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आजाद परिंदा - मिस्ड कॉल

आजाद परिंदा - मिस्ड कॉल

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नरेश एक सरकारी संस्थान में उच्च पद पर कार्यरत है और उसे इस पद पर काम करते हुए तकरीबन 9 वर्ष हो चुके है। उसका अभी तक का कार्य बेहतरीन रहा है लिहाज़ा प्रमोशन एवं कुछ अन्य अवार्ड्स भी उसे मिल चुके है। नरेश एक सामान्य परिवार से सम्बंधित है और उसका बचपन पढ़ाई एवं अन्य गतिविधियों में ही गुजरा। अभी तक का उसका जीवन सर्वश्रेष्ठ ही कहा जा सकता है पहले पढ़ाई में सर्वश्रेष्ठ एवं अब नौकरी में भी सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन। कुल मिला कर जीवन बेहतरीन है। यह वह रूप है जो अन्य सभी नरेश में देखते है परन्तु नरेश उसके लिए अभी सीखने का समय ही चल रहा है उसने अभी तक खुद को स्टूडेंट लाइफ से बहार नहीं निकला है वह हर रोज कुछ नया करने एवं सीखने में वक़्त निकल ही लेता है। 

जीवन का एक अन्य पक्ष भी है जिससे अभी तक नरेश का कोई विशेष अनुभव नहीं है। माता पिता चाहते है की नरेश का विवाह कर दिया जाये। नरेश को भी कोई विशेष आपत्ति नहीं है परन्तु उसे कोई विशेष उतावलापन भी नहीं है। नरेश के पिता ने कई जगहों पर उपयुक्त लड़की के लिए प्रयास किया और नरेश कुछ जगह जाने का वक़्त ही नहीं निकल पाया और कुछ जगह उसकी जाने की इच्छा ही नहीं हुई लिहाज़ा माता पिता ने अपने रुख में कुछ सख्ती लाते हुए एक बार फिर से तलाश आरम्भ की और आखिर उनकी नज़र सीमा पर टिक गयी। 

नरेश की कोई विशेष पसंद अथवा नापसंद नहीं थी उसे कोई भी सामान्य लड़की पसंद आ जाती और कुछ माता पिता की सख्ती लिहाज़ा नरेश की मंगनी तय कर दी गयी और नरेश कल देर रात ही अपने कार्यस्थल पर वापिस पहुंचा है। देर रात अपने फ्लैट में पहुँच कर सो गया और आज सुबह उसे ऑफिस भी जाना है। 

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग 

सुबह सुबह बजती मोबाइल की घंटी ने नरेश की नींद में खलल डाल दिया। एक तो देर रात सोने के कारण और दूसरा लम्बी रेल यात्रा थकान अभी तक नरेश की आँखों में समाई हुई थी लिहाज़ा उसने मोबाइल की बजती घंटी की तरफ ध्यान नहीं दिया। परन्तु कब तक !

लगातार बजती घंटी ने आखिर नरेश को उठने पर मजबूर कर दिया। डिस्प्ले पर सीमा का नाम दिखाई दे रहा था। कल शाम को सीमा से बात हुई थी और उसे पता था की नरेश रात दो बजे के आस पास अपने फ्लैट में पहुंचेगा ऐसे में सुबह पांच बजे ही मोबाइल की घंटी नरेश को कहीं न कहीं झुंझलाहट से भर गयी परन्तु उसने फिर भी कॉल अटेंड किया। मुमकिन है कुछ अर्जेंट मसला ही परन्तु कुछ विशेष नहीं बस गुड मॉर्निंग के लिए कॉल था। ऑफिस जाने में बहुत वक़्त था इसीलिए कॉल बंद करने के बाद नरेश एक बार फिर सो गया। 

तकरीबन छः बजे एक बार फिर से सीमा के फ़ोन ने नरेश को नींद से उठा दिया इस बार चाय के बारे में पूछने के लिए कॉल किया गया था। आँखें अभी भी नींद से बोझिल थी परन्तु नरेश इस बार सोने के मूड में नहीं था इसीलिए फ्रेश होने के बाद दूध लेने के लिए घर से बाहर चला गया। थोड़ा घूमने के बाद दूध लिया और तकरीबन 7 बजे जब फ्लैट में पहुंचा तो पता चला की मोबाइल पर सीमा की तकरीबन 5 मिस कॉल आ चुकी थी। एक बार नरेश को लगा की सीमा का व्यवहार बचकाना है परन्तु उसने इस बारे में सोचने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाया और नहाने के लिए बाथरूम में चला गया और जब नहा कर वापिस आया तो एक बार फिर फ़ोन की घंटी बज रही थी। कपडे पहनने के बाद चाय बनाते हुए सीमा से बातचीत भी चलती रही और इस तरह लगभग 30 या 40 मिनट बीत चुके थे अब उसे ऑफिस जाने की तैयारी भी करनी थी इसीलिए फ़ोन काटना पड़ा। 

ऑफिस जाने की तैयारी करते करते तकरीबन 8.45 बज गए और ठीक 9.00 पर बस आ जाती थी इसलिए उसे जल्दी थी परन्तु पिछले 15 मिनट से लगातार आ रही कॉल को अटेंड करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं था। एक बार फिर से सीमा को बताना पड़ा की उसकी बस आने का टाइम है। 

ठीक समय पर बस आयी और नरेश बस में बैठ गया अभी ऑफिस पहुँचने में लगभग 30 मिनट लगने थे इसीलिए नरेश अपने सहयोगी से बातचीत कर रहा था। यह 30 मिनट बहुत महत्वपूर्ण थे क्योंकि यही वह समय था जब नरेश के चारों सहयोगी उसके सामने होते थे और वह उनके साथ आज निबटाये जाने योग्य कार्य तय किया करता था। नरेश ने बजती हुई घंटी को इग्नोर करने का प्रयास किया परन्तु आखिर फ़ोन उठाना पड़ा और आज के महत्वपूर्ण 30 मिनट सीमा की भेंट चढ़ गए। 

ऑफिस में भी हालत कुछ विशेष नहीं सुधरे सारा दिन नरेश का फ़ोन बजता रहा कभी नाश्ते के लिए कभी लंच के लिए और कभी चाय के विषय में जानने के लिए। आखिर नरेश का दिमागी पारा अपने शिखर पर पहुँच गया और तकरीबन 3 बजे उसने अपना मोबाइल अपने टेबल के दराज़ में बंद कर दिया और अपने काम पर ध्यान लगाने का प्रयास करने लगा। तकरीबन चार बजे उसके बॉस उसको तलाश करते हुए उसके केबिन तक पहुँच गए जोकि एक असामान्य घटना थी। ज्यादातर बॉस उसे फ़ोन करके अपने पास बुलवाते थे या फिर फ़ोन पर ही विचार विमर्श कर लिया करते थे। आज उनको आना पड़ा क्योंकि ऑफिस के लैंडलाइन पर नरेश का सहयोगी किसी विषय में बातचीत कर रहा था और नरेश का मोबाइल दराज़ में बंद था और लगातार बजती घंटी को नरेश इग्नोर करता जा रहा था। दराज़ में से आती लगातार बजती घंटी की धीमी आवाज़ बॉस के साथ विचार विमर्श में व्यवधान पैदा कर रही थी इसीलिए बॉस को आखिर कहना पड़ा की नरेश फ़ोन उठा ले। कुछ विशेष तो था नहीं इसीलिए नरेश ने इतना कह कर फ़ोन रख दिया की अभी व्यस्त हूँ। 

अभी 25 मिनट ही गुजरे थे की एक बार फिर फ़ोन की घंटी बजने लगी। बॉस बगल में ही बैठे थे इसीलिए नरेश ने कॉल अटेंड करके सिर्फ इतना कह दिया की जब फ्री होऊँगा तब कॉल करूंगा। 

आखिरी घंटे में कुछ काम करने के बाद अभी नरेश अपना लैपटॉप एवं अन्य सामान पैक कर ही रहा था की एक बार फिर घंटी बजने लगी। नरेश के ऑफिस बंद होने का टाइम सीमा को ज्ञात था इसीलिए एक बार फिर से घंटी बज रही थी। वापसी की बस पकड़ने से पहले नरेश कैंटीन में एक कप चाय लेना पसंद करता था परन्तु आज चाय का कप सीमा की भेंट चढ़ गया था। और वापसी की यात्रा के 30 मिनट नरेश दोस्तों के साथ गप शप करता था वह भी आज सीमा की भेंट चढ़ गया। 

डिनर का इंतज़ाम करने के अलावा नरेश का शाम का पूरा का पूरा कार्यक्रम सीमा की भेंट चढ़ गया यहाँ तक की नरेश शाम को न्यूज़ भी नहीं सुन पाया। ठीक नौ बजे नरेश सोने के लिए बेड पर चला जाता था। और सोने से पहले दिन भर का लेखा जोखा रखना नरेश की आदत थी। आज का लेखा जोखा 25 बार सीमा से बात करना और 200 से अधिक मिस्ड कॉल थे। 

अभी नरेश को सोये हुए शायद एक घंटा ही बीता था की घंटी की आवाज़ सुनकर आँख खुल गयी। स्क्रीन पर सीमा का नाम देखकर नरेश का दिमागी पारा अपनी सभी सीमायें पार कर गया और उसने फ़ोन काट दिया। लेकिन आखिर कब तक आखिर उसे फ़ोन उठाना पड़ा और सीमा से एक बार फिर बात करनी पड़ी। 

अगले दिन सुबह से लेकर शाम तक लगभग वही कार्यक्रम रहा जो पहले दिन रहा था। उस दिन का लेखा जोखा एक बार फिर से 25 से अधिक बार कॉल अटेंड की और 200 से अधिक मिस्ड कॉल। और आने वाले कई दिन ठीक यही चलता रहा नरेश ने कई बार सीमा को घुमा फिरा कर कहने का प्रयास भी किया परन्तु सीमा समझने के लिए तैयार नहीं थी।

नरेश पिछले एक महीने में सभी प्रयास करके देख चुका था उसने सीमा का मोबाइल ऑफिस के दौरान ब्लॉक भी किया परन्तु सीमा ने अपने दोस्तों के मोबाइल नंबर से कॉल करना आरम्भ कर दिया। नरेश ने अपना मोबाइल ऑफ करने का प्रयास भी किया परन्तु इससे नरेश का अपना कार्य प्रभावित हो रहा था। और पिछले एक महीने में नरेश ऑफिस में कोई काम नहीं कर पा रहा था। 

अंततः नरेश को आखिर फैसला करना ही पड़ा और उसने मंगनी तोड़ देने का फैसला कर लिया 

पिता : नरेश अपने फैसले पर एक बार फिर से विचार कर लो

नरेश : नहीं डैडी में फैसला कर चुका हूँ

पिता : आज तुम्हारी एंगेजमेंट हुए सिर्फ एक महीना हुआ है इतनी जल्दी तोड़ने के निश्चय पर पहुंच जाना सही है क्या

नरेश : जितनी जल्दी हो जाये उतना ही उलझने कम होंगी

पिता : तुम एक बार सीमा से बात करके देख लेते वो समझदार लड़की है समझ जाएगी

नरेश : हाँ ऐसा हो सकता है 

पिता : तो मैं सीमा को कॉल करता हूँ बात कर लो

नरेश : नहीं

पिता : यदि तुम मानते हो कि वो समझ जाएगी तो क्यों नहीं बात कर लेते

नरेश : क्योंकि सीमा अपनी समझ का परिचय दे चुकी है सीमा की आयु 30 वर्ष है और यदि सामान्य सी बात भी उसे समझाने के बाद समझ में आएगी तो उसके साथ जीवन सिर्फ व्यर्थ की मारा मारी के अतिरिक्त कुछ नहीं हो सकता इसलिए इस मसले को यहीं खत्म कीजिए


NOTE : सम्पूर्ण घटना क्रम सत्य घटना पर आधारित है इसमें आखिरी पार्ट जहां नरेश मांगनी तोड़ने का फैसला करता है वह काल्पनिक है वास्तव में नरेश ने तुरंत शादी करने का फैसला कर लिया जिससे की लगातार बजती घंटी से छुटकारा पाया जा सके परन्तु इससे नरेश की समस्याओं का अंत नहीं हुआ। नरेश सीमा की हरकतों से परेशान रहने लगा। सीमा में भीड़ भाड़ वाले पार्क में किसी पेड़ के पीछे छिप कर फ़िल्मी हरकतें करना पसंद था और नरेश सीमा की इन हरकतों को आपत्तिजनक मानता था घर पर भी सीमा बिना कपड़ों के घूमते रहती थी उसका कहना था की घर पर उसके और नरेश के अलावा कोई नहीं है जबकि नरेश सीमा से सहमत नहीं था। और आखिर एक दिन जब नरेश ऑफिस से वापिस लौटा तब उसके साथ उसके दो या शायद तीन मित्र भी थे और सीमा ने पूर्ण रूप से नग्न होकर नरेश के स्वागत के लिए दरवाजा खोला तब नरेश अपना संतुलन कायम नहीं रख सका और उस रात नरेश और सीमा के जम कर झगड़ा हुआ। और उसी झगड़े में सीमा घर से बाहर निकल गयी और जब पुलिस के साथ वापिस आयी तब उसे नरेश की छत से लटकती लाश ही मिली। 


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