पवित्रता (भाग-2)
पवित्रता (भाग-2)
गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में दंगे होने के कारण नर्स यामिनी किसी तरह अस्पताल पहुंचती है। वहां पहुंचने पर सीनियर सिस्टर मिसेज डेविडसन यामिनी को बेड नं. 11 के मरीज जीशान को देखने को कहती है। यामिनी मिसेज डेविडसन को मां की तरह मानती है और मिसेज डेविडसन भी यामिनी को बेटी की तरह, शहर में होने वाले दंगों को देखते हुए मिसेज डेविडसन यामिनी को बारबार समझाती है कि मरीजों के साथ ज्यादा घुलने-मिलने की जरूरत नहीं है, शहर में हुए दंगों से परेशान यामिनी के सामने अतीत की यादें ताजा होने लगती हैं कि किस तरह हिंदू-मुसलिम दंगों के दौरान दंगाइयों ने उस का घर जला दिया था और वह अपनी सहेली के घर जाने के कारण बच गई थी।
यही सोचते-सोचते उसे जीशान का ध्यान आता है। 25 वर्षीय जीशान के घर में भी दंगाइयों ने आग लगा दी थी। बड़ी मुश्किल से जान बचा कर घायल अवस्था में वह अस्पताल पहुंचा था।
यामिनी जीशान की सेवा करती है ताकि वह जल्दी ठीक हो जाए, यामिनी और जीशान दोनों ही एक दूसरे के प्रति लगाव महसूस करते हैं। यामिनी से अलग होते समय जीशान उदास हो जाता है और कहता है कि मैं आप से कैसे मिलूंगा ? मैं मुसलमान हूं और आप हिंदू, तो वह समझाती है कि हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है और वह अलविदा कह कर चला जाता है। यामिनी अपनी सहयोगी नर्स के साथ शहर में हुए दंगों पर चर्चा कर रही होती है कि तभी कालबेल बजती है। अब आगे…
हिंदूमुसलिम दंगों के दौरान मिले यामिनी और जीशान के बीच भाईबहन का रिश्ता कायम हो चुका था लेकिन दुनिया वाले इस रिश्ते को कहां पाक मानने वाले थे. क्या जीशान और यामिनी दुनिया के सामने अपने इस मुंहबोले रिश्ते को साबित कर पाए ?गतांक से आगे…
ट्रेनी नर्स ने दरवाजा खोला, सामने खडे़ युवक ने उस को बताया, ‘‘सिस्टर, मैं जीशान का पड़ोसी हूं, क्या यामिनी मैडम यहीं रहती हैं ?’’
‘‘हां, रहती तो यहीं हैं, मगर तुम्हें उन से क्या काम है ?’’
‘‘उन्हें खबर कर दीजिए कि जीशान को पिछले 2 दिन से बहुत तेज बुखार है। उस ने मैडम को बुलाया है।’’
कमरे के अंदर बैठी यामिनी नर्स और आगंतुक की बातचीत ध्यान से सुन रही थी। जीशान के अतिशय बीमार होने की खबर सुन कर उस का दिल धक् से रह गया। यामिनी को लगा, मानो उस का कोई अपना कातर स्वर में उसे पुकार रहा हो। उस ने अपना मिनी फर्स्ट एड बॉक्स उठाया और उस युवक के साथ निकल पड़ी। कमरे में बिस्तर पर बेसुध पड़ा जीशान कराह रहा था। यामिनी ने उस के माथे को छू कर देखा तो वह भट्ठी की तरह तप रहा था। यामिनी ने उसे जरूरी दवाएं दीं और एक इंजेक्शन भी लगा दिया। कुछ देर बाद जीशान की स्थिति कुछ संभली तो यामिनी ने पूछा, ‘‘जीशान, तुम अपने प्रति इतने लापरवाह क्यों हो ? अपना ध्यान क्यों नहीं रखते ?’’
‘‘ध्यान तो रखता हूं, पर बुखार का क्या करूं? खुद ब खुद आ गया।’’
जीशान के इस भोलेपन पर यामिनी ने वात्सल्य भाव से कहा, ‘‘जब तक तुम स्वस्थ नहीं हो जाते, मैं रोजाना आया करूंगी और तुम्हारे लिए चाय, सूप जो भी होगा बनाऊंगी और अपने सामने दवाएं खिलाऊंगी।’’
‘‘ऐसा तो सिर्फ 2 ही लोग कर सकते हैं, मां अथवा बहन।’’
यामिनी कुछ बोलना चाहती थी कि जीशान कांपते स्वर में पूछ बैठा, ‘‘क्या मैं आप को दीदी कहूं ? अस्पताल में जब पहली बार होश आया था और आप को तीमारदारी करते हुए पाया था तभी से मैं ने मन ही मन आप को बड़ी बहन मान लिया था। इस से ज्यादा खूबसूरत और पाक रिश्ता दूसरा नहीं हो सकता, क्योंकि यही रिश्ता इतनी खिदमत कर सकता है।’’
‘‘यह तो ठीक है, मगर….’’
‘‘दीदी, अब मुझे मत ठुकराओ, वरना मैं कभी दवा नहीं खाऊंगा। वैसे भी तो यह दोबारा की जिंदगी आप की ही बदौलत है। आप खूब जानती हैं कि मैं आप को देखे बगैर एक पल भी नहीं रह पाता।’’
यामिनी निरुत्तर थी, रिश्ता कायम हो चुका था। सारे देश में खूनखराबे का कारण बने 2 विरोधी धर्मों के युवक-युवती के बीच भाई-बहन का अटूट रिश्ता पनप चुका था।
यामिनी जब जीशान के कमरे से निकली तो अगल- बगल और सामने के मकानों के दरवाजों से झांकती अनेक आंखों के पीछे के मनोभावों को ताड़ कर वह बेचैन हो उठी। दुकानों के बाहर झुंड बना कर खडे़ लोगों ने भी उसे विचित्र सी निगाहों से देखना शुरू कर दिया लेकिन किसी की ओर देखे बिना वह सिर झुका कर चुपचाप चलती चली गई।
जीशान जब तक पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो गया तब तक यह क्रम अनवरत चलता रहा। मिसेज डेविडसन को यामिनी का एक मरीज के प्रति इतना लगाव कतई पसंद नहीं था। एक दिन उन्होंने कह ही दिया, ‘‘जीशान के घर इस तरह हर रोज जाना ठीक नहीं है, यामिनी।’’
‘‘क्यों?’’ प्रश्नसूचक मुद्रा में यामिनी ने पूछा।
उन्होंने समझाते हुए कहा, ‘‘तुम कोई दूधपीती बच्ची नहीं हो, जिसे कुछ पता ही न हो. भले तुम उसे भाई समझती हो, किंतु कम से कम आज के माहौल में दुनिया वाले इस मुंहबोले रिश्ते को सहन करेंगे क्या ?’’
‘‘जब यह रिश्ता नहीं बना था तब दुनिया वालों ने मुझे या जीशान को बख्शा था क्या जो मैं इन की परवा करूं।’’
‘‘दुनिया में रह कर दुनिया वालों की परवा तो करनी ही पडे़गी।’’
‘‘मैं स्वयं भी इस बंजर जीवन से तंग आ गई हूं। नहीं रहना इस दुनिया में…तो किसी से डरना कैसा।’’ यामिनी ने कठोर मुद्रा में अपना पक्ष रखा।
मिसेज डेविडसन चुप हो गईं, उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर और यह कहते हुए उसे अपने साथ होस्टल लिवा ले गईं कि आज का खाना और सोना सब उन्हीं के साथ होना है।
यामिनी को बर्थ डे जैसे अनावश्यक चोंचले बिलकुल नहीं भाते थे। फिर भी मिसेज डेविडसन ने आज सुबह ही उस को याद दिलाया था कि आज रात का भोजन वह उसी के साथ उस के कमरे पर लेंगी और वह भी ‘स्पेशल.’ यामिनी ने हामी भर ली थी, क्योंकि प्रस्ताव केवल भोजन का था, बर्थ डे मनाने का नहीं।
घर आ कर फ्रेश होने के बाद वह और उस की साथी टे्रनी नर्स अच्छी मेहमाननवाजी की तैयारियों में जुट गईं कि अचानक यामिनी का मोबाइल बज उठा। दूसरी तरफ से जीशान बोल रहा था, ‘दीदी, आज 7 बजे तक आप जरूर आ जाइएगा, बहुत जरूरी काम है। 8 बजे तक हर हाल में मैं आप को आप के रूम पर वापस छोड़ दूंगा।
‘किंतु मेरे भाई, यह अचानक ऐसी कौन सी आफत आ गई है ?’
‘मेरे भाई’ शब्द सुनते ही जीशान का रोमरोम पुलकित हो उठा, कितनी मिठास, कितनी ऊर्जा थी इस पुकार में, वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी बात कैसे कहे। इन कुछ पलों की चुप्पी का अर्थ यामिनी समझ नहीं पा रही थी। उस ने कहा, ‘जीशान, आज मैं नहीं आ सकती. तुम हर बात पर जिद क्यों करते हो ?’
‘दीदी, यह मेरी आखिरी जिद है। मान जाओ, फिर कभी भी ऐसी गुस्ताखी नहीं करूंगा,’ इतना कह कर जीशान ने फोन काट दिया था।
यामिनी अजीब संकट में पड़ गई। एक तरफ जीशान का ‘बुलावा’ था तो दूसरी तरफ मिसेज डेविडसन को दी गई उस की ‘सहमति’ थी। आखिर दिल ने जीशान के पक्ष में फैसला दे दिया।
यामिनी को कहीं जाने की तैयारी करते देख उस की साथी नर्स समझ गई कि मुंहबोले इस भाई के बुलावे ने यामिनी को विवश कर दिया है। फिर भी उस ने पूछा, ‘‘मैम, मिसेज डेविडसन का क्या होगा ?’’
‘‘होगा क्या ? थोड़ा सा गुस्सा, थोड़ा बड़बड़ाना और फिर मेरी सुरक्षित वापसी के लिए प्रार्थना, हर मां ऐसी ही होती है,’’ कहते हुए यामिनी निकल पड़ी।
जीशान के कमरे पर यामिनी पहुंची तो देखा दरवाजा खुला था, कमरे में जो दृश्य देखा तो वह अवाक् रह गई। मेज पर सजा ‘केक’ और उस पर जलती एक कैंडिल, एक खूबसूरत नया ‘चाकू’ और नया ‘ज्वेलरी केस’ सबकुछ बड़ा विचित्र लग रहा था। इन सब चीजों को विस्मय से देखती हुई यामिनी की आंखें जीशान को ढूंढ़ रही थीं। उस के मन में संशय उठा कि कहीं उस के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हो गई। उस ने जैसे ही जीशान को आवाज लगाई, ठीक उसी समय दरवाजे पर आहट हुई और जीशान हँसते हुए कमरे में प्रवेश कर रहा था। उस के एक हाथ में रक्षासूत्र और एक हाथ में ताजे फूल थे।
जीशान को सामने पा कर यामिनी आश्वस्त हो गई। उस ने अपने को संयत करते हुए पूछा, ‘‘इस तरह कहां चले गए थे ? और वह भी कमरा खुला छोड़ कर, तुम्हें अक्ल क्यों नहीं आती ? और यह सब क्या है ?’’
‘‘एक गरीब भाई की तरफ से अपनी दीदी के बर्थ डे पर एक छोटा सा जलसा।’’
अपनत्व की इतनी सच्ची, इतनी निश्छल प्रतिक्रिया यामिनी ने अपने अब तक के जीवन में नहीं देखी थी। भावातिरेक में उस के नेत्र सजल हो उठे। उस ने रुंधे गले से कहा, ‘‘मेरे भाई, अब तक तुम क्यों नहीं मिले ? कहां छिपे थे तुम अब तक ? मिले भी तो तब जब हम दोनों के रिश्ते दुनिया के लिए कांटे सरीखे हैं।’’
जीशान ने अपना हाथ यामिनी के मुंह पर रखते हुए कहा, ‘‘अब और नहीं, दीदी, आज आप का जन्मदिन है। अब चलिए, केक काटिए और यह जलती हुई मोमबत्ती बुझाइए।’’
यामिनी ने जीशान की खुशी के लिए सब किया। केक काटा और मोमबत्ती बुझाई। किसी बच्चे के समान ताली बजा कर जीशान जोर से बोल उठा, ‘‘हैप्पी बर्थडे-टू यू माई डियर सिस्टर,’’ फिर केक का एक टुकड़ा उठा कर यामिनी के मुंह में डाला और आधा तोड़ कर स्वयं खा लिया।
यामिनी ने घड़ी पर निगाह डाली, 8 बजने में कुछ ही मिनट बाकी थे। उस ने जीशान को याद दिलाते हुए जाने का उपक्रम किया। जीशान ने यामिनी से सिर्फ 2 मिनट का समय और मांगा, उस ने यामिनी से आंखें मूंद कर सामने घूम जाने का अनुरोध किया। यंत्रचालित सी यामिनी ने वैसा ही किया, जीशान ने एक फूल यामिनी के पैरों पर स्पर्श कर अपने माथे से लगाया।
तभी जीशान ने अपनी दाईं कलाई और बाएं हाथ का रक्षासूत्र यामिनी की ओर बढ़ा दिया। यामिनी उस का मकसद समझ गई, उस ने मेज पर पड़े फूल उस पर निछावर किए और राखी बांध दी।
वह आदर भाव से अपनी दीदी के पैर छूने को झुका ही था कि दरवाजा भड़ाक से खुला और 10-12 खूंखार चेहरे तलवार, डंडा, हाकी आदि ले कर दनदनाते हुए कमरे में घुस गए और उन्हें घेर लिया।
एक बोला, ‘‘क्या गुल खिलाए जा रहे हैं यहां ?’’
दूसरा बोला, ‘‘यह शरीफों का महल्ला है. इस तरह की बेहयायी करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी ?’’
तीसरा बोला, ‘‘यह बदचलन औरत है, मैं ने अकसर इसे यहां आते देखा है।’’
भद्दी सी गाली देते हुए चौथा बोला, ‘‘रास रचाने को तुम्हें यह मुसलमान ही मिला था, सारे हिंदू मर गए थे क्या ?’’
भीड़ में से कोई ललकराते हुए बोला, ‘‘देखते क्या हो ? इस विधर्मी को काट डालो और उठा कर ले चलो इस मेनका को।’’
यामिनी ने अपना कलेजा कड़ा किया और दृढ़ता से जीशान के आगे खड़ी हो कर बोली, ‘‘इसे नहीं, दोष मेरा है, मेरे टुकड़े-टुकड़े कर डालो क्योंकि मैं हिंदू हूं। आप लोगों की प्रतिष्ठा मेरे नाते धूमिल हुई है।’’
यह सब देख कर जीशान में भी साहस का संचार हुआ। वह यामिनी के आगे आ गया और अपनी दाहिनी कलाई उन के सामने उठाते हुए बोला, ‘‘आप लोग खुद देख लीजिए, हमारा रिश्ता क्या है ? राखी तो सिर्फ बहन ही अपने भाई को बांधती है।’’
उस का हाथ झटकते हुए एक बोला, ‘‘अबे, तू क्या जाने बहन-भाई के रिश्ते को. तुझ जैसों को तो सिर्फ मौका चाहिए किसी हिंदू लड़की को भ्रष्ट करने का। वैसे भी आज रक्षाबंधन है क्या ?’’
तभी यामिनी को एक अवसर मिल गया, उस ने तर्क भरे लहजे में कहा, ‘‘रानी कर्णावती ने जब हुमायूं को राखी भेजी थी तब भी तो रक्षाबंधन नहीं था किंतु आप लोग यह सारी लुभावनी मानवतापूर्ण बातें तो केवल मंच से ही बोलते हैं, व्यवहार में तो वही करते हैं जैसा अभी यहां कर रहे हैं।’’
यह तर्क सुन कर भीड़ के ज्यादातर युवक बगलें झांकने लगे किंतु एक ने उस के तर्क को काटते हुए कहा, ‘‘हुमायूं ने तो राखी के धर्म का निर्वाह किया था। भाई के समान उस ने रानी कर्णावती के लिए खून बहाया था, तुम्हारा यह भाई क्या ऐसा प्रमाण दे सकता है ?’’
यामिनी यह सुन कर अचकचा गई. उसे कोई तर्क नहीं सूझ रहा था। तभी अचानक जीशान ने मेज पर पड़ा चाकू उठाया और राखी वाली कलाई की नस काट डाली। खून की धार बह चली। खूंखार चेहरे एकएक कर अदृश्य होते गए, काफी देर तक यामिनी मूर्तिवत् खड़ी रह गई। उस की चेतनशून्यता तब टूटी जब गरम रक्त का आभास उस के पांवों को हुआ। उस का ध्यान जीशान की ओर गया, जो मूर्छित हो कर जमीन पर पड़ा था।
यामिनी को कुछ भी नहीं सूझ रहा था। उस ने अपने आंचल का किनारा फाड़ा और कस कर जीशान की कलाई पर बांध दिया। उसी समय दरवाजे पर मिसेज डेविडसन और यामिनी की रूमपार्टनर खड़ी दिखाई दीं। उन दोनों ने फोन कर के एंबुलेंस मंगा ली थी।
जीशान एक बार फिर उसी अस्पताल की ओर जा रहा था जहां से उसे जीवनदान और यह रिश्ता मिला था। उस का सिर यामिनी की गोद में था, यामिनी के हाथ प्यार से उस का माथा सहला रहे थे।
