आख़िर कसूर क्या था मेरा(भाग-1)
आख़िर कसूर क्या था मेरा(भाग-1)
"हाय ! राम देख तो जरा काजल को! इसको देख के लगता है क्या कि इसको किसी बात का अफसोस है!!"
"अरे ! मुझे तो शुरू से शक था कि इसी का कुछ करा-धरा है वरना ! कौन जाता है इस तरह से छोड़ के" !!"
पड़ोस की आंटियों की तीखी बातें कानों में पड़ते ही काजल के थिरकते पैर एकाएक रुक गये। उसके चेहरे की मुस्कुराहट की जगह गहरी शिकन ने ले ली। काजल डांस ग्रुप छोड़ कर धीरे धीरे पीछे हट ही रही थी कि तब तक उसकी सहेली उसे टोकतें हुये कहती हैं कि अरे ! काजल कहाँ खो गयी डांस कर ना।
काजल कहती हैं कि कुछ नही तू डांस कर मैं पानी पी के आती हूँ ।
असल में काजल तलाकशुदा हैं तीन साल पहलें बड़े जोर- शोर से काजल और अजित की अरेंज कम लव मैंरेज हुई थी।
खैर
आज काजल की सहेली का संगीत है तो काजल भी अपने बचपन की सहेलियों के साथ खुब हंसते मुस्कुराते अपने सारे दुख ,तकलीफें भूल के एजांय कर रही थी पर लोगों को ये सब रास कहाँ आता है काजल का दिल दुखा ही देते हैं ।।काजल संगीत खत्म करके घर लौटते वक्त गाड़ी में बैठें बैठें पुरानी यादों में खो जाती है कि कैसे वो जब नयी नयी शादी करके अजित के साथ उस सोसयटी के शानदार फ्लैट में रहने गयी थी ।
कितना खूबसूरत फ्लैट था वो बालकनी से समुद्र की लहरें कितनी खूबसूरत दिखती थी,लहरों की आवाजें एक मधुर सगीतं सी लगती और उस रात जब चांद की चाँदनी का दूधिया रंग उसके बेडरूम में बिखरे हुएयें थे ,उसे देखकर कैसे काजल नाच उठी थी ।चाँद की रोशनी में अजित के बाहों में सिमटें हुयें कितनी प्यारी मुस्कान के साथ सोई हुई थी काजल देख के ऐसा लग रहा था मानों किसी स्पवनलोक की सैर कर रही हो।।क्या वो दिन थे ! कैसी खुमारी चढ़ी हुई थी उस वक्त ! किसी चीज का होश ना था हर चीज अच्छी लगती थी ।प्यार के रंग में खोई किसी बात की कोई सुध ही ना थी जैसे उसे ।
ऊफ्फ !!!!
सोचों तो सब सपना सा लगता है या पागलपन सा !
खुद पे काजल को कभी कभी गुस्सा भी आता है कि किस दुनिया में खोई हुई थी जो सच को कभी भाप भी नही पायी या फिर अपने अल्हड़पन में नजरंअदाज कर बैठी थी और न जाने क्या क्या !!!!काजल गाड़ी में बैठे बैठे खुद को कोश्ती रहती है ।
काजल और अजित का कालेज वाला प्यार रहता है दोनों एक-दूसरें से बहुत प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे पर दोनों की जाति एक ना होने की वजह से परिवार वाले तैयार नही होेते हैं खासतौर से अजित के घर वाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे।
पर बेटे के प्यार में मजबूर हाेके उन्होने हाँ तो कर दी ,लेकिन दिल से खुश नही थे ,फिर काजल और अजित दूसरे शहर में रहने को आ जाते हैं क्योकि अजित की नौकरी भी इसी शहर में थी ,दोनों एक-दूजें के प्यार में खोये खोये एक -एक पल को जियें जा रहें थें ,काजल को अपना फ्लैट बहुत पंसद था ,दिन-रात उसे और खूबसूरत बनाने के लियें कुछ ना कुछ करती रहती है।
कभी पौधों लगाती तो कभी विड्चाइम लगाती ,पेटिगं तो कभी पर्दे न जाने क्या क्या दिन-भर करती रहती अपने घोंसलें को संजाने के लियें ,और इन्हीं सब चीजों में खोये खोये न जाने कब ये वक्त बीत जाता है पता भी नहीं चलता और अजित और काजल की पहली सालगिरह भी आ जाती है दोनों ही एक-दूसरें को अच्छे अच्छे गिफ्ट देते हुयें अपने दोस्तों के साथ सालगिरह मनाते हैं।
फिर कुछ दिन बाद अजित को एक फोन कॉल आता हैं और अजित को माँ की बीमारी का पता चलते ही अजित कुछ दिनों के लिये उनसे मिलने अकेले ही चला जाता है ।
अजित जब अपने घर से लौट के आता है तो कुछ बदला बदला सा रहने लगता है हमेशा खोया खोया सा रहता ,काजल के पूछने पे थकान कहके बात टाल देता ,फिर एक महीने बाद अजित कहता है कि उसकी कम्पनी उसे विदेश जाने का मौका दे रही हैं पर शुरू में मुझे अकेले ही जाना होगा ,काजल खुशी खुशी अजित को जाने की इजाजत दे देती हैं ये कहके कि मैं इन्तजार करूंगी तुम्हारा , कोशिश करना मुझे भी जल्दी आपने पास बुला लेना ,क्योकि मैं तुम्हारे बिना रह नही सकती।
फिर अगले हफ्ते अजित पूरी तैयारी के साथ काजल को ढेर सारा प्यार देते हुय विदेश यात्रा के लिये निकल जाता है,शुरू शुरु में तो अजित के फोन आते थे पर धीरे धीरे कम होने लगे ,काजल जब भी फोन करती तो काम में बिजी कहके अजित फोन रख देता फिर धीरे-धीरे फोन पे भी बात करने का सिलसिला बंद हो जाता है।
इधर काजल अकेली अकेली उदास रहने लगती है हर वक्त अजित के फोन या उसके आने इन्तजार में बेसुध पड़ी रहती ।अजित के साथ बिताये हुयें प्यार के लम्हों को याद करती रहती,जब कभी रात में काजल को नींद ना आती तो अजित की शर्ट को लेकर उसके बदन की खुशबू को महसूस करती,घर के हर एक कोने से उसे बस अजित की आहट सुनाई देती।
ऐसे ही छः महीनें निकल जाते है तभी डोरबेल की आवाज से दौड़ते हुये काजल जब दरवाजा खोलती है तो पोस्टमैन के हाथों में कोर्ट का पेपर देखकर हैरान रह जाती हैं फिर जब अन्दर आके उस लिफाफे में तलाक के पेपर पाती तो काजल के होश उड़ जाते हैं वो कुछ समझ ही नही पाती बस उसे येही लगता कि अभी कही से अजित आ जायेगा और ये बुरा सपना टूट जायेगा पर ऐसा कुछ नही होता।
तलाक के पेपर हाथ में लिये लिये न जाने कितने फोन पे फोन वो अजित को कर डालती हैं पर अजित फोन नही उठता ।थक-हार के आखिर मे आज
काजल अपनी माँ को फोन कर रो पड़ती हैं काजल की माँ घबरा जाती है "लाडो कुछ बोल तो क्या हुआ ! कुछ बोल बेटा!"
काजल बस इतना ही कह पाती है "माँ !!!अजित !!अजित"माँ घबरहट में कहती है कि "क्या हुआ अजित को कुछ तो बता मेरे बेटा " !!
काजल आज अपने अन्दर छः महीने से भरा दर्द माँ के सामने उड़ेल देती है।माँ कहती है कि "तु इतने महीनों से अकेले अनजान शहर में रह रही है बताया क्यों नही ? आखिर माँ हूं मैं तेरी!!तु चिन्ता मत कर हम दोनों कल ही आते हैं तेरे पास।।"
काजल के माँ बाप इस हालत में काजल को देखकर सिहर उठते है और काजल को जबरदस्ती अपने साथ अपने घर ले आते हैं ।काजल को किसी भी बात का विश्वास नही होता बस वो एक बार अजित से मिलने को परेशान रहती हमेशा सोचती रहती कि ऐसी कौन सी गलती हो गई ! "जो तुमने ऐसा किया" "आखिर कसूर क्या था मेरा कुछ तो कहतें कभी" !!
दूसरी तरफ तलाक के कोर्ट केस शुरू हो गये ,काजल हर बार इस उम्मीद में जाती कि शायद अजित से मुलाकात हो पायेगी पर हमेशा ही उसके घर वाले ही आतें।।धीरे धीरे काजल अजित से मिलने की उम्मीद छोड़ बैठी थी तभी लास्ट कोर्ट इयरिगं के दिन अजित कोर्ट आता हैं पर काजल को यू अन्जान नजरों से देखता हुआ तलाक की फाइनल इयंरिग खत्म करते हुए बिना कुछ बोले चला जाता हैं काजल वही खड़ी खड़ी पत्थर की मूरत बन जाती है,आज उसका प्यार और इंसानित से भरोसा उठ जाता हैं ।
फिर भी दिल में एक टिस हमेशा उसके रहती जो हजारों बार मन ही मन में अजित से पूछती रहती कि मेरे प्यार में कौन सी कमी रह गयी थी ! आखिर कसूर क्या था मेरा!कुछ तो कहने की हिम्मत दिखा पाते कभी!मुझे भी तकलीफ होती हैं, पत्थर की मूरत नहीं हूँ मैं।।
काजल अपने माँ -बाप की खुशी के लिये अब बस जीती, उनकी खुशी के लिये खुद को खुश रखती। साथ ही खुद के पैरों पे खड़ी होकर समाज में अपनी एक पहचान भी बना चुकी है फिर भी कभी-कभी किसी जोड़े को देखकर काजल के दिल में दबी वो टीस उभर ही जाती और उसके बहते आंसू एक ही सवाल करते कि आखिर कसूर क्या था मेरा।
ये जानने के लिये कि आगे भाग का इंतजार करना होगा.........
