योग-दोहावली
योग-दोहावली
योग पुराना है बहुत, नहीं आज की बात।
कर्म - कुशलता योग है, गीता की सौगात।
बिखरा था जो वेद में, योग - ज्ञान भंडार।
पातंजलि समेट उसे, दिया हमें उपहार।
योग महज कसरत नहीं,यह इक साँस विधान।
ज्ञान,भक्ति औ कर्म ही, इसके हैं सोपान।
सुबह उठें योगा करें, बिल्कुल खाली पेट।
नित्य इसे करते रहें, सेहत रखें समेट।
सेहत जैसा धन नहीं, तन सा ना जागीर।
कुदरत ने सबको दिया, इक अनमोल शरीर।