rekha shishodia tomar

Drama

0.8  

rekha shishodia tomar

Drama

2 नहीं 11 है

2 नहीं 11 है

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560


"क्या यार खाली घर बैठकर बच्चे का ध्यान भी नहीं रख सकती तो और क्या कर सकती हो।.?""अरे तुम्हे नहीं पता ये कितना शैतान हो गया है, ऊपर से तुम्हारी लाडली 6 साल की हो गई है पर भाई से ज्यादा काम फैलाती है।."

"बच्चे ऐसे ही होते है, पर ये थोड़ी की बच्चा चोट खा ले,अरे काम थोड़ा लेट करो।जब सो जाए तब करो।2 साल का है 2 साल की केअर और है।"

"इसकी बहन की केअर तो अभी तक करनी पड़ रही है, बैठे बैठे बेड से गिर जाती है।"

"बहस छोड़ो बच्चों पर कंसन्ट्रेट करो"

"अरे उसी पर ध्यान था मेरा।फिर भी पता नहीं कैसे लुढ़क गया"

"मेरी जॉब का चक्कर ना होता तो मैं दिखाता कैसे केअर होती है"

"हम्म तो एक काम करते है, तुम्हारी इलेक्शन की वजह से दो दिन की छुट्टी है, घर का सारा काम मैं करूँगी,यहाँ तक कि बाथरूम में तुम्हारे कपड़े टॉवल भी मैं रख दूंगी, शूज भी मैं पॉलिश कर दूंगी।तुम्हारा कोई भी काम हो मैं कर दूंगी। तुम्हे सिर्फ और सिर्फ इन दोनों पर बाज की नजर रखनी है बताओ मंजूर"?

"मंजूर"

रात 11 बजे

"अरे सोनी ,यार ये सोता क्यों नहीं है"?

"इसी से पूछो"

"शर्त तो कल से थी ना"?

"नहीं अभी से"

काफी देर जद्दोजहद करने पर भी प्रतीक बेटे को सुलाने में असफल रहा आखिरकार हार कर सोनी ने ही बेटे की घुमाते हुए लोरी सुनाकर सुलाया

रात 2 बजे

"सुनिए, ये कुनमुना रहा है "

प्रतीक नींद में ही बड़बड़ाया "तो"?

"इसको सुसु आई है"

"तो डायपर है ना"?

"नहीं अब ये 2 साल का है मैं डायपर नहीं पहनाती, उठिए बाथरूम ले जाइए इसे"

प्रतीक लड़खड़ाते हुए उठा और गहरी नींद में धम्म से बेड से नीचे

दीप्ति पहले घबराई फिर प्रतीक की शक्ल देख हँसी रोकते हुए बोली"वाह बच्चे को बचाने के लिए खुद ही बेड से गिर रहे हो"

प्रतीक घूरता हुआ उठा, बेटे को फ्रेश करा कर फिर से नींद के आगोश में

20 मिनट बाद

"सुनो इसे भूख लगी है ,साथ मे गुड़िया की भी बाथरूम ले जाओ एक बार"

"अरे यार शर्त सुबह से करेंगे अभी सोने दो।"

"मैं मान लुंगी आप हार गए।"

"प्रतीक आज तक किसी से नहीं हारा।"

इतना कह प्रतीक ने बेटे का दूध बना उसके मुँह में बोतल लगाकर, बेटी को वाशरूम ले जाकर चैन की सांस ली, इसी तरह रात बीती।

सुबह 5 बजे-

"उठिए इसको दूध बनाकर दीजिये।"

प्रतीक पूरी फुर्ती से उठ दूध बनाने चला गया, सोनी हैरान थी और प्रतिक ये सोचकर फुर्ती में आ गया कि एक दिन ही तो ये सब करना है।

सुबह सोनी आराम से उठकर रोजमर्रा के कामो में लग गई।

थोड़ी देर बाद उसने प्रतीक को आवाज़ दी"सुनो, गुड्डू उठ गया है उसे सम्भालिए।"

"ठीक है"

पर गुड्डू तो गोद मे रूकने को तैयार ही नहीं था, प्रतीक ने हाथ मे पकड़ा अखबार रखा और गुड्डू को घूमने के लिए छोड़ दिया

"इसको देखते रहना ध्यान से"

"तुम अपने काम पर ध्यान दो"

तभी बेटी उठी और पापा के कमर में हाथ डाल कर बोली"पापा आज घुमाने ले चलोगे"?

"हाँ बेटा क्यों नहीं,पहले आप ब्रश कर लो"

घूम कर देखा तो गुड्डू गायब, प्रतीक ने घबरा कर इधर उधर देखा 

"अरे ,ये कहाँ गया"?

"कौन कहाँ गया"

"अरे गुड्डू अभी यहीं था"

तभी ऊपर से किराएदार की आवाज़ आई"अरे प्रतीक जी ये गुड्डू ऊपर चढ़ आया है, इसको ले जाइए। अच्छा हुआ मैंने देख लिया, ये तो और ऊपर चढ़ रहा था"

सोनी ने घूर कर प्रतीक को देखा

"अरे वो गुड़िया ने बातो में लगा लिया था"

फटाफट भागकर गुड्डू को लेकर आया तो देखा गुड़िया ने सब कपड़े भिगोए हुए थे,उसके कपड़े बदलते हुए गुड्डू को एक जगह रोकना मुश्किल हो गया था।

सोनी ने चाय बनाकर दी,चाय पीना और दोनो बच्चों पर नज़र रखना प्रतीक के लिए मुश्किल हो रहा था इसलिए रोज़ चाय की चुस्कियों के साथ तस्सली से अख़बार चाटने वाला प्रतीक आज दोनो के पीछे पीछे घूमते हुए चाय पी रहा था।

जब दोनो बच्चे बैठकर खेलने लगे तो प्रतीक को थोड़ा रिलैक्स लगा वो मोबाइल निकाल फेसबुक और व्हाट्सअप देखने लगा ।

काफी देर तक देखने के बाद उसे लगा बच्चों को कुछ खिलाने का टाइम भी तो हो गया।

वो इठलाते हुए टी वी के सामने नाश्ता करती सोनी से बोला"बच्चों को भी कुछ दो खाने के लिए।"

"ब्रश कराया"?

"न, नहीं तो"

"ब्रश करायो गुड़िया को और गुड्डू को ओट्स खीर खिला दो।"

प्रतीक जब बच्चों के पास पहुँचा तो वहाँ की हालत देख परेशान हो गया।

बेटी ने लॉबी में रखा सर्फ का खुला पैकेट बाहर निकाल लिया था ,बेटे ने पूरे फर्श पर उसे बिखेर दिया था उस पर उंगलियों से कारीगरी जारी थी।

उसने फटाफट दोनो बच्चो को साफ करके वहाँ से हटाकर झाड़ू ले सब साफ किया,

जब वापिस बच्चों के पास पहुँचा तो सर पकड़ लिया, बेटी ने स्टोर में रखा आटे का डब्बा खोल दिया था और बेटा मुट्ठी भर भर कर अपने और अपनी बहन के ऊपर डाल रहा था

सुबह से प्रतीक ने चैन से बैठकर ना अखबार पढ़ा था ना चाय पी थी, उधर सोनी बहुत ही रिलैक्स होकर अपने रोजमर्रा के काम निपटा रही थी

काफी देर तक बच्चे नाश्ते के लिए नहीं आये तो सोनी अंदर पहुँची ,जाकर देखती है पूरे कमरे में आटा फैला है, बेटे ने सुसु किया हुआ,बेटी पूरी तरह फिल्मी भूतों की तरह सफेद हो इधर उधर घूम रही है और प्रतीक।

प्रतीक झाड़ू और पोछा लिए सफाई में लगे हैं।

घर की हालत देख सोनी का सर घूम गया, प्रतीक को देखकर कुछ बोलती उससे पहले ही प्रतीक बोल पड़ा

"बस कुछ मत कहना, मैं समझ गया।ताने मत मारना, अब प्लीज् मेरी मदद करो ये सब समेटने में"

ये सुनकर सोनी की हंसी छूट गई और वो बोली"क्या प्रतीक जी दो बच्चे नहीं संभले आप से"

प्रतीक आँखों को फैलाकर, ज़ोर देता हुआ बोला"2।?2 बच्चे नहीं है ये।ये तो एक और एक 11 बच्चो के बराबर है। लगातार इनके पीछे पीछे घूम रहा हूँ पर पता नहीं कैसे पलक झपकते ही कुछ ना कुछ कांड कर देते है।"

सोनी हंसते हंसते लोट पोट हो रही थी और प्रतीक सर झुकाए सफाई में लगे थे।


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