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AKIB JAVED

Abstract Inspirational

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AKIB JAVED

Abstract Inspirational

ज़िन्दगी की दास्ताँ हम थे

ज़िन्दगी की दास्ताँ हम थे

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हज़ारों दर्दो-ग़म के दरम्यां हम थे

जहाँ में अब कहाँ हैं कल कहाँ हम थे।


तग़ाफ़ुल कीजिये पर सोच लो इतना

तुम्हारी ज़िन्दगी की दास्ताँ हम थे।


तुम्हारी बदज़ुबानी चुभ रही लेकिन

तुम्हारे होंठ पर सीरी जुबां हम थे।


ये तख़्तों ताज दुनिया में भला कब तक

मुहब्बत ज़ीस्त है सोचो कहाँ हम थे।


मुहब्बत खो गई है नफ़रतों की भीड़ में

वो बढ़ते भाई चारे का गुमाँ हम थे।


कहीं नफ़रत कहीं उल्फ़त कही धोखा

कहीं जलते हुए घर बेजुबां हम थे।


कुचल डाला है जिसको वक्त ने यारों

ज़मीं हैं आज लेकिन आसमां हम थे



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