यूँ ही नहीं उन्हें पापा कहते हैं
यूँ ही नहीं उन्हें पापा कहते हैं
यूँ ही नहीं उन्हें पापा कहते हैं
वो हर गम सहकर भी चुप रहते हैं,
किसी के दूर है तो किसी के पास हैं
पर पापा की लिए सब बच्चे खास हैं
बस इतनी सी गुज़ारिश है सब बच्चों से
रखना ख्याल बुढ़ापे में, पिता का अच्छे से,
जिन हाथों ने चलना सिखाया था तुम्हें बचपन में
मत छोड़ आना तुम उन्हें वृद्धा आश्रम में,
पिता तो निभाते ही है अपना फर्ज़,
बस औलाद ही भूल जाती है लौटाना क़र्ज़।