आकांक्षा
आकांक्षा
आज नौकरी के दूसरे ही दिन रीता विद्यालय में अकेली शिक्षिका थी। दस बीस बच्चेे थे जो अलग-अलग कक्षा के थे। रीता सबको एक साथ बिठाकर पढ़ा रही थी कि तभी दो जटाधारी बालक सामने आकर खड़े हो गये।
बड़ेवाले ने छोटे की तरफ इशारा किया " मैईडम ऐकरा नाम भी लिख लिजिए ई भी पढ़ेगा। "
उसने देखा अधनंगा बच्चा फटी एड़ियां, खुरदुरे गाल और जटाजूट हुए बाल जाने कितने दिनों से नहीं नहाया होगा।
नाक सिकोड़ते हुए बोली "ठीक है कल से कापी पेंसिल लेकर आ जाना। "
बड़े ने प्रतिवाद किया "उसमें बहुत खर्चा है ऐसे ही आप जो बोर्ड पर लिखेंगी वही पढ़ लेगा। ज्यादा नहीं पढ़ना है हिसाब बाड़ी लायक पढ़ जाए बस । "
पहली नजर में रीता भांप गई की गरीबी की मार कितनी गहरी है लेकिन खुद की हालत भी कोई अच्छी न थी, तो संभलते हुए कहा " किताबें विद्यालय से मिल जाएगी और दोपहर का खाना भी, तुम्हें बस कापी पेंसिल का इंतजाम करना होगा । "
लड़के ने सोचने की मुद्रा बनाई और फिर वहीं हाथ में पकड़ा थैला उलट दिया। कुछ खैनी बीड़ी और गुटखा के पाउच थे थैले में।
लंगड़ाते हुए भागकर बाहर गया और थैले में रेत भर लाया ।
सबसे पीछे थैले का रेत फैलाया और छोटे के हाथ में एक लकड़ी थमाते हुए बोला " खाने के पैसे बचेंगे तो एक दो दिन में कापी पेंसिल भी ला दूंगा। "
छोटे ने समझ जाने की मुद्रा में सिर हिलाया और रीता की तरफ मुँह करके पालथी मारकर बैठ गया।
बाहर मोटरसाइकिल रूकी और कोई अंदर आया और एक कागज थमाते हुए बोला "मैडम संघ कल से हड़ताल कर रहा है आप भी विद्यालय बंद रखिएगा। "
दोनों भाई एकटक रीता को देखने लगे। रीता ने देखकर नजरें चुरा ली ।
बड़े लड़के के कब तक बंद रहेगा पूछने पर उसने हाथ हिला दिये पता नहीं।
मुँह लटक गया उसका वो चुपचाप लौट गया। उसे भी उसका उतरा हुआ मुँह देखना अच्छा नहीं लगा। लेकिन जब पीछे पीछे छोटा भी उठ गया तो उसकी आत्मा चीत्कार उठी " नहीं नहीं सिर्फ खाना नहीं मिलेगा लेकिन पढ़ाई रोज होगी जिसको पढ़ना हो सब आ जाना । "
दोनों भाईयों ने एक दूसरे को मुस्कुराकर देखा बड़े ने सर को खास अंदाज में झटका और छोटा कूदकर फैले रेत की पट्टी के पास पहुंच कर जम गया।