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Shweta Paneri Shukla

Romance Tragedy

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Shweta Paneri Shukla

Romance Tragedy

आई लव यू

आई लव यू

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वैवाहिक जीवन के पैतालीस साल पूरे कर चुके शिवनारायण जी और उषा जी को एक आदर्श दम्पति के रूप में सब जानते थे। दोनों का स्वभाव एक दूसरे से विपरीत होने के बावजूद दोनों के बीच गजब का तालमेल दिखाई देता था। एक ओर जहाँ उषा जी बेहद धीर गंभीर टाइप की महिला थीं वही शिवनारायण जी उनके बिल्कुल विपरीत खुशमिजाज और जिंदादिल इंसान से फिर भी दोनों के बीच तालमेल इतना अच्छा था की दोनों एकदूसरे की दिल की बात बिना कहे जान जाते थे। दोनों की शादी से लेकर वैवाहिक जीवन के पैतालीस साल तक की कहानी सब जानते थे। उषा जी शिवनारायण जी की भाभीजी की सगी छोटी बहन थीं। वो अक्सर अपनी बहन के ससुराल आया जाया करती, वहीं शिवनारायण जी से उनकी मुलाक़ात होती रहती।

शिवनारायण जी को उषा जी पहली नज़र में ही भा गयीं थीं परन्तु उषा जी के मन में ऐसा कोई विचार नहीं था वो तो अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं। शिवनारायण जी ने अपने दिल की बात अपनी भाभी और माँ को बताई दोनों बेहद खुश हुई और इस प्रकार शिवनारायण जी और उषा जी के रिश्ते की बात हुई। उषा जी के घरवालों ने इस रिश्ते के लिए मंजूरी दे दी लेकिन उषा जी ने इसका पुरजोर विरोध किया क्यूँकि वो अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थीं। शिवनारायण जी का परिवार एक रूढ़िवादी परिवार था ये बात उषा जी भलीभांति जानती थीं। जब ये बात शिवनारायण जी को पता चली तो वो उषा जी से मिले और उनसे वादा किया की वो उषा जी की पढ़ाई नहीं रुकने देंगे।

उषा जी ने विवाह के लिए सहमति दे दी और दोनों का विवाह हो गया। विवाह के बाद जब बात उषा जी की पढ़ाई की आयी तो घर के बुजुर्गों ने इसका विरोध किया लेकिन शिवनारायण जी की जिद्द की आगे सबको झुकना पड़ा और उषा जी ने ससुराल में रह कर ही अपनी पी एच डी की पढ़ाई पूरी की और कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्य करने लगी वही शिवनारायण जी पहले से ही सरकारी विभाग में अफसर थे। उषा जी की पढ़ाई के बीच ही दोनों बच्चों का जन्म हुआ लेकिन शिवनारायण जी के सहयोग से उषा जी ने उन परिस्थितियों में भी पढ़ाई जारी रखी। दोनों बच्चों शिवालिक और अम्बिका का जन्म हुआ। शिवनारायण जी का उषा जी को पूरा सहयोग प्राप्त था इसलिए दोनों की गृहस्थी मजे से चल रही थीं।

शिवनारायण जी जहाँ सार्वजनिक रूप से आये दिन उषा जी के सामने अपने प्यार का इज़हार करते रहते आई लव यू उषा ये बात वो दिन में कम से कम दो चार बार तो कह ही देते वही उसके बदले में उषा जी बस मुस्कुरा कर रह जाती। कई बार शिवनारायण जी ने उनसे इस बारे में कहा भी की तुम भी तो कुछ बोलो लेकिन उषा जी का हमेशा एक ही जवाब होता मेरा प्यार असीमित है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता शिव। इसके आगे शिवनारायण जी निरुत्तर हो जाते। वक़्त गुज़र रहा था दोनों बच्चे बड़े होकर अपनी मर्जी से शादी कर विदेश में बस चुके थे। दोनों दम्पति रिटायर्ड होने के बाद एक दूसरे के साथ के सहारे जीवन व्यतीत कर रहे थे। उषा जी को बच्चों और पौधों से बहुत लगाव था रिटायर होने के बाद वो अपना अधिकतर समय बच्चों और पौधों के साथ बिताती। अनाथालय के बच्चों के साथ समय बिताने और उन्हें खाना खिलाने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता।

उधर शिवनारायण जी को भी खाना बनाने का बड़ा शौक था, उनके हाथ की बनी दाल मखनी उषा जी को बेहद पसंद थी।उषा जी ने अपने घर में अलग अलग फूलों के कई सारे पौधे लगाए हुए थे जो साल भर फूलों से लदे रहते थे। लाल गुलाब के उस पौधे की तो वो विशेष देखभाल करती जिसे शिवनारायण जी ने उन्हें शादी की सालगिरह पर तोहफ़े में दिया था। वो बड़े जतन से गुलाब के उस पौधे की देखभाल करती और उस पर फूलों के आने का इंतज़ार कर रही थीं लेकिन ना जाने क्यों लाख जतन के बाद भी उस पौधे पर फूल आने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

दोनों बच्चों ने भी कई बार उन्हें विदेश बुलाया लेकिन उषा जी अपने पौधों को छोड़ कर जाने को तैयार नहीं थी। पहले तो बच्चे भी ज़िद्द करते थे लेकिन अब वो समझ गए थे कि उनकी माँ और बाबा को अपनी दुनिया से बेहद लगाव है इसलिये अब दोनों परिवार सहित साल में एक बार मिलने आ जाते। उस दिन रात को भी उषा जी और शिवनारायण जी बच्चों और पौधों की बात ही कर रहे थे। उन्हें अपने गुलाब के पौधे की बड़ी चिंता थी वो एक बार उस पर फूलों को आते हुए देखना चाहती थी। हर सुबह की तरह उस दिन भी शिवनारायण जी सुबह पांच बजे उठ कर वॉक पर निकल गए। वॉक करके वापस आये और चाय बनाकर दोनों कप हाथ में लिए उषा जी को जगाने लगे उनका हर रोज़ का रूटीन था ये जब से रिटायर हुए थे सुबह की पहली चाय वो खुद ही बनाते और उषा जी को उठाते लेकिन ना जाने क्यूँ उनकी एक आवाज़ पर उठ कर बैठ जाने वाली उषा जी आज बार बार आवाज़ लगाने पर भी नहीं उठी, शिवनारायण जी परेशान हो उठे पास जाकर उषा जी को झकझोरा लेकिन कोई हरकत नहीं थी।

उनके शरीर में किसी अनिषट की आशंका से उनका दिल जोर से धड़कने लगा। तभी कामवाली बाई मीरा भी आ गयी उसने पड़ोसियों को बुलाया सब मिल कर उषा जी को हॉस्पिटल ले गए लेकिन देर हो चुकी थी। उषा जी एक नवीन लोक की यात्रा पर निकल चुकी थी, अकेले रह गए थे तो वो थे शिवनारायण जी। तेरहवीं करके बच्चे भी वापस चले गए उन्होंने शिवनारायण जी को साथ चलने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की लेकिन वो नहीं माने।

बच्चों के जाने के बाद शिवनारायण जी बेहद उदास हो गए। उषा जी के अचानक जाने का उन्हें गहरा सदमा लगा था। वो अंदर से पूरी तरह टूट चुके थे। धीरे धीरे उन्होंने घर से निकलना बिल्कुल बंद कर दिया था। लोगों से मिलते जुलते भी नहीं थे। कामवाली बाई मीरा आकर उनका काम करके चली जाती। स्वाभाव से भी चिड़चिड़े हो गए थे बात बात पर तुनक जाते, कामवाली बाई और पड़ोसी सब उनके व्यवहार से उकता चुके थे लेकिन उनकी स्थिति जानने के कारण चुप रह जाते। आज भी शिवनारायण जी बेहद उदास थे, हर दिन से बहुत ज्यादा आज आठ जुलाई थी उषा जी का जन्मदिन।

एकटक उषा जी की तस्वीर को देखकर आंसू बहाये जा रहे थे, इसी बीच किसी काम के लिए खड़े हुए खिड़की का कांच तोड़ती हुई एक बॉल उनके सामने आ गिरी। ना जाने क्यूँ शिवनारायण जी आग बबूला हो कर बालकनी की तरफ दौड़ पड़े। इन बच्चों की तो आज खैर नहीं चैन से जीने भी नहीं देते कहकर शिवनारायण जी जैसे ही बाहर आये बच्चे नीचे कंपाउंड में ही खड़े थे। वो बच्चों पर चिल्लाने वाले ही थे की उनका पाँव किसी चीज से टकराया नीचे देखा तो गुलाब का वो पौधा नज़र आया जिसे उषा जी बड़े प्यार से सींचा करती थी, कई दिनों से पानी ना मिलने से मुरझा गया था, उन्होंने दूसरे पौधों पर भी नज़र डाली सारे पौधे मुरझा गए थे।

अंकल बॉल दे दीजियेगा ना प्लीज, उन्हें नीचे खड़े अक्षय की आवाज़ सुनाई दी, उन्हें याद आया उषा जी का अक्षय पर विशेष स्नेह था। अक्षय उनके सामने वाले फ्लैट में ही तो रहता है, अक्सर उषा जी के पास आता था कहानियाँ सुनने। कुछ सोच कर शिवनारायण जी ने बॉल नीचे फेंक दी और पानी लाकर पौधों को सींचने लगे, गुलाब के उस पौधे को वो बड़े प्यार से सींच रहे थे तभी उसने पत्तियों के बीच एक नन्ही सी कली दिखाई दी। वो ख़ुशी के मारे चिल्ला उठे- उषा ! उषा देखो पौधे पर कली खिली है अब फूल भी आएंगे।

तभी उन्हें याद आया उषा जी तो है ही नहीं ये सब देखने को। उन्होंने मन ही मन कुछ सोचा और चल पड़े बाजार की ओर ढेर सी सब्जियाँ लाये और मीरा को बुलाकर खाना बनाने में जुट गए मीरा को बहुत दिनों बाद पुराने शिवनारायण जी नज़र आ रहे थे पूरे जोश के साथ उन्होंने खाना तैयारी किया। सबकुछ उषा जी की पसंद का बनाया था। नीचे जाकर सब बच्चों को घर ले आये और उनके साथ मिलकर खाने का आनंद लिया। फिर बचा हुआ सारा खाना लेकर अनाथआश्रम गए और वहां बच्चों को अपने हाथों से भोजन परोसा। वापस आकर उषा जी का पसंदीदा संगीत चलाकर आंखे मूंदकर जैसे ही लेटे सामने एक धुंधली सी आकृति नज़र आयी गौर से देखा तो उषा जी थी वो चीख पड़े उषा ! तुम मुझे छोड़कर कहाँ चली गयीं थी। हैप्पी बर्थडे उषा देखो आज तुम्हारे गुलाब के पौधे पर एक कली खिली है जल्दी ही उस पर फूल भी खिलेगा। तुम खुश हो ना उषा। शिवनारायण जी बोले जा रहे थे। 

तुम तो हमेशा मुझे खुश ही रखते हो शिव। आज मुझे तुमसे कुछ कहना है - मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ शिव, आई लव यू - उषा जी बोली।

तभी शिवनारायण जी की आंखें खुल गयीं, आस पास देखा तो कोई नहीं था, बस बालकनी में लगे उस गुलाब के पौधे की वो कली खिलकर फूल बन चुकी थी, उनके और उषा जी के अटूट प्यार का फूल।


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