आख़िर मेरी क्या खता है ?

आख़िर मेरी क्या खता है ?

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"माँ क्यों आप इस उम्र में ये निर्णय ले रही हो। हम सब तो है आपके साथ, फिर आपको क्यों किसी बात की कमी खलती है"


"नहीं बेटा अब इस उम्र में आकर तो सोचा मैंने। उम्र ही कितनी बची है मेरे पास, अब जिंदगी कैद में नहीं सुकून में बिताना चाहती हूँ" और ये कहते कहते वो अपने कमरे में चली गई।


घर में फिर सन्नटा छा गया, आखिर माँ अब जाकर हार गई, अब तक तो उन्हें आदत हो जानी चाहिए थी।


घोर अंधरे में बैठे सुमन अपने बीते पन्नो से कुछ लम्हें बटोरने की कोशिश कर रही थी। पर वो लम्हें उन्हें अश्क़ों के सिवा कुछ नहीं दिए थे आज तक।


वो पहला दिन जब शादी के वचनों में बंधी सुमन अपने ससुराल में आई थी। बहुत उम्मीदें लिए, बहुत सपने लिए, सोचा था जो अपने मायके में पूरे नहीं कर पाई सपने वो अपने पति के साथ पूरे करुँगी। एक प्यार से परिपूर्ण पति की कल्पना लेकर वो आयी थी।

 

रमेश, सुमन के पति बहुत ही ग़ुस्सेल स्वभाव के थे। ये बात सारे परिवार को पता थी पर सुमन अनजान थी। पहली रात जब वो घड़ी की सुइयों के बीच टक लगाए अपने पति का इंतजार कर रही थी। 2 बज चुके थे, पर रमेश नदारद थे। जब सुमन की आँख लग गयी तो दरवाजे पर दस्तक हुई। घबराई सुमन अपने कपड़ों को ठीक करती हुई खड़ी हो गयी।

क्या कहूँ क्या नहीं कुछ समझ नहीं आ रहा था। रमेश ने तकिया उठाया, चद्दर ले कमरे के बाहर चला गया। सुमन कुछ समझ नहीं पाई की क्या हुआ, क्यों रमेश बिना बात किये ऐसे निकल गए।


सुबह जब अपनी जेठानी से ऐसे ही बातों में सुमन ने पूछा तो, जेठानी थोड़ी सकपका गयी।


"अरे कुछ नहीं देवर जी थक गए होंगे। तुम्हे परेशान नहीं करना चाहते होंगे, इसलिए चले गए। वक़्त बीतता गया और सुमन के सपने सीने में दफन होते गए। अब तो रमेश के पास बैठने में भी उसे डर लगता। रात का वक़्त होता और रमेश का प्यार कहो या हवस बस बिस्तर पर नजर आती। सुबह से जैसे उसे सुमन से कोई मतलब ही ना होता, पर उसकी इस मामले में कोई मदद भी नहीं करता। सास से बात करती तो वो कहती अब मर्द को गुस्सा नहीं आएगा तो मर्द कैसा?


दिन बीतते गए वो दिन भी आया जब सुमन माँ बनने वाली थी। सुमन को लगा शायद ये रमेश के स्वभाव को बदल दे, पर जैसे रमेश को कोई फर्क ही नहीं पड़ता था। वक़्त बीता और सुमन ने एक बहुत ही सुंदर बेटे को जन्म दिया। पहली बार रमेश के चेहरे पर मुस्कान दिखी, सुमन को उसमे भी उम्मीद नजर आयी।


कुछ सालों बाद रमेश का तबादला हो गया, जिससे सुमन की घबराहट और बढ़ गयी। क्योंकि यहाँ तो सब थे जो उसकी तकलीफ को समझ लेते थे, अपना मन वो हल्का कर लेती थी, पर वहाँ वो रमेश के साथ कैसे जिंदगी बिताएगी।


पर पत्नी थी आखिर साथ जाना ही पड़ा। वहाँ जाकर अपने बच्चे को उस प्रकोप से दूर रखना उसके लिए मुश्किल हो गया। अब तो रमेश शराब पीकर घर आने लगा और कभी कभी सुमन पे हाथ भी उठा देता। बेटा बड़ा हो रहा था, और समझ भी बढ़ रही थी। वो अपनी माँ को रोज गालिया सुनते और मार खाते देखता। पर वो उसके ख़ातिर चुप रहती, वो तरस गयी थी प्यार क्या होता है। जिंदगी जीना किसे कहते है, उसका भी मन होता था कि वो आने पति के साथ बाहर जाए, अपनी खुशियों को साझा करें, अपने आँसू दिखाए, पर ये उसकी किस्मत में नहीं था।


अब लगभग पूरी जिंदगी जीने के बाद ये फ़ैसला लेने की हिम्मत आयी है। आसान नहीं है, पर मरने से पहले कुछ साल मैं अपने लिए जीना चाहती हूँ। बेपरवाह जिंदगी की खुशियों को महसूस करना चाहती हूँ, जो इस जन्म में यही इनके साथ रहकर तो नहीं हो पायेगा, इसीलिए अब में अलग होना चाहती हूँ।


भगवान मानते है पति को पर शायद मेरे भगवान में दया रूपी भाव कभी नहीं आएंगे, इसीलिए आज मैं अपने भगवान का त्याग करना चाहती हूँ। माँ बाहर आओ कमरे से और दरवाजा खटखटाने की आवाज से सुमन के वर्तमान फिर हाज़िर हो गया।


दरवाजा खोलने पर, बाहर रमेश भी थे, बेटे बहू सब थे।


"पिताजी, माँ इस उम्र में ये फैसला क्यों लेना चाहती है, आप कुछ कहिए"


"अरे जाने दो, दो दिन भटकेंगी और अक्ल ठिकाने आ जायेगी। जब खाने को खाना नहीं मिलेगा, रहने को जगह नहीं मिलेंगी, बहुत उड़ रही है इस उम्र में। खुद को संभालने की हिम्मत नहीं तलाक लेने चली है, आज अचानक इतनी हिम्मत कैसे आ गयी"


"सच कहा आपने बहुत देर से जागी हूँ। काश ये हिम्मत पहले आ गयी होती तो आज मेरा जीवन कुछ औऱ होता, पर अब जो दिन मेरे पास बचे है, मैं उन्हें तुम्हारे साथ नहीं बिताना चाहती। कोई अफसोस नहीं रखना चाहती जिंदगी से"


"बेटा तू मुझे वृद्धाश्रम छोड़ दे, मैं वहाँ सुकून से रहूँगी। मुझे तुम दोनों से कोई शिकायत नहीं है। लोग अगर कहे कि बेटे बहू के होते हुए मैं यहाँ नहीं रह रही तो कह देना सबसे की ये मेरा खुद का फैसला था। बिना किसी अफ़सोस के, बेटा मेरी आख़िरी इच्छा समझ कर तू ये पूरी कर दे"


सुमन सबको छोड़ कर आख़िर वृद्धाश्रम चली गयी औऱ रमेश अकेला रह गया।


दोस्तो ये कहानी जरूर है पर आज भी हमारे समाज में बहुत सी सुमन है जो अपने पति के प्रेम के लिए तरसती है। वो उनके व्यवहार से पीड़ित है, पर वो समाज के डर और बच्चो के भविष्य के आगे अपना पूरा जीवन झोंक देती है। इसके बाबजूद उनके पति से उन्हें हमदर्दी तक नसीब नहीं होती।


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