ज़िंदगी
ज़िंदगी
बाते वो प्यार से मेरी सुनती कभी कभी
बेवजह जाने क्यों थी वो लड़ती कभी कभी।
कल रात जब कमल खिले अहसास ये हुआ
अँधकार में भी ज़िन्दगी खिलती कभी कभी।
आशा के दम पे जी रहे सब लोग है यहाँ
आशा भी सुना है मगर मरती कभी कभी।
अद्भुत ज़हान, लोग भी अद्भुत सभी हुए
क्यों एक दूसरे की न बनती कभी कभी।
चलते रहें है काफ़िले दिन रात तो कईं
मंजिल मगर कुछ एक को मिलती कभी कभी।
आसान तो बहुत कटे जीवन का ये सफ़र
मुस्कान अगर लब पे हो खिलती कभी कभी।