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Anshhu Maurya

Drama Romance Inspirational

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Anshhu Maurya

Drama Romance Inspirational

आख़िर कसूर क्या था मेरा (भाग-2)

आख़िर कसूर क्या था मेरा (भाग-2)

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वक्त का पहिया तो वक्त के साथ चलता ही रहता है चाहे कोई दु:खी हो या सुखी।

आज पूरे दो साल बीत चुके हैं काजल और अजित को अलग हुए, आज शाम जैसे ही काजल ऑफिस सेे लौट कर आती है, तभी उसकी सहेलियों का फोन आता है कि कल छुट्टी का दिन हैं तो चल......हम सब मिलकर पिकनिक पर चलते हैं।

काजल अभी सोचती ही रहती हैं तब तक उसके पिता कहते हैं कि जा बेटा दोस्तों के साथ भी घुमा फिरा कर, हर वक्त काम काम अच्छा नहीं लगता।

और फिरकाजल अपने दोस्तों को चलने के लिए हामी भर देतीे हैं।

अगले दिन काजल दोस्तों के साथ पिकनिक मना कर जब आती है तो उसके चेहरे पर खुशी की लहर देखकर मां-पापा खुश हो जाते हैं और सोचने लगते हैं कि कल जब हम नहीं रहेंगे और दोस्तें भी कब तक साथ निभा पाएंगी।

फिर हमारी काजल पूरी जिंदगी अकेले कैसे बिताएगी ! यही सोचते हुए फैसला लेते हैं कि काजल को एक नई जिंदगी की शुरुआत करनी होगी।

यूं ही सोचते सोचते एक दिन माँ काजल से कहती है कि हम सिर्फ तुम्हारा भला चाहते हैं लाडो.... इक बार हमारी बात सुन लो, हम कब तक साथ निभा पाएंगे तुम्हारा !

इसलिए हम चाहते हैं कि तुम्हें भी एक अच्छे जीवन साथी का सहारा मिल जाए, आखिर कब तक पुरानी यादों के साथ ये जिंदगी काटेगी ! एक बार इस बारे में सोच कर जरूर देखना।

काजल पहले तो मना कर देतीे हैं फिर माँ के कहने पर बस यूं ही कह देती है ठीक है मैं सोचूंगी।

आज रात काजल की आंखों में नींद नहीं आयी,बस अजित के बारे में सोचती रही कि क्या ! अजित अपने जिंदगी में आगे बढ़ चुका होगा?

क्या वो अब तक शादी कर चुका होगा ! उसके अब बच्चे भी होंगे ! क्या वो मुझे भूल चुका होगा ! येही सोचते सोचते कब सुबह हो जाती है पता ही नहीं चलता।

ऐसी ही न जाने कितनी रातें काजल ने खुद से सवाल करते हुए बिताये थे।

अगले सुबह से वही जिंदगी जीने लगती हैं काजल, रोज सुबह आफिस जाती फिर शाम की चाय के साथ माँ-पापा के साथ गप्पे मारती।

फिर इकशाम काजल अपने माँ-बाप के साथ बैठकर के चाय और गप्पों का आनंद ले रहे थी तभी डोर बेल की आवाज आती है और तभी अरे ये क्या !!

ये तो अजित की माँ हैं दरवाजा खोलते ही .....

काजल की माँ सोचने लगती हैं।

और तीनों खड़े-खड़े उन्हें बस यूं ही देखते-देखते येही सोचते कि.... अब क्यों आयी हैं !!

अजित की माँ (सुमन) जी चुपचाप सबको देखते हुयें अंदर आती हैं जैसे उनकी नजरें कुछ तलाश कर रही हों.... काजल पर उनकी नजरें पहुँचते ही वो काजल की तरह बढ़ती हैं।

और अपना आंचल हाथों में फैलायें हुयें दुःखी मन से काजल के सामने जाकर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगती हैं और कहती है कि....... अजित को बचा लो काजल !

कहतें हुयें फूट-फूट कर रोने लगती हैं, मैं उसके बगैर जी नही पाऊंगी कहते हुयें रोये जा रही थी मानों जैसे दर्द का सैलाब आंसू बनकर बहें जा रहा था।।

"ये एक माँ की ममता थी या शायद उनके अन्दर का विष जो आंसू के रूप में निकलें जा रहा था।।"

सुमन जी के रुदन की आवाज से काजल की रुह कांप जाती हैं, घबराहट से उसका गला सूख गया जाता हैं।

कहीं कुछ गलत होने के अंदेशा से ही डर जाती है काजल।

अचानक से सुमन जी को ऐसा करता देख घबरा जाती है और कहती है कि आप ये क्या कर रही हैं ?

प्लीज उठ जाइये !

पर सुमन जी रोयें जा रही थी कहते हुये कि प्लीज बेटा मुझे माफ कर दो, तुम दोनों को जुदा करने का जो पाप मैंने किया हैं उसकी सजा मुझे इस तरह से मिलेगी मैनें कभी सोचा भी नही था। तुम दोनों को अलग करने का गुनाह मैंने ही तो किया हैं।

काजल कहती है प्लीज..... आप ऊपर बैठ जाइये और ये पानी पी लीजियें पहले, फिर साफ -साफ शब्दों में बतायें कि बात क्या हैं....

सुमन जी पानी पीने के बाद थोड़ा शांत हो जाती हैं और फिर काजल के हाथों को अपने हाथों में पकड़ते हुए कहते हैं कि बेटा मेरे अजित को बचा लो सिर्फ तुम ही उसेे अब बचा सकती हों।

वो तो जीने की उम्मीद ही छोड़ चुका है यह सब कुछ मेरे ही कारण तो हुआ है काजल चिंतित होकर कहती है कि अजित !! क्या हुआ हैं अजित को !!

सुमन जी कहती है कि अजित हॉस्पिटल में हैं और जीने की अपनी इच्छा खो चुका हैं।

अजित को आज इस स्थिति में पहुंचाने वाली मैं हूँ।

"सुमन जी कहती हैं कि तुम दोनों की शादी से मैं कभी खुश नहीं थी हमेशा चाहती थी कि ये शादी किसी तरह टूट जायें।"

"क्या करती मैं पुरानें सोच की हूं, अलग जाति में वो भी प्यार वाली शादी ! ये सब ना कभी मैंने देखा था, ना सुना था जो मैं ये सब पचा पाती।"

शुरू में तो मुझे लगा कि ये नये प्यार का बुखार हैं कुछ दिनों में उतर जायेगा है पर जैसें जैसें तुम दोनों का साथ में वक्त बितता जा रहा था उधर उतनी ही मैं निराश, हताश और बीमार पड़ने लगी थी।

जब तुम लोग अपनी पहली शादी की सालगिरह मना रहें थें उस वक्त मेरी हालात ज्यादा खराब हो गयी थी तभी सबने अजित को खबर कर दी तो वो दौड़ा दौड़ा मुझे देखने आ गया।

और जब उसे पता चला कि मेरी बीमारी की वजह वो ही हैं, तो बहुत दुःखी हुआ, मेरी हालात में जब थोड़ी बहुत सुधार हुई तो मैनें अजित को देखतें ही उसे अपने पास बुला कर अपनी इच्छा बताते हुये उस पर दबाव बनाया कि अगर वह तुम्हें नहीं छोड़ेंगा तो मैं खाना पीना छोड़ दूंगी।

और जोश में आकर मैंने उसे अपनी कसम दे दी तब अजित यूंही मेरा मन रखने के लिये ठीक है ....ठीक है कहके पहले आप खाना ठीक से खाओं पिओं।

अजित को लगा कि मैं बीमारी में सब कर रही हूं कुछ दिनों में भूल जाऊंगी ये ही सोचकर वो तुम्हारे यहां वापस तुम्हारे लौट गया।

फिर कुछ दिनों तक जब मुझे खबर ना मिली तो मैं अजित को लगातार फोन करती रही और तुमसे अलग होने के लिए उसे कहती रही

अजित कभी भी तुम्हें दुख, तकलीफ नहीं देना चाहता था इसलिए चुप-चाप रहता ,पर कभी भी तुम्हें सच बता कर दुखी नहीं करना चाहता था।

तुम्हारे चेहरे की मुस्कान नहीं खोना चाहता था,

फिर जब उसे कोई रास्ता नहीं सूझा तो मेरी जान बचाने के लिए उसने सब कुछ छोड़ के बाहर विदेश जाने का फैसला कर लिया।

ताकि वह आसानी से तुमसे दूर हो पायेगा, अपने दिल पे पत्थर रख के अजित तुमसे अपनी माँ की खुशी के लियें हमेशा के लियें दूर हो गया।

लेकिन पल-पल अजित तुम्हारे लिए तड़पता रहा, तुम्हारी फिक्र में हर वक्त बैचेन रहता, और वो तुमसे इतनी दूर रह ही नही पाया, वो तो कुछ महीनों बाद ही विदेश से लौट आया था।

न जाने कितनी बार वह तुमसे छुप-छुप के मिलने जाता पर मेरी दी हुई कसम की वजह से मिल नही पाता।

तुम्हें दूर से ही देख कर चला आता उसने सोच लिया था कि जिस घर में तुम रहती हो वो घर तुम्हारे नाम कर देगा ताकि तुम उसमें आराम से रह सको पर तुम उससे पहले ही अपने माँ-पापा के पास आ गयी।

अजित को भूला कर तुम अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी थी जिससे अजित को थोड़ा सुकून मिला कि उससे नफरत ही सही कम से कम तुम अपनी जिंदगी तो जीने लगी हो।

अजित कभी भी एक पल के लिये तुम्हें भूल नहीं पाया है,

बस वो माँ और पत्नी के बीच किसी एक को चुनने की चिन्ता में जीने की चाह ही खत्म कर बैठा हैं और धीरे-धीरे न जाने कब इन बीमारियों ने उसे घेर लिया।

आज अजित जिंदगी से खफा होकर अस्पताल के बेड पर पड़ा हुआ है लेकिन उसकी हालत मुझसे देखी नहीं जा रही हैं यह सब मेरी वजह से हुआ है, मेरे कारण ही अजित के अंदर की जीने की इच्छा खत्म हो गई।

काजल...... मेरे बेटे में फिर से जीने की चाह भर दो, उसे वापस ले आओ हमारी दुनिया में,उसे पहले जैसा ही हंसता खेलता अजित बना दों बेटा, तुम्हारा बहुत उपकार होगा इस अभागी माँ पे .....

मैं तुम्हारे सामने अपना आंचल फैला कर अजित के जिंदगी की भीख मांगती हूं और अपने गुनाहों की मांफी मांगती भी, हो सके तो मुझ अभागन को मांफ कर देना जो अपने ही बेटे की खुशियों को बर्बाद कर दी।

अजित बस तुम्हारा है वो सदा से तुम्हारा ही था।

अजित का इसमें कोई कसूर नहीं है सिर्फ वह बेटे होने का फर्ज निभाता रहा लेकिन दिल ही दिल में तुम्हारे लिए तड़पता रहा।

काजल आज फिर उसी मनोःस्थिति में थी जब उसके हाथों में तलाक के पेपर था, आज फिर काजल कुछ कहने की स्थिति में नही थी उसके धुधँली सी आंखों के सामने बस अजित का चेहरा दिख रहा था।

अजित की तकलीफ के सामने आज काजल को अपना दुःख कम लग रहा था।

काजल तो फिर भी अपने माँ-पापा, सहेलियों के साथ जी रही थीं पर अजित तो कब से अकेला था,उसके तड़पें दिल पे हाथ रखने वाला भी कोई नही था सोच के ही काजल सिहर उठती हैं।

काजल को अफसोस होता हैं कि वो तो एक नयी जिंदगी की शुरूआत का सोच रही थी छि: ....कितनी बुरी हूं मैं।।

और फिर सुमन जी से काजल कहती हैं कि क्या मैं अजित से मिल सकती हूं अभी?

सुमन जी कहती हाँ बिल्कुल बेटा .....चलो, मैं तुम्हें लेने ही तो आयी हूं फिर काजल अपने माँ-पापा के साथ अस्पताल के लियें निकल जाती हैं।

आज इतनें सालों बाद क्या कंहूगी या पूछूगीं इसी उलझन में काजल अस्पताल पंहुच जाती हैं

काजल आज अजित को पहचान भी नहीं पाती, बिल्कुल बदल चुका था अजित, दुबला सा मुरझाया हुआ कमजोर सा...... काजल को एक मिनट के लिए ऐसा लगता है कि ये अजित नहीं हैं जिसे वो जानती थी।

तभी अजित नीदं से उठ जाता हैं और काजल को सामने खड़ा पाके हाथ जोड़ रो पड़ता हैं काजल तुरंत अजित का हाथ पकड़ लेती हैं और समझ भी जाती हैं कि येही मेरा अजित है .....आज बिन कहें, बिन बोले अजित और काजल एक-दूजें की आसूंओं की भाषा पढ़े जा रहें थें।

आज उन दोनों के दिल का दर्द, इतने सालों की तड़प इन आसूओं की धारा में बहती हुयें बाहर निकलतें जा रही थी।

काजल कहती हैं कि कसूर ना तेरा था, ना मेरा था, ये तो हमारी किस्मत का लिखा बनवास था जो हमने काट ली।

काजल अपने प्यार और समर्पण से अजित को पुनः पा लेती हैं अजित के सेहत में धीरे-धीरे सुधार आने लगता है फिर कुछ महीनों बाद अजित को अस्पताल से छुट्टी मिल जाती हैं।

अजित और काजल का प्यार इस परीक्षा से तप के और भी निखर चुका था, दोनों के चेहरें पे एक सतोंष का भाव उत्पन्न हो चुका था, अब वो एक साथ नयी जिदंगी की शुरुआत करने निकल पड़ते हैं।

शायद हमनें कभी ध्यान से देखा नहीं कि अक्सर कई घरों में पत्नी और माँ के बीच सबसे ज्यादा एक बेटा एक पति पीसता हैं, पर वो किसी से कुछ कह नहीं पाता।

अन्दर ही अन्दर घूंटता रहता है, आखिर पुरुषों को भी तकलीफ होती हैं पर हम इससे अन्जान कभी पत्नी के रूप तो कभी माँ के रूप में अपनी मन की भड़ास इनपे ही निकाल देती हैं,और हमेशा ये आरोप लगाते है कि तुम्हें हमारी फ्रिक कहा हैं ? तुम्हें तो बस उसकी पड़ी रहती हैं।


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