रोटी
रोटी
मिसेज़ वर्मा के बेटे की जबसे शादी हुई है सारे घर वाले बहुत ही परेशान हैं, उनके बात बात में अत्यधिक तनावग्रस्त होने से। छोटी छोटी बात पे भड़क उठती हैं। सबने खाना खा लिया, बहू अभी तक भूखी है,बहू के लिए रोटी बची की नहीं।हाय राम ये तो दोनों नीचे की रोटी ही बची हैं,आदि आदि।
बहू का खयाल रखना तो ठीक है लेकिन ये तो कुछ ज्यादा ही हो गया।
बहुत दिनों तक ऐसा ही होता रहा तो एक दिन थक हार मिस्टर वर्मा मेरे सामने बैठकर अपना दुखड़ा बयान करने लगे। मैं कौन? मैं मिस्टर वर्मा का बचपन का सखा,हर दुख सुख का साथी, पेशे से मनोचिकित्सक।
वर्मा जी बोले"यार कैसे भी कर सुधा को ठीक कर। ये तो ऐसे बीमार हो जाएगी"।
वर्मा जी के कहने पर मैंने कहा एक बार भाभीजी से बात कर के देखते हैं।अगले दिन भाभीजी से लम्बी बात हुई तो ये बात निकल कर आई कि जब सुधा जी नई नई शादी करके आईं तो उनकी सास ने उन्हें खाने की बहुत तकलीफ दी और ये बात उनको आज तक एक ग्रन्थि बन कर तकलीफ़ दे रही थी।
काफी देर तक समझाने के बाद,सुधा जी सामान्य हुईं।मुझे उन्होंने वचन दिया बहू का ध्यान तो रखेंगी लेकिन अपना भी ध्यान रखेंगी।
