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Anshhu Maurya

Tragedy

3  

Anshhu Maurya

Tragedy

अधूरी ख्वाहिश!!

अधूरी ख्वाहिश!!

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"कैसे बाल कर रखे हैं झांडू जैसे? अच्छे से तेल क्यों नहीं लगाती"? सरला जी स्नेहा को डांटती हुए कहती हैं| "पता नहीं आजकल कौन सा फैशन चला है तेल ना लगाने का ऊफ्फ!!!!"

"क्या माँ ठीक ही तो हैं" कहतें हुए स्नेहा हंस के सरला जी के पैरों के पास बैठ जाती है|

कहने को तो सरला जी और स्नेहा सास बहू थी लेकिन इनका रिश्ता माँ बेटी से कम ना था। स्नेहा को सरला जी की बहू बने अभी छः महीने ही हुए थे, पर इनका अट्टू रिश्ता बन चुका था| सरला जी अपने नाम की तरह एकदम सरल स्वभाव की हसंमुख महिला थीं। स्नेहा जब बहू बनके आई थी तो उसकी गलतियों पे सरला जी बाकी सास की तरह डांटने के बजाये हंसने लगती थीं जैसे किसी छोटे बच्चे ने शैतानी की हो।

स्नेहा की जली रोटी हो या खीर मे कच्चे रह गये चावल ,कोई बात नहीं ! कह के मुस्कुरा देती, जिससे स्नेहा का हौसला बढ़ता गया और जल्दी ही स्नेहा अच्छे से खाना बनाना सीख लेती हैं।

स्नेहा अपने पति राघव से ज्यादा समय सरला जी के साथ ही बिताती,टीवी में सीरियल हो या किचन का काम या बागवानी,या फिर बाजार जाना हों,स्नेहा को सरला जी का साथ बहुत अच्छा लगता था।

कुछ दिनों से स्नेहा सरला जी कि एक बात नोटिस कर रही थी कि शायद माँ को घूमना बहुत पसंद है,कोई भी सीरियल या फिल्म में नयी जगह नया शहर दिखता तो सरला जी चिख पड़ती ये कहते हुये कि -ये देखों कितनी सुंदर जगह हैं ।

उनकी आंखों में एक चमक सी आ जाती,फिर वो स्नेहा के मोबाइल के जरिये उस जगह की बाकी पिक्चर देखतीं।

कई दिनों तक सोचने के बाद एक दिन स्नेहा पूछ बैठती हैं कि-"माँ आपको नये शहर घूमना बहुत पंसद हैं क्या"?

सरला जी मुस्कुरा के जवाब में सर हिला के हाँ कहती हैं।

"अच्छा तो माँ"!  "अब तक आप कितने शहर घूम चुकी हैं?"

अरे बेटा तू तो अपने ससुर जी को जानती है ना! "बिना वजह उन्हें घूमना फिरना समय और पैसे की बर्बादी लगती है वो खुद भी बिना काम के इस शहर सें बाहर नहीं गए तो मुझे क्या ले जाएंगे?"

"तो क्या शादी से पहले भी कहीं घूमने नहीं गयी आप"

अरे बेटा मैं गरीब मां बाप की बेटी थी, तो वो कहां से घुमाने ले जाते, पैसे वाले पति से शादी हुई तो इन्हें कोई शौक ही नहीं था घूमने का। इसलिए मैंने भी सपने देखना छोड़ दिए।

स्नेहा को रात भर नींद नहीं आती है उसने राघव को नींद से उठा दिया और बोली कि तुम अब तक कितने शहर देख चुके हो? राघव को नीदं आती रहती है तो वो कहते हैं कि "क्या बकवास है स्नेहा सुबह बात कर लेंगे इस बारे में" बोल के राघव दोबारा सो जाते हैं ।

स्नेहा गुस्सा दिखाते हुए राघव पे जोर देते हुए कहती है कि- मुझे तुमसे बात करनी है अभी।

राघव कहते हैं क्या हो गया है यार तुमको मैं थका हुआ हूं मुझे सोने दो ।

स्नेहा कहती है कि- राघव मेरी बात सुनो तुम कितने सालों से नौकरी कर रहे हो ?  "ये कोई आठ से नाै साल हो गए क्यों "? जब तुम अपने पैरों पर खड़े हो तो तुमने क्यों नहीं माँ के सपने पूरे किए ? "क्या तुम्हारा उनके प्रति कोई फर्ज नहीं बनता ?"

राघव कहता है कि "अरे यार मैंने उनको कई बार कहा खुद ही मना कर देती हैं माँ।

एक बार मैं आगरा जा रहा था और मां को बोला चलने को तो माँ ने कहा छोटी के पेपर है,फिर एक बार अपने साथ बेंगलुरु चलने को कहा माँ लगभग जाने के लिए मान भी गयी और रेडी भी हो गई थी ।तभी बड़ी दीदी अपने हस्बैंड से लड़ के आ गयी फिर माँ दीदी को छोड़कर जाने को तैयार नहीं हुई ।अब बताओ कि मैं क्या करता?"

स्नेहा को समझ आ रहा था कि वह एक माँ है खुद के सपने से पहले अपने बच्चों को ही देखेंगी,पर इन बच्चों को उनके सपने क्यों नहीं दिखते ?जबकि सारे बच्चे जानते हैं कि उनके सपने क्या है ?

स्नेहा ने सोच लिया था कि अब हर साल जरूर उन्हें घूमाने ले जायेगी।

अगले दिन स्नेहा नाशते की टेबल पे सबको बोलती कि मैं और माँ दस दिनों के लिये घूमने जा रहे है तुरंत पिताजी ने कहा कि किसी को कही जाने कि जरूर नही। और स्नेहा तुम अभी घुम के ही तो आयी हो,और अभी फिर से तुम्हें जाना है?

"पिताजी वो तो मैं हनीमुन पे गयी थी लेकिन इस बार मुझे माँ के साथ जाना है",पिताजी को नयी बहु का इस तरह बोलना अच्छा नहीं लगता और वो इस बात पे नाराजगी जताते हुए अपने रूम में चले जाते हैं।

"लेकिन भाभी मेरा इक्जाम आने वाला है,और बहुत सारे प्रोजेक्ट बनाने है माँ चली जायेगी तो घर के काम के साथ मैं क्या क्या करूगीं।"

"छोटी तुम अब इतनी बडी हो गयी हो कि सारें काम केसाथ प्रोजेक्ट और पढ़ाई कर सकती हो।"

"लेकिन बेटा बड़की भी आने वाली हैं,और तू तो जानती ही हैं कि दीवाली आने वाली हैै और दिवाली पर दामाद जी अपने माँ के यहाँ जाते हैं और बड़की को सास के यहाँ जाना पसंद नहीं हैं।

इसलिए वह बच्चों के साथ यही पर दिवाली मनाने दस दिनों के लिये आ जाती हैं,"वह कैसे करेगी?"

तुरंत स्नेहा बोलती है यह कि -तो बहुत अच्छी बात है माँ बड़ी दीदी और छोटी मिलकर सब संभाल लेंगे," हम चलते हैं।"

माँ एक बार और पिताजी से परमिशन लेने जाती हैं,पर पिताजी नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि छोटी के इक्जाम है,बड़की आने वाली है,मुझे समय से दवाइयां कौन देगा?घर के सारे काम कैसे होगा एक बार भी तुमनें इन सब चीजों के बारें में सोचा?

"जरूरी क्या है तुम्हारा घुमना या परिवार की जिम्मेदारी?"

"इस उम्र में ये सब शोभा देता है? अपनी उम्र का तो ख्याल करों,लोग क्या कहेंगे सोचा हैं तुमनें"?

सरला जी सब कुछ खामोशी से सुनती है और सोचती है कि सबके साथ जब मेरा परिवार मेरे बारे में ही नहीं सोचते तो मै ही अकेले सबके लिये क्यों सोचूं।।

सरला जी अपनी खामोशी तोड़ते हुये कहती हैं कि " आपके दुनिया वाले पूछे तो कह देगा कि इस उम्र में आपकी पत्नी घर से भाग गयी ,कहतें हुए सरला जी स्नेहा को देख के हसं देती हैं ।"

सरला जी अब मन बना चुकी थी, उन्होंने स्नेहा की तरफ एक नजर देखा और कहा कि मुझे किसी ने एहसास दिला दिया हैं कि मैं भी एक इंसान हूं मेरी भी एक जिंदगी है जो पति और बच्चों से हट के है ।

और मैं आपसे परमिशन लेने नहीं बताने आई हूँ कि मैं जा रही हूं ।

सरला जी को केदारनाथ देखने की बहुत इच्छा थी नेहा यह जानती थी इसीलिए सरला जी को बिना बतायें केदारनाथ के टिकट करने की जिम्मेदारी राघव को दे देती है ।

जब सरला जी को पता चलता है कि वह केदारनाथ जाने वाली हैं तो खुशी का ठिकाना नहीं रहता और वो स्नेहा से कहतीं हैं कि जरा गूगल में केदारनाथ की फोटो तो दिखाना स्नेहा हंसती हुये कहती है कि सामने से देख लेना माँ "फोटो में अब नहीं "ये सुनकर सरला जी के आखों के कोर गीले हो जाते हैं ,जिसे वो अपनी मुस्कान से छिपाते हुए वो तैयारी करने चल देती हैं।

थोड़ी ही देर में सरला जी स्नेहा को फिर से आवाज देते हुए कहती हैं कि बेटा गर्म कपड़े रख लूं ?बेटा गर्म पानी की बोतल रख लूं? बेटा कुछ दवाइयां भी रख लेती हूं ,ट्रेन से जाना हैं या फ्लाइट से जाना है ?बेटा ये बेटा वो ऐसा कह कह के स्नेहा से पूरे दिन सवाल करती रहती हैं।

उनकी उत्सुकता पूरा परिवार देख रहा था और अबसबको अपनी गलती का एहसास होता है कि कैसें अपने मां के सपने को जानते हुए भी नजर अंदाज करके बैठे थे ।

हम सब तो किसी न किसी बजह से शहर से बाहर जाते रहतें थें,पर मां का कही बाहर जाना हुआ ही नहीं ।

माँ का मायका भी सी शहर में ही था, तो जरिया भी नहीं मिला जाने का।

फिर सब अपनी माँ से माफी मांगते हैं यहां तक कि पिताजी भी माफी मांगतें हैं सरला जी मुस्कुरा के सबको माफ कर देती हैं।

फिर वो दिन भी आ जाता है जिस दिन सुबह 10:00 बजे की फ्लाइट होती हैं स्नेहा सब तैयारी करती रहती हैं।तभी पिताजी के चीखने की आवाज आती है और सब दौड़कर उनके कमरे में जाते हैं| सरला जी सो चुकी थी फिर ना उठने के लिए अपने घूमने के सपने को अधूरा ही अपने साथ लेकर चली जाती हैं, हमेशा हमेशा के लिये।

"अगर आपका भी कोई सपना है या आपके अपनों का कोई अधूरा सपना है तो उन्हें भी जरूर पूरा करें, जिंदगी की भाग दौड़ में कितने सपने अधूरे रह जाते हैं कुछ अपने कुछ अपनों कें।

जिंदगी की जरूरत पूरी करने के साथ-साथ अपने शौक अपने सपनों को भी जरूर पूरा करें पता नहीं कब इस अधूरे सपने के साथ दुनिया को अलविदा कहना पड़े।।

 


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