आया। मैं राजीव सिंह और तुम राजीव निगम मिल कर राजीव स्क्वायर हो गए।
उन दिनों आज की तरह सोशल मीडिया तो था नहीं लेकिन पत्र मित्र बनाये जाते थे। ऐसे ही किसी तरह से तुमने एक पत्र मित्र बनाई थी मीनाक्षी चौहान। दिल्ली की थी,वहीं से वो इंग्लिश लिटरेचर में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी। अब समस्या ये थी कि तुम्हें पत्र लिखना सबसे दुष्कर कार्य लगता था। एक दो बार तो तुमने लिखा फिर बाद में ये होने लगा कि तुम मुझे बोल कर लेटर लिखवाने लगे। लिखता मैं था लेकिन भावनाएं तुम्हारी होती थीं। एक दिन ऐसा आया कि लेखनी के साथ साथ भावनाएं भी मेरी होने लगीं। बस तभी न जाने कब,मैं तुमसे दगा कर गया। तुम्हें बोला कि मीनाक्षी का कोई पत्र अब नहीं आ रहा। अब मैं सीधे मीनाक्षी से संवाद करने लगा। तुम्हें इस बात का गहरा सदमा लगा तुम बिल्कुल टूट गये। तुमने अपने आप को शराब में डुबो दिया। दिन रात नशे में रहने लगे कॉलेज तो छूट ही गया।
इधर मैं मीनाक्षी से मिलने के इंतजार में था। एक दिन मीनाक्षी ने कहा 'राजीव हमें अब मिल लेना चाहिए। ' कनॉट प्लेस के एक रेस्टोरेंट में मिलना तय हुआ। तुम्हें पीले और मुझे नीले कपड़े पहनने थे। मैं गया, पीले कपड़ों में तुम मुझे दूर से ही पहचान आ गई। मै सीधा तुम्हारे पास गया और बोला 'हाय!' तुमने मुझे आश्चर्यजनक मुद्रा से देखा और बोली 'जी आप कौन?' 'मैं राजीव, मैंने कहा। तुमने कहा 'राजीव तो ये है'और ऐसा कह कर तुमने जो फ़ोटो दिखाई,उसमें तुम दिख रहे थे मेरे दोस्त तुम 'राजीव निगम'। मीनाक्षी ने मुझे बहुत बुरी तरह वहाँ फटकारा और बेइज्जत करके बाहर करवा दिया। मुझे तो ये पता ही नहीं था कि तुम अपनी फोटो पहले ही उसे दे चुके थे।
शराब ने तुम्हें पूरी तरह से तबाह कर दिया। दो साल के अंदर अंदर ही तुम इस दुनिया से जाते रहे।
और मैं रह गया घुट घुट के जीने के लिए।
जो मैंने किया है उसका कोई प्रायश्चित नहीं है। एक बात इस पत्र के जरिये कहनी थी 'किसी को भी ऐसी हरकत अपने दोस्त के साथ नहीं करनी चाहिए। इससे बड़ा कोई पाप नही।
मुझे माफ़ न करना मेरे दोस्त।