घर वालों का साथ
घर वालों का साथ
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मिलकर बैठते है जब एक साथ
करते हसी-मज़ाक और एक दूसरे कि बात,
कितना हसीन होता है वो वक़्त
जो बीतता है सबके संग एक साथ,
सुबह सब काम पे निकल जाते
थक हार के शाम को वापस आते,
दिन भर कि थकान उतर जाती
जब एक गरम चाय मिल जाती,
पर जो रिश्तों कि एहमियत को दुसरो में ढूंढ़ते है
वे अपने ही अपनों को अनजान समझते है,
जो कहते है रिश्ते निभाना इतना आसान नहीं,
मैं कहता हूँ, अभी तुम्हें रिश्तों कि पहचान नहीं...
