यूं ही जिंदा हूं
यूं ही जिंदा हूं
कुछ दिन बस यूं ही जिंदा हूं
कुछ मिल सका ना अर्थ मुझे
अपने इन अजीब सपनों का
सब कुछ पहले जैसा भी नहीं होता
जब सपनों का कोई अर्थ नहीं था
कोई रंग मजहब नहीं था
कुछ दिन बस यूं ही जिंदा हूं
चार दिन फिर और गुजर गए
बरसात के बाद कड़ाके की ठंड आई
और मैं फिर से साधक बनकर
ये सोचता हूं कि पहले जैसा क्यों नहीं होता
अपने फिजूल बातों से मैं दूर जाना चाहता हूं
जिसका कोई अर्थ नहीं मैं उसे क्यों पाना चाहता हूं
कुछ दिन बस यूं ही जिंदा हूं
बचपन आज भी मुझे याद है
जब मैं सबकुछ बदलना चाहता था
अपनी हालत और तकदीर को
आज जब मैं हार गया हूं
तब मुझे याद आता है कि
सबकुछ पहले जैसा क्यों नहीं होता
कुछ दिन बस यूं ही जिंदा हूं
क्या जिंदगी की सफलता
मेरे जीवन के अर्थों को बदल देता
जो मैं आज अपने विषय में सोच रहा हूं
उसे ही विचारों से दफन कर देता
क्या फिर मेरे होने का आधार भी
अपने ही विचारों से ढह जाता
कुछ दिन बस यूं ही जिंदा हूं
