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Sudhir Srivastava

Abstract Comedy

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Sudhir Srivastava

Abstract Comedy

यमराज का दर्द

यमराज का दर्द

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चिलचिलाती धूप में

हाइवे पर बाइक से मैं उड़ा जा रहा था

उस सड़क पर दूर दूर तक पैदल या साइकिल वाला 

कहीं कोई नहीं नजर नहीं आ रहा था

केवल बसें, कारें, ट्रक, ट्राला, के अलावा

एकाध एंबुलेंस या ट्रैक्टर ही नजर आ रहा था।


हाइवे किनारे छाया मिलना स्वप्न जैसा था

अचानक मुझे लगा कि कोई हाथ हिलाकर

मुझे दूर, सामने से रुकने का इशारा कर रहा था

पर वो मुझे नज़र भी नहीं आ रहा था

मैं बड़े असमंजस में आगे बढ़ता जा रहा था।


उसके पास पहुंच मेरा पैर ब्रेक पर 

अनायास पड़ गया और मैं रुक गया।

तुरंत एक साया मेरे पास पहुंचा, 

मुझसे पीने का पानी मांगा,

मैंने यंत्रवत उसे अपनी पानी की बोतल पकड़ा दिया

उसने बोतल से गटागट पानी पीकर

धन्यवाद के साथ बोतल वापस कर दिया।


मैंने कहा महोदय!मगर आप कौन हैं ?

इस चिलचिलाती धूप में कहाँ भटक रहे हैं

और मुझे दिख क्यों नहीं रहे हैं?

साये ने प्यार से बताया-मैं यमराज हूं 

मैं लोगों के प्राण यमलोक ले जाता हूं

और इस समय पर भी प्राण ही लेने जा रहा हूं

धूप गर्मी से परेशान हूं

पानी की तलाश में भटक रहा हूं

अपने कर्तव्य से पिछड़ रहा हूं।


विलंब से उसकी मौत का समय बीत जाएगा

फिर उसका नंबर जाने कब आयेगा।

आप भले मानुष निकले

जो मुझे पानी पिलाया, अपना कर्तव्य निभाया

धन्यवाद तो दे ही चुका हूं

एक सलाह मुफ्त में दे रहा हूँ

आपकी धरती तो पेड़ पौधों से वीरान हो रही है

पानी की भी लगातार किल्लत बढ़ रही है।


प्रचंड गर्मी जब मुझे झुलसा रही है

तब धरतीवासियों का भगवान ही मालिक है।

ऐसे में मेरे काम का बोझ थोड़ा बढ़ जायेगा

बेवजह लोगों का दम निकलने लग जायेगा

तब किसका दोष दोगे तुम लोग,

तब किसको क्या बताओगे ?


अपनी ग़लती का सेहरा किसको पहनाएंगे ?

पर तुम लोगों का कुछ नहीं हो सकता

तुम लोग तो खुद ही खुद के दुश्मन बन रहे हो

तब तुम सबका खैरख्वाह भी भला क्या कर सकता है ?

पर मेरे साथ तो अन्याय होने जा रहा है

मुझ पर काम का दबाव बढ़ जायेगा

ऐसे में मेरी यात्रा का विस्तार हो जायेगा।


मुझे तो अब अपनी भी चिंता होने लगी है

अव्यवस्थित, अनियंत्रित यात्राओं से 

मेरी काया अभी से झुलसने लगी है,

लगता है पानी की कमी से मेरा दम भी

जल्दी ही निकल जायेगा।


एक और असमंजस मेरे मन में चल रहा है

मेरे मरने के बाद मेरे काम का बोझ कौन उठाएगा।

जो इतनी जहमत, ईमानदारी से उठाएगा

या धरती पर जीवन मरण के खेल भी थम जायेगा।


यमराज की बात सुनकर मैं सिहर गया

बड़ी मुश्किल से बोल पाया

बताइए हम क्या कर सकते हैं ?

यमराज गंभीर हो गया फिर बोला

जल जंगल प्रकृति का संरक्षण करो

खूब वृक्षारोपण करो, जल की बर्बादी रोको


प्रकृति से खिलवाड़ अब बंद करो

धरती को अब और न खोखला करो

नदी, नालों, झरनों ताल तलैया पर अतिक्रमण न करो

कंक्रीट के जंगल का विस्तार रोक दो

वरना पछताने के लिए भी कुछ शेष न बचेगा

क्योंकि धरती पर जीवों का अस्तित्व ही जब न बचेगा।

जिसका असर मेरे काम पर भी पड़ेगा।


बेरोजगारों में एक नाम यमराज का भी होगा

फिर सोचो भला मेरा क्या होगा?

जब मेरे पास कोई काम ही न होगा।

यमराज की चर्चा भी तब भला कौन करेगा ?

तब नेपथ्य में ही मुझे जीना नहीं पड़ेगा ?

और तब मेरा भैंसा क्या भूखा नहीं मरेगा ? 


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