'पापड़ वाली'
'पापड़ वाली'
सलिल ने जोर से दरवाजा बंद किया और तेजी से जीने से उतर कर घर से बाहर निकल गया। लेकिन क्या दरवाजा बंद कर देने से यादें बंद हो जाती हैं?उल्टा और बंद कपाट खुले जाते हैं।विचारों के कोलाहल में कब चलते चलते वो नदी के किनारे आ गया, पता ही न चला।
सलिल को याद है,की कैसे एक दिन अचानक एक रोड एक्सीडेंट में उसके पापा की मौत हो गई थी, जब वो इंजीनियरिंग कॉलेज में आखिरी साल में पढ़ रहा था। माँ बेटे की तो एकदम से दुनिया ही बदल गई। पापा प्राइवेट नौकरी में थे,कंपनी वालों ने मुआवजे के नाम पर थोड़े से पैसे दिये और हाथ खड़े कर लिए। ऐसे समय पर नाते रिश्ते भी कोई काम न आए। माँ ने बी.ए. कर रखा था। वो तो भला हो मिश्रा जी का जिन्होंने माँ की महिला गृह उद्योग में सुपरवाइजर की नौकरी लगवा दी। माँ बेटे की ज़िंदगी धीरे धीरे पटरी पे आ गई। माँ बीस पच्चीस औरतों के समूह का सुपरविजन करती थीं। ये औरतें पापड़ बनाने का काम करती थीं।इस तरह माँ मोहल्ले में पापड़ वाली के नाम से मशहूर हो गईं।
सलिल ने ग्रेजुएशन कर लिया फिर एम टेक् में एडमिशन मिल गया। माँ ने कहा 'तुझे जितना पढ़ना है पढ़ ले,मैं सब सम्भाल लूंगी।'फिर नौकरी लग गई ,सलोनी से शादी भी हो गई।
शुरू में तो सब ठीक ही था फिर नोंक झोंक शुरू हो गई।सलोनी को लोगों का माँ को पापड़ वाली बोलना पसंद नहीं था। पुराना मोहल्ला छोड़ दिया, नई कॉलोनी में मकान बना लिया।माँ यहीं से अब भी अपनी नौकरी पे जाने लगीं। लेकिन पुराना कोई मिल जाता तो फिर वही पापड़ वाली बोल देता और सलोनी का मूड ऑफ हो जाता।
आज भी ऐसा ही ही हुआ होगा, कोई पुराने मोहल्ले का घर आया और सलोनी का दिमाग खराब कर गया। मेरे आते ही सलोनी तो जैसे भरी पड़ी थी मेरे आते ही किस्सा लेकर शुरू हो गई।मैं ऑफिस से ऐसे ही थक कर आया था, सीधा ऊपर गया माँ के पास और बोल दिया 'माँ,आपको अपनी नौकरी या घर में से किसी एक को चुनना होगा। मैं रोज़ रोज़ के बवाल से तंग आ गया हूँ।'इतना कह कर मैं तेजी से बाहर निकल गया।
अब नदी के पास आकर जब दिमाग काम करने लगा तो मैंने सोचा कि अरे मैंने ये क्या कर दिया? मैंने माँ को ऐसा कैसे कह दिया। सलोनी को तो हो सकता है, न पता हो परन्तु मुझे तो सब पता है। मुझे तो माँ का सारा संघर्ष पता है।
ये बात याद आते ही मैं तुरन्त लौट पड़ा घर की ओर। मेरे साथ साथ सलोनी को भी माँ की
अहमियत तो माननी ही पड़ेगी।