बहु ने जब सास की चुटकी ली!!
बहु ने जब सास की चुटकी ली!!
रोमा सज-धज के एकदम अप्सरा लग रहीं थीं, उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि.... ये कल की कॉलेज जाने वाली पढ़ाकू लड़की हैं, आज रोमा का रोका जो होने वाला था, उसके होने वाले ससुराल के लोग बस पहुंचने ही वाले होंगे!!!!
साथ ही रिश्तेदार और पड़ोसी भी आ चुके थे, सबको नाश्ता-पानी सुधा कराये जा रहीं थीं, सुबह से ही घर में चहल-पहल लगी हुई थीं, मेहमानों का खूब आगमन हो रहा था।
दूसरी तरफ तरह-तरह के पकवान हलवाई बनाये जा रहें थे, पूरे घर में पकवानों और मिठाइयों की खुशबू भरी हुई थीं, अगर किसी को भूख लगी हो तों..... ये खुशबू आपके सिर में खुजली के साथ-साथ पेट में चूहों की लड़ाई लगवा दें।
किसी और की क्या बात करूँ..... अभी तो सुधा के सिर में खुजली और पेट में चूहे कूद रहे थे, कूदते भी क्यों नहीं आज उसका सोमवार का व्रत जो था.... मन तो खाने का बहुत था पर व्रत का अपमान कैसे करे।
खैर,
किसी तरह खाने से अपना ध्यान हटाकर रोके पे लगा दिया.... सारे रीति -रिवाजों के साथ अच्छे से रोका पूरा हो गया.....मेहमान भी सारे खा-पी के जा चुके थे, अब घर वाले भी खा रहे थे।
सुधा बेचारी सुबह से भूखी हुई थीं ऊपर से आज का पूरा दिन थकाने वाला था, जब उसकी हिम्मत जवाब दे गयी, तब सुधा से रहा नहीं गया और बेचारी सुधा जाकर अपनी सासूमाँ से व्रत तोड़ने की परमिशन मांगने लगती हैं क्योंकि ये सोमवार का व्रत उनके ही कहने से सुधा ने शुरू किया था।
सुधा सासूमाँ से कहती हैं कि.... माँ जी आज का व्रत मैं कैंसिल कर दूँ???
रोज रोज कहाँ ऐसे मौके मिलते हैं तरह तरह के व्यंजन खाने को!!!! वैसे भी पकवानों की खुशबू से मेरी भूख भी बहुत बढ़ गयी और अब तो शाम हो गयी है पूरा दिन तो निकल ही गया है।
सुधा की सासूमाँ (सुलोचना जी ) नाराजगी जताते हुये कहती हैं कि..... ये देखो आज की लड़कियों को थोड़ा भी सब्र नहीं हैं???
खाने के पीछे व्रत तोड़ने का ख्याल भी पाप होता हैं..... तुझे क्या अपने मायके में खाना नहीं मिलता था!!!!....
जो तू अभी तक संतुष्ट नहीं हो पाई हैं!!!!
अरे जो व्रत में हमेशा बना के खाती हैं वहीं सब बना के खा ले..... सुधा कहती है कि..... माँ जी कहाँ की बात कहाँ ले के चली जाती है आप????
बात बस खाने की थी.... पूरा किचन फ़ैला हुआ, सफाई भी करनी पड़ेगी और सुबह से थकी हुई हूँ..... बस अब खा के आराम करना चाहती हूँ.... सब तो देखिये खा के लेट भी गये हैं!!!!!
ये सब फालतू का बकवास मेरे साथ मत कर बहू ...जा.. जाकर फ़लहार बना खा ले.... इतना आलस अच्छी बात नहीं..... सुधा समझ गयी थी कि... इनसे बात करना बेकार हैं बिना वजह बात ना बढ़े इसलिये सुधा फ़लहार ही बना खा लेती है।
भूख शांत होने पे उसका दिमाग़ भी शांत हो जाता हैं, फिर थोड़े देर आराम करने के बाद सुधा सोचती हैं कि किचन समेट लेती हूँ सुबह थोड़ा आराम रहेगा।
किचन में आते ही सुधा देखती हैं बहुत सारा खाना बचा हुआ था, तो सोचती हैं कि... अभी दोपहर का ही तो सब बना हैं और मौसम भी अब अच्छा ही है क्यों ना सब समेट के अच्छे से फ्रीज़ में रख दूँ सुबह नाश्ता भी हो जायेगा साथ ही मुझे मौका भी मिल जायेगा ये सब पकवान चख़ने का।
ये ही सब सोच सुधा वैसा ही कर देती है और फिर खुशी खुशी जाके आराम से सो जाती है।
अगली सुबह सुधा बड़े ख़ुश मन से उठती हैं कि... चल के सारे पकवान का आनंद लेगी..... पर ये क्या!!!!
सुबह सुबह ही सासूमाँ अच्छे खासे सारे पकवान को गाय को डाल देती हैं..... सुधा के पूछने पे कहती हैं कि.... हमारे घर में किसी चीज की कमी थोड़े ना हैं.... जो बासी खाना खाया जाये.. ... तुम्हारा जो मन करे जाके बना के खा लो।
सुधा मन ही मन उन खाने को लेकर अफ़सोस करती रह जाती है पर कुछ कर नहीं पाती क्योंकि अब कुछ बोलने से फ़ायदा भी नहीं होने वाला था, पर इस तरह अन्न का अपमान करना उसे सही नहीं लगता.... पर सासूमाँ से कौन बहस करे।
इसलिये सुधा चुपचाप वापस किचन में चली जाती हैं नाश्ता बनाने के लिये।
फिर कुछ महीनों बाद एक दिन पूरी फैमिली चिड़िया घर घूमने निकलते हैं सुधा के पति नीरज, उसके सास-ससुर जी, देवर, ननद फिर घूमते-घूमते काफ़ी टाइम हो जाता हैं तो सब लंच आज बाहर ही करने का प्लान बना लेते हैं......।
एक रेस्टोरेंट में घुसते ही हर तरफ़ पकवानों की खुशबू नाक से होते हुये सीधे पेट के चूहों तक जा रही थी.....
"अक्सर ऐसा होता हैं कि रेस्टोरेंट में खाने का इंतजार करते करते और बाकियों के टेबल पे लगी रंग-बिरंगी खानों की शक्ल को देख..... कितना भी अंजान बनाने की कोशिश करो पर सिर में खुजली मच ही जाती है। "
और आज इत्तफाक से सुधा की सासूमाँ सुलोचना जी का गुरूवार का व्रत रहता है..... सब लोग एक ही टेबल पे बैठते हैं सभी अपने-अपने पसंद का खाना आर्डर करते है पर सुलोचना जी चुपचाप बैठी रहती हैं, तभी नीरज कहते हैं कि..... माँ आप ये लो सेव, और केला खा लो।
सब अपने अपने खाने का आनंद ले रहे थे... तभी सुधा का ध्यान सुलोचना जी पे जाता है तो देखती है कि.... कैसे सासूमाँ सेव चबाते हुये अपना सिर खुजाये जा रहीं थीं.... सासूमाँ की हालत देख उनकी मन की स्तिथी अच्छे से सुधा समझ रही थी..... आज मन ही मन मुस्कुराते हुये सुधा अपने मन में कहती है कि..... आज आया है......"ऊंट पहाड़ के नीचे"!!
तभी ससुर जी खाते वक़्त किसी एक सब्जी की बड़ी तारीफ़ किये जा रहे थे.... बार-बार कहते कि सुलोचना तुम खाती तो बता पाती कि..... कैसे बनी है ये सब्जी!!!
ताकि तुम भी बना पाती पर तुम तो इस सब्जी को चख भी नहीं सकती आज....... ओह्ह
बार-बार उनके कहने पे नीरज बोलते है कि....कोई बात नहीं पापा मैं इस सब्जी को पैक करा के घर ले चलता हूँ माँ कल खा के बता देंगी....... ये सुन सासूमाँ ख़ुश हो जाती हैं.... ये सब देख सुधा कुछ सोचने लगती फिर मुस्कुराने लगती है।
और,
अगली सुबह सुधा आज सासूमाँ से पहले ही उठ किचन में चली जाती हैं और फटाफट पूरा खाना रेडी कर देती हैं...... जैसे ही नाश्ते में सुलोचना जी कल वाली सब्जी ले के बैठती हैं.... सुधा आके तुरंत रेस्टोरेंट की सब्जी हटा के.......खाने से भरी थाली उनके सामने रख देती हैं और कहती है कि..... ये आप क्या कर रहीं हैं माँ जी!!!!.......
एक तो होटल की सब्जी... तेल, मसालों से भरी वो भी कल की बनी हुई बासी सब्जी आप खायेगी तो आपकी तबीयत ख़राब हो जायेगी, वैसे भी आपको गैस की परेशानी रहती है।
आपका कल व्रत था इसलिये मैंने देखिये आपके लिये लौकी की सादी सब्जी, दाल, रोटी, चावल बनाया हैं....एकदम ताज़ा, साफ-सुथरा आप ये खाये।
सुधा एक सुर में ही अपनी बात कड़े शब्दों में सबके सामने ऐसे रखती है कि.... कोई चाह के भी कुछ नहीं बोल पाता, यहाँ तक की सुलोचना जी का मन होते हुये भी वो होटल की सब्जी नहीं खा पाती और सुधा की लौकी की बनी सब्जी खानी पड़ती हैं।
सुधा को आज अपने सासूमाँ की चुटकी लेते हुये मन ही मन बहुत मज़ा आ रहा था.... साथ ही ये भी सोच रही थी अब आपको मेरी उस दिन की तड़प का कुछ तो अहसास हुआ ही होगा।
व्रत रखना अच्छी बात है सबसे ज्यादा फ़ायदा तो हमारी सेहत को ही होता हैl पर कभी-कभी घर में बाहर ऐसे मौके आ जाते जब ये व्रत बोझ लगने लगता हैं ऐसे में अपने मन को मार के या दबाव में व्रत रखने से क्या फ़ायदा!!!
अक्सर व्रत रखने वालों को मैंने देखा है कि.... पूरे दिन वो ग़ुस्से में चिड़चिड़ाये हुये रहते हैं और खाना एक ऐसी चीज़ हैं जो मिले तो मन और दिमाग़ दोनों शांत हो जाये और ना मिले तो उस दिन घर में ही महाभारत की लड़ाई शुरू हो जाती है।।
